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सिंहस्थ क्षेत्र में तूफान से हुआ हादसा: पड़ताल की आवश्यकता



डाॅ. चन्दर सोनाने
        सिंहस्थ मेला क्षेत्र में गत दिवस आंधी, बारिश और तूफान ने भूचाल ला दिया। कई बडे पंडाल ताश के पत्तों की तरह गिर गए। इस हादसे में सात लोगों की जानें र्गइं। बाबा महाकाल की कृपा से शीघ्र ही स्थिति नियंत्रण में आ गई। हादसे के अगले ही दिन सिंहस्थ का द्वितीय पर्व स्नान होने पर लाखों श्रद्धालुओं ने उज्जैन पहुंच कर सिंहस्थ के प्रति अपनी आस्था और विश्वास का परिचय दिया। वे इस प्राकृतिक आपदा से घबराए नहीं और न ही हताश हुए बल्कि दोगुनी उमंग और उत्साह के साथ उज्जैन आकर पतीत पावन शिप्रा नदी में डुबकी लगाकर पुण्य प्राप्त किया । श्रद्धालुओं ने सहज ही यह सिद्ध कर दिया कि आपदा से भारी हैं आस्था । यह सही हैं कि यह एक प्राकृतिक हादसा था ,किंतु यहाँ सवाल यह उत्पन्न होता हैं कि इस हादसे से प्रशासन भौचक्का क्यों रह गया ? हादसें ने प्रशासन की तैयारियों की पोल खोल कर रख दी। भीषण गर्मी के दिन मे आंधी और तूफान के साथ आने वाली बारिश से खेतों में लगे पंडालों की क्या स्थिति हो सकती हैं, इसका अंदाजा प्रशासन ने क्यों नही लगाया ? इन सब कारणों की पड़ताल जरूरी हैं।
                प्रदेश के मुुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान ने सिंहस्थ के आयोजन के लिए अपना खजाना खेाल दिया था। इसमें कोई संदेह नही हैं, किंतु उन्होंने सिर्फ उज्जैन में तैनात अधिकारियों पर ही विश्वास किया । उनके कार्यो पर कोई सजग निगरानी नही रखी। स्थानीय अधिकारियों ने जो भी योजनाएं बनाई, उसको मंजूर करते चले गए। उन योजना की समीक्षा जरूरी थी, जो नहीं की गई । किसी भी बड़े पर्व स्नान के संबंध में यह सामान्य सिद्धांत हैं कि प्राकृतिक आपदा की स्थिति में तुरंत क्या करना आवश्यक हैं, यह प्रशासन को पता होना चाहिए।  यहीं आपदा नियंत्रण का प्रबंधन आवश्यक हैं। किंतु उज्जैन सिंहस्थ मेला क्षेत्र में आंधी तूफान से आई बारिश ने स्थानीय प्रशासन के होश उड़ा दिए। इस आपदा से निपटने के लिए उनकी कोई तैयारी नही थी। राज्य शासन स्तर पर आपदा नियंत्रण के प्रबंधन की कोई निगरानी तथा समीक्षा भी नही की गई । जो अचानक हुआ वह होता चला गया। स्थानीय जनप्रतिनिधि, विभिन्न स्वयं सेवी संगठन, समाजसेवियों, और नागरिकों की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने इस हादसें में बर्बाद हुए लोगों के लिए तुरंत ही सहायता की। प्रशासन तो हक्का बक्का था। उसे कुछ सुझ नही पा रहा था। ़स्थानीय लोगों की सहायता से प्रशासन ने प्रभावितों को सहायता मुहैया कराई।  
