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गंगोत्री का गौमुख मीलों पीछे सरका


                       
उत्तराखण्ड से लौटकर राम शास्त्री
सदियों नहीं सड़नेवाले पवित्र जलवाली पवित्र भागीरथी गंगा की गंगोत्री का गाय के मुखाकार उदगम गौमुख कम से कम 3 किलोमीटर पीछे सरक गया है।
इतना ही नहीं गंगोत्री धाम में आनेवाला दिव्य भागीरथी गंगा जल का हिमनद लगातार पीछे सरकनेे से वह (जल) एक बड़ी एक छोटी चट्टान के नीचे से निकलकर बह रहा है। श्रीगंगोत्री धाम से गौमुख की लगभग 25 किलोमीटर की यात्रा के लिए सरकारी अनुमति लेनी होती है। उत्तराखण्ड सरकार के वनरक्षक-वनाधिकारी रास्ता भूलनेवालों को राह दिखाते हैं। बर्फ से ढ़के पर्वतों, चट्टानों, नालों, खाईयों और वृक्षों के बीच एक मात्र पड़ाव ’’भोजवास’’ है। उत्तरकाषी की लोककथाओं के अनुसार एक समय भोजवास में अनगिनत भोजपत्र के वृक्षों के झुण्ड़ों के कारण यह नामकरण हुआ। प्राचीनकाल में ऋषि मुनियों ने श्रुति स्मृति के आर्ष ग्रन्थों को प्राकृतिक काली स्याही से ’’भोजपत्रों’’ पर लिखकर अमर किया।
एक तरफ हिमनदों की श्रृंखला और दूसरी तरफ तपोवन के चुम्बकीय आकर्षणवाले वृक्षों के वन के बीच पवित्र दिव्य जल ही विभाजन रेखा है। जहाँ तीर्थ यात्रियों को अदृष्य दिव्य चमत्कारी शक्ति सम्पन्न कलापक्षेत्र, ज्ञानगंज, कौषिक आश्रम आदि से आनेवाले पीली चोंच, लाल पंजे और स्याह काले रंग के दिव्य अद्भुत पक्षियों के दर्षन होना संयोग की बात है। वैसे काले क्रोंचे कौवे भी हैं। बड़ी चट्टान के नीचे से निकलती देव लोक से पृथिवी पर महादेव षिव की जटा से निकली भागीरथी गंगा को देखकर आनन्द एवं दुख होता है। दूर चट्टानों के पास एक भोजपत्र का वृक्ष मिला, जिससे भोजपत्र तोड़ना चुनौतीपूर्ण रहा। विख्यात पर्यावरणविद् हर्षवन्ती बिष्ट के अनुसार कभी गंगोत्री से गौमुख तक भोजवृक्षों की भरमार थी, पर आज दर्षन दुर्लभ हैं। सुश्री बिष्ट ने स्पष्ट किया कि भोजपत्र के पेड़ बहुत धीरे-धीरे बढ़ते हैं। गौमुख पर कभी गुफाओं में अनेक ऋषि साधना करते थे। वर्तमान में गौमुखधाम में नाम मात्र के साधु जैसे-तैसे रह रहे हैं। समझा जाता है कि शेष साधक हिमनदों अथवा तपोवन के भीतर पलायन चले गए।
वर्तमान दो चट्टानों के बीच भागीरथी गंगा के उद्गम (गौमुख) से गर्मियों में हिमनद पिघलने से दिव्यजल की प्रचण्ड प्रवाह आने लगा है। लगभग 4255 मीटर की ऊँचाई पर हिमनदों, तपोवन और बंजड़ चट्टानों के मध्य तापमान बढ़कर 15 डिग्री सेल्सियस होना चैंकाता हैं। जबकि यह तापमान 2 डिग्री तक होना चाहिए। स्मरण रहे कि गौमुख के ऊपर अनन्त हिमनद् और जल की झीलें हैं। हिमनदों के बीच झीलों की संरचना वैष्विक तापमान बढ़ने से हुई है। वैष्विक तापमान वृद्धि से भागीरथी गंगा में पानी की आवक अधिकतम वृद्धि से भागीरथी गंगा में पानी की आवक अधिकतम लक्ष्मणरेखा को उलांघ चुकी है। हिमनदों की अनेक झीलोें में सबसे अहम् गौमुख हिमनद के ठीक ऊपर छोटी झील है। स्मरण रहे कि जून 2013 में श्रीकेदारनाथ धाम के हिमनदों में ’’चैराबारी झील’’ के टूटने से जलप्रलय आई थी। इसीक्रम मंे बदरीवन के हिमनदों की एक झील के कभी भी टूटने का खतरा श्रीबदरीविषाल धाम पर तीन वर्ष से छाया है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि गौमुख के ऊपर उभरे हिमनद तापमान बढ़ने से पिघलकर चन्द्राकार (अन्दर घंसने) होने लगे हैं। ऐसे में हिमनद के शीर्ष की छोटी झील से जलप्रलय का खतरा मंडराने लगा।
