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कांग्रेस में क्षेत्रिय दलों में त्रिश्रृंखलन की काली आंधी का सच



नारायण प्रकाष
एक सौ इकत्तीस वर्षीय कांग्रेस की मरणधर्मा सन्नीपात की स्थिति में क्षत्रप क्षेत्रिय पार्टी बनाकर अलग होने लगे हैं। अभी तक पष्चिमी बंगाल, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेष, मिजोरम, तमिलनाडु, केरल, छत्तीसगढ़, पुदुच्चेरी आदि में कांग्रेस के पायेदार सूबेदारों ने प्रांदेषीय राजनीतिकदल की आधारषिला रखी है।
भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार विधानसभा चुनावों से पहले उत्तरप्रदेष, उत्तराखण्ड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेष, गुजरात आदि में कांग्रेस नायक अपने ’’नये रास्ते’’ की धमाकेदार घोषणा कर सकते हैं। कांगे्रस अध्यक्ष सोनिया गांधी के स्वधर्मी ईसाई एवं पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने छत्तीसगढ़ में अचानक क्षेत्रिय पार्टी गठन की घोषणाकर आलाकमान को शह और मात दी है (सन् 2013 के छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की डाॅ. रमन सिंह मुख्यमंत्रीत्ववाली सरकार और कांग्रेस के बीच बाल बराबर अन्तर था।)।
यह उल्लेखनीय है कि पिछले दो दषकों में भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस का विभाजन दर विभाजन हुआ। सन् 1996 में पूर्व मंत्री माधवराव सिंधिया ने मध्यप्रदेष विकास कांग्रेस पार्टी, पूर्व मंत्री पण्डित सुखराम ने हिमाचल प्रदेष विकास कांगे्रस, पूर्व कांग्रेस महामंत्री जी. के. मूपनार-पूर्व मंत्री पी. चिदम्बरम ने तमिल मनिला कांग्रेस और पूर्व मुख्यमंत्रियों एन.डी.तिवारी-अर्जुन सिंह ने कांगे्रस तिवारी का गठन किया। तमिल मनिला कांग्रेस सहित क्षेत्रिय कांग्रेसियों की भांजी के कारण केन्द्र में कांगे्रस तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव हारी। पष्चिमी बंगाल में तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व एवं आलाकमान से बंगाल की सिंहनी ममता बनर्जी की नहीं बनी।
प्रकारान्तर में बंगाल की सिंहनी ममता बनर्जी ने कांगे्रस काॅडर को मोहते हुए सन् 1998 में ’’तृण मूल कांग्रेस’’ की स्थापना की। ममता बनर्जी ने कांग्रेस आलाकमान को अपहृत करनेवाली कनफुकिया चैकड़ी से मुक्ति का रास्ता कांग्रेस सूबेदारों को दिखाया। सन 1999 में सोनिया गांधी के इतालवी विदेषी मूल के होने से सर्वोच्च पद प्रधानमंत्री नहीं बनाने पर बवन्डर मचा। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार, बिहार के तारिक अनवर, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पूरनो संगमा ने ’’राज करेगा हिन्दुस्तानी’’ नारे के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) महाराष्ट्र में और तृण मूल कांग्रेस (टीएमसी) बंगाल में तीसरी शक्ति के रूप में उभरी। टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी एवं एनसीपी के शरद पवार के कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और भाजपा से नरम गरम सम्बन्ध रहे। टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी केन्द्र में कांग्रेसनीत गठबंधन और भाजपानीत गठबंधन की सरकारों में अहम् मंत्री रही।
यह बहुत त्रासदीय रहा कि कांगे्रस को महाराष्ट्र में झुककर एनसीपी के साथ 10 वर्ष सरकार चलानी पड़ी। एनसीपी में कांग्रेस आलाकमान से नाराज प्रादेषीय नेता बड़े पैमाने पर शामिल हुए। इसके ठीक विपरीत कांग्रेस में सन 1998 से 2004 तक तमिल मनिला कांग्रेस, तिवारी कांग्रेस, मप्रविकास पार्टी, हिमाचल विकास कांग्रेस आदि का विलय हुआ।
