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कुटीर उद्योग को बढावा देने कौशल उन्नयन एवं मार्केटिंग जरूरी



विचार महाकुंभ में कुटीर उद्योग पर विशेषज्ञों ने रखे विचार
उज्जैन जिले के निनौरा में  सिंहस्थ का सार्वभौम संदेश तैयार करने के लिये हो रहे अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ में कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये विषय-विशेषज्ञों ने गहन विमर्श किया।  सत्र की अध्यक्षता कर रहे छत्तीसगढ वित्त आयोग के अध्यक्ष श्री चन्द्रशेखर साहू ने कहा कि कुटीर उद्योग रोजगार का सबसे बड़ा माध्यम है।  वक्ताओं ने मुख्य रूप से इस बात पर जोर दिया कि कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने के लिये कौशल उन्नयन प्रशिक्षण, मार्केटिंग और स्थानीय संसाधनों के समुचित उपयोग के लिये सुनियोजित रणनीति बनाने की जरूरत है।  

सत्र में उड़ीसा के श्री  जगदानंद जी ने कहा कि नयी पीढ़ी को कुटीर उद्योग से जोड़ने के लिये जरूरी है कि इसे लाभकारी बनाया जाए।  हेण्डीक्राफ्ट और वस्त्र  उद्योग में कुटीर उद्योग का लगभग 78 प्रतिशत योगदान है।  इस क्षेत्र में रोजगार की असीम संभावनाएँ हैं।  

छोटे कारखाने को समाज और बड़े कारखाने समाज को नियंत्रित करते हैं

आईआईटीयन्स श्री प्रदीप शर्मा ने कहा कि गाँव-गाँव में चलने वाले छोटे कारखाने यानी कि कुटीर उद्योग समाज द्वारा नियंत्रित होते थे, जबकि बड़े कारखाने समाज को नियंत्रित करने लगे हैं। उन्होंने बताया कि सन् 1859 में एक कलगरिया ’लोहा बनाने वाले’ की कमायी आज के साफ्ट इंजीनियर से तुलनात्मक रूप में ज्यादा होती थी। उन्होंने कहा कि इस तरफ ध्यान नहीं देने के कारण इस काम से जुड़े लोग बड़े उद्योगों में मजदूरी कर रहे हैं। श्री शर्मा ने बताया कि प्राकृतिक संसाधनों का सीधे उपयोग कर उत्पाद बनाना कुटीर उद्योग है, जबकि संसाधनों को अविष्कृत कर उत्पाद बनाना उद्योग है।  

पुणे की श्रीमती एस.बेदी ने कहा कि भारत की 84 प्रतिशत आबादी किसी न किसी रूप में कुटीर उद्योगों से जुड़ी हुई है।  उन्होंने उत्तराखण्ड से कच्छ तक के कुटीर उद्योगों के बारे में अपने अनुभव बताये। उन्होंने कहा कि कुटीर उद्योगों की केपेसिटी बिल्डिंग के लिये वित्त प्रबंधन जरूरी है।

वर्धा के श्री दिलीप ने कहा कि कुटीर की नींव समाज की परम्पराओं में हैं। उन्होंने कहा कि जल, जंगल और जमीन को अलग-अलग दृष्टि से देखने के बजाए समग्र रूप से देखा जाए। मछली-पालन को  बढ़ावा दिया जाए। श्री दिलीप ने कहा कि रिसोर्स मेनेजमेंट बहुत जरूरी है।

आईसेक्ट विश्वविद्यालय के निदेशक श्री शंभूरतन अवस्थी ने कहा कि गाँव को आत्म-निर्भर बनाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि यह कुटीर उद्योगों के विकास से ही संभव है। डॉक्टर पी.बी. काले ने कुटीर उद्योग के क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों की जानकारी दी। श्रोताओं में से कुछ लोगों ने कहा कि पहली कक्षा से ही उद्यमिता का पाठ पढ़ाया जाए। वक्ताओं ने श्रोताओं की जिज्ञासाओं का समाधान भी किया।

 

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