             यहां एक और चैंकाने वाली बात सामने आई हैं कि ठीक रामघाट के पास शहर के गंदे नाले के पानी की पाईप लाइन  इस दौरान टूट गई  और शहर के नाले का गंदा पानी सीधा रामघाट पर शिप्रा में घंटों मिलता रहा। यही नही, रूद्र सागर में पंरंपरा के अनुसार पिछले अनेक सालों से शंकराचार्यों तथा अन्य के पंडाल लगते हैं । इस रूद्र सागर से होते हुए ही शहर के गंदे पानी के नालों को बाहर निकालने की पाईप लाईन बिछाई गई हैं। यह सबको पता हैं। आंधी, तूफान और बारिश के कारण यदि इसका गंदा पानी रूद्र सागर में फैल जाता तो चारों और बदबूदार और गंदा पानी फैल जाता। इस प्रकार छोटी किंतु महत्वपूर्ण बातों को आपदा निंयत्रण के प्रबंधन के अंतर्गत पूरा आंकलन कर उससे निपटने के लिए किए जाने वालों उपायों की तैयारी कर ली जाती हैं, ताकि ऐसे हादसे होने पर तुरंत स्थिति पर नियंत्रण किया जा सके। इससे कम से कम आर्थिक हानि और जनहानि हो और तुरंत प्रभावितों को हर प्रकार की मदद मुहैया कराई जा सकें।
            यहां यह भी उल्लेखनीय हैं कि मौसम विभाग ने पूर्व से ही जिला प्रशासन को आंधी, तूफान और बारिश की सूचना दे दी थी। इसी सूचना के आधर पर पुलिस मुख्यालय भोपाल में पदस्थ कानून व्यवस्था और सुरक्षा के पुलिस महानिरीक्षक श्री मकरंद देउस्कर ने उज्जैन कलेक्टर श्री कवीन्द्र कियावत और राज्य प्रशासन के गृह विभाग को लिखित में आगाह भी कर दिया था। पुलिस महानिरीक्षक ने यह भी चेताया था कि आंधी, तूफान और बारिश की स्थिति में तुरंत की जाने वाली आपदा प्रबंधन के अंतर्गत की जाने वाली व्यवस्थाएं कर ली जाए। किंतु, जिला प्रशासन द्वारा इस दिशा में कुछ भी नहीं किया गया। उसके द्वारा क्यों कुछ नही किया गया, यह एक पड़ताल का विषय हैं। जबकि जिला प्रशासन को अच्छी तरह से ज्ञात था कि पूरा सिंहस्थ मेला क्षेत्र काली मिट्टी के खेत में ही बसाया गया हैं, काली मिट्टी एक बारिश में ही फूलकर वहां लगे पंडाल को धराशाई कर सकती हैं। और यही हुआ भी। मेला क्षेत्र में करीब चार हजार से अधिक पंडाल लगे थें। इनमें करीब दस प्रतिशत बड़े पंडाल थें । इन्हीं बडे पंडालों के आंधी तूफान में गिरनें से सात लोगों की जाने ंगई । यह एक जांच का विषय हैं। इसें राज्य शासन को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए।
        प्र्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने शाम को हुए हादसे के बाद अगले दिन प्रातः चार बजे ही उज्जैन आकर, अस्पताल जाकर घायलों से मिलकर, प्रभावितों को सांत्वना देकर स्थिति की विस्तृत समीक्षा भी की । और मेला क्षेत्र पूर्ववत बस जाए इस दिशा में आवश्यक निर्देश भी दिए। मुख्यमंत्री द्वारा मृतकों को पांच लाख रूपयें और घायलों कों 50 हजार रूपयें देने की घोषणा कर प्रभावितों पर मल्लम भी लगाया । भविष्य में फिर इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न नहीं हो, इसके लिए आपदा नियंत्रण के प्रबंधन ठीक तरह से करने की अब आवश्यकता हैं । सिंहस्थ के बाद ही सही, सिंहस्थ में आपदा नियंत्रण के प्रबंधन के उपाय करने और योजना नही बनाने के कारणों की भी पड़ताल करना जरूरी है। और दोषियों के विरूद्ध कारवाई भी आवश्यक हैं । शासन में अच्छे कार्य करने वालों की जहां सराहना करना आवश्यक हैं, वहीं काम में लापरवाही करने वालों के विरूद्ध सख्त कारवाई की जाना भी आवश्यक हैं।  

 

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