विगत छह वर्ष पहले एकीकृत आन्ध्रप्रदेष में तत्कालीन मुख्यमंत्री डाॅ. वाई.एस.आर. रेड्डी भी पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के स्वधर्मी ईसाई थे। कांग्रेस आलाकमान के सौतेले व्यवहार एवं उपेक्षा से तंग आकर उनके पुत्र वाई.एस.जगन मोहन रेड्डी ने ’’वाईएसआर कांग्रेस’’ का गठन कर कांग्रेस की नींव हिलाई। तत्कालीन कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिषील गठबंधन सरकार में सीबीआई ने जगनमोहन रेड्डी की आय से अधिक सम्पत्ति डीए की जांच शुरू की। युवाँ जगनमोहन रेड्डी महिनों जेल में रहे। आन्ध्रप्रदेष के विभाजन के बाद बने नये राज्य तेलंगाना में सन 2014 के चुनाव में कांग्रेस को 2 लोकसभा सीट जीतकर सब्र करना पड़ा।
सोलहवें लोकसभा चुनाव के साथ ही पूर्व मंत्री जी.के. वासन, जयन्ती नटराजन आदि ने ’’तमिल मनिला कांग्रेस’’ को पुनः जीवित किया। महाराष्ट्र में विदर्भ के कुछ कांग्रेस नेता पृथक विदर्भ को लेकर पार्टी को तिलांजलि दे चुके हैं। कर्नाटक में कांग्रेस क्षत्रप एम.वीरप्पा मोईली, एस.एम. कृष्णा (ईसाई), जनार्दन पुजारी आदि जनता दल से आये सिद्धारमैय्या के कांग्रेस मुख्यमंत्री होने से खुटुवा की पार्टी पकड़े हैं। वर्षों पहले स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कांगे्रस को धकियाकर पीपल्स डैमोक्रटिव पार्टी गठित की थी।
उत्तर पूर्व में कांग्रेस सूबेदार पाटी्र अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं युवराज उपाध्यख राहुल गांधी से अच्छे खासे नाराज हैं। अरूणाचल प्रदेष में कालिखो पाॅल ने सहयोगी विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ी और भाजपा में शामिल हो मुख्यमंत्री बने। असम ने हेमन्त विष्व सरमा विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के सूत्रधार बने। असम गण परिषद् के पूर्व नेता सदानन्द सोनवाल-हेमन्त विष्व सरमा की जोड़ी ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बुरीतरह हराया। त्रिपुरा में छह कांग्रेस विधायकों ने टीएमसी में शामिल होकर संकट उत्पन्न किया है। उत्तराखण्ड में पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में 9 कांग्रेस विधायक रहे भाजपा में सम्मिलित हुए हैं। दूसरे शब्दों में राज्य के कांगे्रस सूबेदारों में भारी हडकम्प मचा है। इससे पूर्व हरियाणा के कांग्रेेस क्षत्रप राव इन्द्रजीत सिंह (अहीर) और बीरेन्द्र सिंह (जाट) भाजपा में शामिल हो केन्द्रीय मंत्री बने हैं। राजस्थान में पूर्व केन्द्रीय मंत्री नटवर सिंह के सुपुत्र जगत सिंह, पूर्व कांग्रेस सांसद कर्नल सोनाराम आदि भाजपा विधायक हैं। उत्तरपूर्व के दूसरे राज्यों में कांग्रेस नेता बडी संख्या में असंतुष्ट समझे जाते हैं।
सारसंक्षेप में कांग्रेस सूबेदारों को स्पष्ट दिखाई देने लगा है कि सोनिया गांधी राहुल गांधी का तिलिस्मी चमत्कार खत्म हो चुका है। इसलिए कांगे्रेस क्षत्रप अपने दमखम पर क्षेत्रिय पार्टी का गोपनीय तानाबाना बुनने में लगे हैं। जिसकी (पार्टी की) घोषणा सही समय पर होगी। हरियाणा में राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस समर्थित आर.के. आनन्द की हार इसका पहला पड़ाव है। (पूर्वांचल) पूर्वांचल, 75/2 राधेपुरी एक्शटेंशन प्प्ए छठी वीथी, नई दिल्ली- 110051)

 

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