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निरक्षता के दाग से बेदाग



 हेमेन्द्र क्षीरसागर
विकास केवल आर्थिक वृद्धि नहीं हैं बल्कि सभी लोगों के लिए बेहतर जीवन का अवसर हैं। षिक्षा और विकास अनेको तरीको से एक-दूसरे से जुडे हुए हैं। षिक्षा एक मानव अधिकार हैं, जो व्यक्तियों के विकास और जीवन के वास्ते आवष्यक हैं। व्यक्ति के विकास के द्वारा ही समाज का विकास संभव हैं। इस आधार पर षिक्षा भी एक मूलभूत आवष्यकता हैं। यह एक साधन भी हैं जिसके माध्यम से सामूहिक तथा व्यक्तिगत जरूरते पूरी होती हैं। इस प्रकार षिक्षा एक संसाधन हैं, जिसके द्वारा कौषलता और कार्यक्षमता विकसित की जाती हैं। इसीलिए, इसे राष्ट्रीय विकास के एक अभिन्न अंग के रूप में देखा जा सकता है।
अभीष्ठ, भारत में ही नहीं, विष्व के सभी देषों में जनसंख्या तेजी से बढ रही है, किन्तु उसी अनुपात में षिक्षा के साधन नहीं बढ रहे हैं। इसके साथ ही सरकार द्वारा प्राप्त शैक्षिक सुविधाओं का लाभ जिन्हें मिलना चाहिए, उन्हे नहीं मिल पा रहा हैं, और जिसका प्रमुख कारण हैं  निर्धनता। रोटी, कपडा, मकान और स्वास्थ्य, रोजगार की पूर्ति हेतु निर्धन व्यक्ति दिन-रात परिश्रम करता हैं। उसे बच्चों को विद्यालय भेजने का समय नहीं मिलता। इन परिवारों के जो बच्चे विद्यालय में प्रवेष लेते हैं, उनमें से भी लगभग 50 प्रतिषत कक्षा आठवीं तक पढना छोड देते हैं, और रोजी-रोटी कमाने में माता-पिता के साथ लग जाते हैं।
लिहाजा साक्षरता का अक्षर दीप प्रज्जलवित करने के लिए विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में भारी भरकम निधि प्रदान की गई हैं। भारत में निरक्षरता के निराकरण के लिए अनेक योजनाएॅं चालाई गई और जा रही हैं गोया पूर्वबाल्यावस्था देखभाल और षिक्षा, प्रारंभिक षिक्षा का सार्वभौमिकीकरण, साक्षर भारत व प्रौढ षिक्षा मिषन, स्कूल चले हम और राष्ट्रीय षिक्षा मिषन, मध्यान्ह भोजन योजना, बेटी बढाओ-बेटी पढाओं अभियानादि। यथा इन्हें और अधिक व्यवहारिक और धरातलीय बनाने की जरूरत हैं बनिस्बत निरक्षता के दागे से बेदाग हो सकते हैं।
क्योंकि निरक्षरता विकास के मार्ग में सबसे बडी बाधा हैं, यह निर्णय लेने और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण में लोगों की सहभागिता को हत्तोसाहित करती हैं। निरक्षर अभिभावक षिक्षा के महत्व के प्रति जागरूक नहीं हैं और अपने बच्चों को विद्यालय नहीं भेजते। यह शोषित और पीडित होकर एक निम्न स्तरीय जीवन जीने मजबूर रहते हैं, और अपने जीवन के स्तर को ऊंचा उठाने और गुणवत्ता सुधारने के अवसरों से वंचित होते रहते हैं।
बदस्तूर दुनिया में आज भी अनुमानतः 77 करोड 40 लाख निरक्षर लोग मौजूद हैं, जिनमें से दो तिहाई महिलाएॅं हैं। इन निरक्षरों की एक तिहाई जनसंख्या भारत में रहती हैं। साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में संपूर्ण साक्षरता दर केवल 74 फीसदी हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि बीते एक दषक में साक्षर पुरूषों की संख्या में 31 प्रतिषत, जबकि साक्षर महिलाओं की संख्या में 49 प्रतिषत का इजाफा हुआ हैं। प्रतिभूत भारत के पास विष्व में निरक्षरों और शालाओं न जाने वाले बच्चों की सबसे बडी सेना खडी है। और बढती जनसंख्या के कारण निरक्षरों और शाला न जाने वाले बच्चों की संख्या और अधिक बढने की संभावना हैं। पहले ही पढाई छोड देने वाले, नियमित रूप से विद्यालय न जाने वाले और कभी नामांकन न कराने वाले बच्चों की संख्या अत्यधिक हैं। षिक्षा की गुणवŸा और स्तर संतोषजनक नहीं हैं, अपितु पर्याप्त मात्रा में प्रषिक्षित षिक्षक मौजूद नहीं हैं।
बहराल, भारत में बालश्रमिकों की लम्बी चौडी फौज हैं, जिनमें अधिकतर निरक्षर हैं। इन बच्चों को चिन्हांकित कर विभिन्न माध्यमों से षिक्षा दिलाने का प्रयास तो किया गया लेकिन मुख्यधारा में कदापि नहीं लाया गया। इसके अलावा सौ फीसदी प्रवेष और स्कूलों में नियमित रहकर अध्ययन करने का लक्ष्य अभी भी अधूरा हैं। इसकी भरपाई हुनर और कमाई मूलक षिक्षा से की जा सकती हैं।
प्रत्युत, राष्ट्रपिता महात्मा गॉंधी ने भारत के लिए निरक्षरता को एक अभिषाप और कलंक माना और आजादी के 60 साल के बाद भी हम इस कलंक से पूरी तरह बेदाग होने में असफल रहे हैं। यह एक ऐसा धब्बा हैं जो व्यक्तित्व के सम्पूर्ण ओज पर एक काला दाग लगा देता हैं। दूसरी ओर साक्षरता हैं, दिव्य प्रखरता के लिए एक आवष्यक गुण। दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं हैं, जो निरक्षरता के कारण अंगूठाटेक या अंगूठाछाप कहे जाते हैं और हेय दृष्टि से देखे जाते हैं, जो व्यावहारिकता में एक साक्षर के सामने कहीं नहीं ठहरते हैं।
अतएव निरक्षरता के काले दाग को मिटाने का महाअभियान साक्षरता एक अभियान नहीं हैं, बल्कि एक राष्ट्रीय धर्म हैं, जिसे देष के प्रत्येक नागरिक को निभाना हैं। इसीलिए जरूरी है कि हम सभी इस अभियान को सफल बनाने की दिषा में जीजान से जुट जाएॅं और हर भारतवासी ईद-गिर्द मौजूद निरक्षरता के दाग को बेदाग करें। फलीभूत हम निरक्षरों में अक्षर-अक्षर दीप बनकर टिमटिमाएंगे तो अलोकित पूरा देष होंगा।

 

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