पर्यावरण विनाश : आपका मौन बड़ा आत्मघाती है, जनाब !
डॉ. मनोहर भण्डारी
अपने पर्यावरण की रक्षा हमें ही करना होगी अन्यथा ग्लोवल वार्मिंग हमारी पीढ़ियों को अपनी आग में हर दिन झुलसाएगी और वे आपको पल पल कोसती रहेंगी I
सोचिए ! इसका गुनाहगार कौन है ?
• पेड़ काटें गए, हमने आपसी चर्चा में कहा कि हमें क्या ?
• बड़े बड़े पहाड़ छिल दिए गए, हमने सोचा हम क्या कर सकते हैं ?
• नदियों तक का अपहरण हो गया, (10210 नदियां थी, देश में) हमने कहा सरकार जाने, हमें क्या करना ?
• नदियों में कारखानों के घातक विषाक्त कचरे को डाला जाता रहा, हम चुपचाप वही पानी पी कर बीमारियों को स्वीकारते रहे I
• पूरे देश के जंगलों को माफियाओं ने किसी न किसी बहाने से लगातार चारों तरफ से साफ़ करना शुरू कर दिया, मालूम होते हुए भी हम यही सोचते रहे कि हम क्या कर सकते हैं ?
• कभी घर बनाने के बहाने, कभी कारखानों के नाम पर, कभी सड़क निर्माण की आड़ में, तो कभी विकास के किसी दूसरे आकर्षक बहाने हम जीवन देने वाले बड़े बड़े असंख्य पेड़ों का निर्मम विनाश अविराम करते ही जा रहे हैं I रामायण काल में राक्षस होते हुए भी महाबली रावण ने प्रजा के हितार्थ खूब पेड़ लगवाए थे, वाटिकाएं विकसित करवाई थी, पर हम तो उजाड़ने में आनन्दित होने वाले सुसभ्य मनुष्य हैं I
• वनों के विनाश से लाखों जंगली जानवर बेघर हो कर मौत को मजबूरन गले लगाने के लिए खूंखार शिकारियों की जद में आ गए, पर हमें कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि हमारे घर और हमारी जिन्दगी सुरक्षित थे I
• पहाड़ों, बीहड़ जंगलों और दूर दराज के क्षेत्रों में अपनी बीट के साथ फलों और अन्य किस्म के पेड़ों के बीज रोपने वाले मूक किसान यानी करोड़ों पक्षी बेघर हुए और दर बदर होकर बेमौत मर गए, हमें कोई फर्क नहीं पड़ा I
• कई जंगली जानवरों, पक्षियों और वनस्पतियों की प्रजातियां सम्पूर्ण रूप से लुप्तप्राय होने की कगार पर पहुंच गई, हमने सोचा “जो दुनिया में आया है, सो एक दिन जाएगा ही,” यह सनातन सत्य है I इसतरह देश की विश्व प्रसिद्ध जैवविविधता (बायोडाइवर्सिटी) का नाश होता रहा, हम ताली कूटने वाले तमाशबीन बने रहे I
• खाद, कीटनाशक एवं यंत्र बनाने वाले विदेशी निर्माताओं और व्यापारियों ने गाय, बैल और गोबर को हमारे खेतों से षड्यन्त्रपूर्वक और परोक्षतः बलपूर्वक बाहर कर दिया और हम उनकी चिकनी चुपड़ी तथा मीठी मीठी बातों के जाल में ऐसे उलझे कि हमारी जमीनें बंजर हो गई, किसान आत्महत्या करने लगे, गाय खेती की सौतन हो गई, बैल भार हो गए, परिश्रम बकवास होकर आराम में बदल गया I हमारी पारम्परिक आत्मनिर्भर वैज्ञानिक खेती परावलम्बी हो गई I बीज बदल गए, देसी फसलें विदेशी आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली फसलों में बदल गईं, सहारा देने की बजाय बैंकों के कर्ज ने किसानों के मनोबल को आत्मघाती विष दे दिया I हमने दुष्चक्र से निकलने की कोशिशें नहीं की बल्कि नियति मानकर उसमें फंसते ही चले गए I
• आज से लगभग 50 साल पहले तक 25 से 35 फीट खोदने पर ही कुंए पानी देने लगते थे, फिर 25 साल पहले पानी 100 से 150 फीट गहराई में चला गया, हमने भूजल भण्डार की महत्ता नहीं समझी और अब पानी 300 से 500 फीट नीचे जा चुका है I परन्तु हम भूजल को सिर्फ और सिर्फ उलीचने में ही विश्वास करते हैं, भू भण्डार भरने वाले आंगनों और सड़कों के किनारों पर हमने इण्टर लाकिंग टाइल्स लगा डाली ताकि वर्षाजल की एक बून्द भी धरती में न समा सके I विनाश काले विपरीत बुद्धि शायद इसी को कहते हैं I
• तुलनात्मक रूप से ठण्डी और एकोफ्रेंडली डामर की सड़कों को वातावरण की गरमाहट को सोखने वाली सीमेंट कांक्रीट की रोड्स ने हजम कर डाला I हमने अपने गली मोहल्लों में सीमेंट कांक्रीट की सड़कों के निर्माण हेतु अपनी जेब से पैसा देकर जनभागीदारी का अपना फर्ज निभाया और इसतरह स्वयं आगे आकर ग्लोबल वार्मिंग का हार्दिक स्वागत किया, हम आत्मघाती मूर्खता के मामले में कालीदासजी के भी परदादा निकले I
