सूखे ने सुखाया लोगों का भाविष्य
प्रमोद कुमार
आज देश में अनेक राज्यों के करोड़ों लोग सूखे की मार झेल रहे हैं। सूखे की वजह से लोगों का जीना दुर्लभ हो रहा है। राज्य के करोड़ों लोग अपना सारा कामकाज छोड़कर पूरा समय सिर्फ और सिर्फ पानी के बारे में ही सोचते रहते हैं कि इस भयानक चेतावनी से कैसे निजात पाया जाए और अपने जीवन को पहले की तरह कैसे खुशहाल व्यतीत कर सकें और अपने कामकाज में भी पूरा ध्यान लगा सकें। लोग पीने के पानी के लिए दर-दर ठोकरें खाने के लिए मजबूर हैं। बहुत से शहरों में हजारों-लाखों लोग पानी खरीद कर अपना गुजारा कर रहे हैं लेकिन ये सब कबतक चलेगा? लोग इस खूखे की मार की बौछार अपने सीने पर कबतक सहेंगे? इस समस्या का हल निकालने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कदम आगे बढ़ाते हुए सूखे से सर्वाधिक प्रभावित तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मिलकर लोगों के लिए एक अच्छी पहल की है। मोदी ने तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से अलग-अलग मुलाकात कर हर एक की समस्या की गंभीरता को तथ्यात्मक रूप से समझने का प्रयास किया है। महाराष्ट्र की ओर से मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पानी की किल्लत से निजात पाने के लिए केंद्र सरकार से करीब 50 हजार करोड़ रुपये की सहायता मांगी है, जबकि पानी की ट्रेन लौटाने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 10,600 करोड़ रुपये की मांग कर 78,000 हजार जलस्रोतों को पुनर्जीवित करने की योजना सामने रखी। वहीं कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सूखे से निपटने के लिए 12,272 करोड़ रुपये की मांग की। सूखे के मामले में तीनों राज्यों में से सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के लोगों की स्थिति सबसे खराब है। सूखे की चपेट में नए 11 हजार गांवों के आने के बाद 28 जिलों में 28 हजार 262 गांवों के लाखों करोड़ों लोग सूखे से प्रभावित पाए गए हैं। फिलहाल महाराष्ट्र ने केंद्र की सहायता के रूप में 3500 करोड़ रुपये मिलने की बात स्वीकार की है लेकिन महाराष्ट्र को मिली राशि पर्याप्त नहीं मानी जा रही है। दरअसल महाराष्ट्र सहित सभी क्षेत्रों में सूखा नई बात नहीं है। इन शहरों में पानी की समस्या हमेशा बनी रहती है। ऐसे में अब दूरगामी उपायों पर विचार करना आवश्यक है। विशेष रूप से महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित मराठवाड़ा में जलस्रोतों पर ध्यान देने की जरूरत है। कुछ जगह नए जलस्रोतों की जरूरत है, तो कुछ जगह पुराने संसाधनों को सुधारने की जरूरत है। कुछ पुराने बांधों-तालाबों और नदियों में मिट्टी इतनी भर चुकी है कि मामूली बरसात में पानी बेकाबू होकर आसपास बह जाता है। इसी प्रकार कुएं गायब हो चुके हैं और तालाब भी क्षुब्द हो गए हैं। पुरानी जलसंरक्षण की योजनाएं कागजों के बंद कमरे में ही सिमट कर रह गई हैं। इसलिए अब नए सिरे से ही काम करने की आवश्यकता है। महाराष्ट्र ने एक अभियान के रूप में छोटे स्तर पर ग्रामीण भागों में जल सार्मथ्य की भावना को जागरूक करने की कोशिश की है। कुछ शहरों में उसे अच्छा समर्थन मिला है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। इसी समूचे परिदृश्य में राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के बहाने अपन राज्य की दृष्टि को भी बेहतर ढंग से उनके समक्ष रखा है। अब केंद्र से मदद मिलने के बाद जरूरत योजनाओं को मूलरूप में लाने की है। सूखे का सामना पहले भी हुआ है और आगे भी होगा किंतु सरकारों के दूरगामी उपायों से ही सफल भविष्य की कोई उम्मीद लगाई जा सकती है। अन्यथा चर्चाएं और बैठकें तो पहले भी कम नहीं हुई हैं। महाराष्ट्र में सूखा लगातार पड़ रहा है और हालात बद से बदतर हो रहे हैं किंतु समस्या का स्थायी हल नहीं है। बरसात के बाद सभी बातेंमौसम की तरह आई-गई हो जाती हैं। वर्तमान संकट हर तरफ से आम जनजीवन को प्रभावित कर रहा है इसलिए जल संकट से उबरने के उपाय राज्य की सामाजिक संरचना के संरक्षण के साथ आर्थिक प्रगति के लिए भी आवश्यक हैं। अब सूखे निजात पाने के लिए तात्कालिक व्यवस्था से आगे निकलने की जरूरत है। अवश्य ही यह राज्य सरकार के लिए चुनौती है, लेकिन उसके आगे ही सफलता का दायरा बढ़ता है। देश और दुनिया में सूखे से उबरने के अनेक उदाहरण हैं। महाराष्ट्र भी अपने ईमानदार प्रयासों से उनमें से एक क्यों नहीं हो सकता? 2016 में संसदीय कमेटी की एक रिपोर्ट के अनुसार दक्षिणए पश्चिम और केंद्रिय भारत के नौ राज्यों में ग्राउंड वॉटर लेवल खतरे के निशान को पार कर गायब होने की कगार पर हैं। इन राज्यों में 90 फीसदी ग्राउंड वॉटर का इस्तेमाल किया जा चुका हैं। एक और रिपोर्ट के अनुसार 6 राज्यों के 1.071 ब्लॉक मंडल और तालुका में 100 फीसदी ग्राउंड वॉटर का इस्तेमाल किया जा चुका है। पूरे संसार में ग्राउंड वॉटर को लेकर सबसे ज्यादा बेहाल स्थिति हमारे देश भारत की है लेकिन इतना बड़ा खतरा इस देश में न तो यहां के नेता और न ही यहां की जनता के लिए कोई मुद्या है। हमें इस भयाभय चुनोती का डटकर सामना करना चाहिए। शहरों में पड़ रहे सूखे के हालात हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हमें अपने घर और घर के आसपास बर्बाद हो रहे पानी को बचाना चाहिए नहीं तो अगर पानी सिर के ऊपर से निकला तो फिर सिर्फ गला ही नहीं लोगों का पूरा भाविष्य ही सूख जायेगा।