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सिंहस्थ में पेयजल और शौचालय की स्थिति बद्तर, जिम्मेदार नगर निगम आयुक्त के विरूद्ध हो कार्यवाही


                                             डाॅ. चन्दर सोनाने

 सिंहस्थ में मूलभूत आवश्यकताएं हैं पीने का पानी और शौचालय की सुविधा। किंतु, यही सिंहस्थ में पूरी तरह से ठीक नहीं हो पा रहा हैं। सिंहस्थ को शुरू हुए अभी एक सप्ताह हो गया है, बावजूद अभी भी स्थिति बद्तर हैं । छोटे पंण्डालों के साधु संत परेशान और बेहाल हैं। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा इस स्थिति को गंभीरता से लिया गया हैं। उनके निर्देश पर प्रभारी मंत्री ने दोषी और कार्य में लापरवाही करने वाले अधिकारियों की खोजबीन शुरू कर दी हैं।

पेयजल और मूलभूत सुविधाओं की जिम्मेदारी नगर निगम की हैं । और यह कार्य यदि नगर निगम पूरी क्षमता के साथ नहीं कर रहा हैं, तो निश्चित रूप से नगर निगम के आयुक्त श्री अविनाश लवानिया ही जिम्मेदार हैं। विभाग के प्रमुख द्वारा कार्य में लापरवाही , उदासीनता और कर्तव्य विमुखता यदि की जाए तो सबसे पहले विभाग प्रमुख के विरूद्ध ही कार्यवाही होनी चाहिए । यही नियम, परंपरा और न्याय का सिद्धांत हैं। किंतु मगरमच्छ को छोड़कर छोटी मछलियों को अपने जाल में फंसाने का प्रयास प्रभारी मंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह द्वारा किया जा रहा हैं।

सिंहस्थ प्रभारी मंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह द्वारा सिंहस्थ में पेयजल और मूलभूत सुविधाओं की बदइंतजामी के लिए एक छोटे अधिकारी उपायुक्त श्री विशाल सिंह चौहान तथा एक सहायक आयुक्त के विरूद्ध कार्यवाही की जाना प्रस्तावित की गई हैं। यदि ये दोषी हैं तो इनके विरूद्ध जरूर कार्यवाही की जानी चाहिए। किंतु प्रभारी मंत्री द्वारा अपने मंत्रिमंडल के साथी के दामाद नगर निगम आयुक्त श्री अविनाश लवानिया के विरूद्ध कार्यवाही नहीं करना कई शंकाओं को जन्म दे रहा हैं। इससे राज्य शासन और प्रभारी मंत्री की छवि धूमिल हो ही रही हैं । इसको तुरंत सुधारने की आवश्यकता हैं।

प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने जब करीब छः माह पूर्व उज्जैन में सिंहस्थ के संबंध में पत्रकारों से रूबरू चर्चा की थी तब उज्जैन के मीडिया के साथियों ने यह बात प्रमुखता से उठाई थी कि वर्तमान में सिंहस्थ मेला अधिकारी और नगर निगम आयुक्त दोनों पद पर एक ही अधिकारी पदस्थ हैं। यही नहीं उज्जैन के स्थानीय पत्रकारों ने मुख्यमंत्री को इस बात से भी चेताया था कि सिंहस्थ कार्य में पैंतीस विभागों को तीन हजार करोड़ रूपये से अधिक की राशि मुहैया की गई हैं । इनमें से सर्वाधिक 446 करोड़ रूपये की राशि नगर निगम को उपलब्ध कराई गई हैं। किंतु इतनी बड़ी राशि के लिए एक पूर्णकालिक अधिकारी नही होते हुए अतिरिक्त प्रभार वाले व्यक्ति को यह काम दिया गया हैं। मुख्यमंत्री को इस बात के लिए भी आगाह किया गया था कि नगर निगम को सिंहस्थ में मुख्य रूप से पीने का पानी और मूलभूत सुविधाओं का इंतजाम करना होता हैं इसलिए नगर निगम आयुक्त के पद पर पूर्णकालिक अधिकारी को अलग से पदस्थ किया जाए। मुख्यमंत्री द्वारा उस समय इस दिशा में आवश्यक कार्यवाही करने हेतु प्रत्रकारों को आश्वस्त भी किया गया था।

यही नहीं जिले एवं सिंहस्थ के प्रभारी मंत्री नियुक्त होने पर श्री भूपेन्द्र सिंह को भी उनकी पहली पत्रकार वार्ता में इस दिशा में पत्रकारों द्वारा सचेत किया गया था। प्रभारी मंत्री द्वारा भी शीघ्र इस दिशा में कार्य करने की बात कही गई थीं। किंतु आश्चर्य एवं दुखः है कि न तो प्रदेश के मुख्यमंत्री ने और न ही प्रभारी मंत्री ने इस दिशा में सार्थक प्रयास किये। परिणाम सामने हैं। साधु संत ही नही बल्कि आम श्रद्धालु भी इसका खामियाजा भुगत रहे हैं। सिंहस्थ में पेयजल और मूलभूल सुविधा की स्थिति बदतर हैं। अभी भी समय हैं। नगर निगम आयुक्त के पद पर एक पूर्णकालिक अधिकारी की तैनाती आवश्यक हैं, ताकि वे अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का उपयोग करते हुए साधु संतों और श्रद्धालुओं को पेयजल और शौचालय की मूलभूत सुविधाएं दे सकें।

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