हिमनदों के अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि पिछले साढ़े चार दषक अर्थात सन् 1971 से गंगोत्री हिमनद 22 मीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से पीछे खिसक रहा है। नेषनल इन्स्टीट्यूट आॅफ हाइड्रोलाजी, रूड़की, उत्तराखण्ड के अनुसार विगत वर्षों में कम बर्फ जमना ही (गौमुख) हिमनद के पीछे खिसकने का बुनियादी कारण है। वर्षों पूर्व गाय माता के मुँह के आकार के बीच से गंगोत्री में दिव्य जल आता था। यह गौमुखनुमा हिमनदी बढ़ते तापदान की मार से अन्र्तध्यान हुआ। इसी संन्दर्भ में यह अहम् है, कि पिछले वर्ष में गौमुख हिमनदों के क्षेत्र में औसत से बहुत कम हिमपात हुआ। यह अचरज है कि इस क्षेत्र में वर्षा अच्छी हुई, लेकिन बर्फबारी नहीं हुई। हिमालय की षिवालिक पर्वत श्रृंखला मंे हिमनदों के लिए तापमान वृद्धि विनाषक स्वरूप लेने लगी है।
गंगोत्री एवं गौमुख में विगत 40 वर्षों में निर्माण कार्य ने नया कीर्तिमान स्थापित किया है। चालीस वर्ष पहले गगनानी से भैंरूंघाटी होती गंगोत्री आती इक्का दुक्का कार चारधाम यात्रा पर आती दिखाई पड़ती थी। चारधाम तीर्थयात्री चट्टियों में रात गुजारते थे। वर्तमान में अक्षय तृतीया से प्रारम्भ चारधाम तीर्थयात्रा में असंख्य छोटी बस, कार, एसयूवी, इनोवा आदि गंगोत्री जाती मिलती हैं। समीप ही नीचे हेलीकाॅप्टर यात्रा के लिए हेलीपैड़ भी बना है। ऐसा लगता है कि गंगोत्री गौमुख धाम की पवित्र तीर्थयात्रा सर्दी में भी ’’दुस्साहसी पर्यटन’’ का रूपाकार ले चुकी है। उत्तरकाषी से गंगोत्री की लगभग 100 किलोमीटर की तीर्थयात्रा सैलानियों के काफिलों से भरी लगती है। गंगोत्री में सभी तरह के भोजन का स्वाद लिया जा सकता है। गंगोत्री धाम में देवनदी गंगा की उत्पत्ति से सम्बन्धित पुराणों में गंगा, गंगा स्तोत्र रचनावली, गंगा महात्म, गंगाजल के नहीं सड़ने का वैज्ञानिक आधार, कल्याण का गंगा विषेषांक आदि पुस्तकों के खरीदने में अधिकांष तीर्थयात्रियों को कोई रूचि दिखाई नहीं देती है। गौमुख से गंगोत्री, गंगोत्री से गंगनानी, गगनानी से उत्तरकाषी के रास्ते में धड़ल्ले से प्लास्टिक पानी -पेयजल बोतल, प्लास्टिक थैंले, पेयजल के टीन आदि फैंके जा रहे हैं। चार दषकों से गंगोत्री-गौमुख-श्रीगंगा बचाओं का सघन अभियान चल रहा है। यह समस्या है कि वैष्विक तापमान वृद्धि, देष के आधे के आस-पास प्रान्तों में सूखा-अनावृष्टि और धार्मिक तीर्थ पर्यटन आदि में गौमुख की रक्षा कैसे हो ? (पूर्वांचल) पूर्वांचल, 75/2 राधेपुरी एक्शटेंशन प्प्ए छठी वीथी, नई दिल्ली- 110051)

 

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