• यह जानते हुए कि दुनिया में पीने और नहाने तथा खाना पकाने के योग्य पानी केवल और केवल एक प्रतिशत से भी कम है, परन्तु हम अपने आंगन और गाड़ियों को धोते समय बिन पैसे के इस बेहद अनमोल पानी को पैसे की तरह अन्धाधुन्ध बहाते रहते हैं I अपनी जिन्दगी को मौत के हवाले करने वाली हमारी दरियादिली और बेताबी का जवाब नहीं I
• कुंए, बावड़ियां और नालें माफियाओं की जमीन हथियाने की लालच के शिकार होकर लुप्त हो गए, हम घरों में दुबककर बैठ गए I
• तालाबों और जलाशयों पर कालोनियां काट दी गई, हमने उन घरों में नौकाविहार सा आनन्द भोगा I
• अन्न देने के अलावा भूजल का भण्डार भरने वाले खेतों की जमीनों को लालच देकर खरीदा गया, कालोनियां काटी गई, भ्रष्टों और कालाबाजारियों ने भी जमीनों को बेनामी की आड़ में बेख़ौफ़ खरीदा, कारखाने खोले गए, ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार सीमेंट कांक्रीट के महाजंगल खड़े किए गए I फ़ार्म हाउसेस के नाम पर धरती माता पर सीमेंट का लेप कर दिया गया ताकि किसी भी हालत में जमीन के भीतर पानी की एक बून्द भी न पहुंच सके I भूजल बढ़ाने के सारे प्राकृतिक रास्तों को हमारी मूर्खता या लालच ने बलपूर्वक बन्द या अवरूध्द कर दिया I
आखिर क्यों कुल्हाड़ियों की धार पर हम अपने पैर मार रहे हैं ?
• इतिहास उठा कर अच्छे से देख लीजिए, अपने ही विनाश की हमारी ऐसी उतावली न तो कंस की हरकतों में मिलेगी और न ही रावण की करतूतों में उसे खोज पाएंगे I सच है कि हम भारतीय आत्मघात में भी सबसे आगे हैं I
सम्भावनाएं कभी समाप्त नहीं होती हैं –
• अब भी वक्त है, देश का हर नागरिक जितनी जल्दी हो सके, लम्बी उम्र वाला कम से कम एक फलदार या अन्य देसी पेड़ लगाए, तीन से चार साल तक उसकी परवरिश करें I
• पक्षियों के लिए घरों पर और सार्वजनिक स्थानों पर दाना पानी की व्यवस्था की जाए I
• सड़कों के दोनों तरफ घनी छाया वाले फलदार पेड़ लगाएं जाएँ I
• गौवंश आधारित जैविक खेती को सार्वकालिक और सार्वभौमिक मानते हुए उसको पूरे देश में अपनाया जाए I किसानों की मेहनत को सम्मानजनक प्रतिसाद मिले I
• हर सरकारी और निजी घर या कार्यालय में वर्षा जल संग्रहण (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) अनिवार्य किया जाए I
• कोल्डड्रिंक के कारखाने तुरन्त बन्द किए जाएं ताकि देश के सभी नागरिकों को कम से कम पीने का पानी तो मिल सके I
• गैर सरकारी पर्यावरणशास्त्रियों की जोरदार अनुशंसा पर ही इण्टर लाकिंग टाइल्स का विवेकपूर्ण उपयोग सुनिश्चित किया जाए I
• राजमार्गों के दोनों किनारों पर हर आधा किलोमीटर पर सोकपिट बनाए जाएं ताकि वर्षाजल भूजल के रूप में आसानी से संग्रहित हो सके I
• कागज़ का अन्धाधुन्ध उपयोग बन्द किया जाए I
• खेतों और जंगलों की जमीन की बिक्री के लिए पर्यावरण- संरक्षक नीति नियम बनाएं जाएँ I
• केन्द्र सरकार एक अभूतपूर्व निर्णय लेगी तो बेघरों को आवास मिलने की दिक्कतें कम हो जाएगी, अनावश्यक रूप से सीमेंट कांक्रीट के नए नए जंगल खड़े नहीं होंगे, खेती की जमीन खेती के लिए ही काम आएगी I इस निर्णय के तहत देशभर में किसी भी दम्पति को दो से अधिक रहवासी घर अथवा फ्लैट (फार्म हाउस सहित) या प्लाट का स्वामित्व रखने का अधिकार किसी भी हालत में नहीं रहेगा I
• सार्वजनिक बगीचों में सीमेंट कांक्रीट के मन्दिर बनाने की बजाय पूजनीय वृक्षों का ही रोपण करने के लिए सफलतापूर्वक प्रेरित किया जाए I
• पतले पौलीथीन का उपयोग प्रतिबन्धित किया जाए I
• तम्बाकू, गुटका आदि में पौलीथीन के पाउचों की बजाय कागज़ के पाउच का इस्तेमाल सुनिश्चित किया जाए I