पहला शाही स्नान: पुलिस का कर्फ्यू सिंहस्थ अभी भी है मौका , कार्यप्रणाली में करें सुधार
डाॅ. चन्दर सोनाने
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने सिंहस्थ 2016 को भव्य , ऐतिहासिक एवं अभूतपूर्व बनाने के लिए तीन हजार करोड़ रूपये से अधिक राशि उज्जैन में मुहैया कराई। वे स्वयं लगातार सिंहस्थ कार्यो की प्रगति की समीक्षा करते रहे। साथ ही अपने विश्वसनीय साथी श्री भूपेन्द्र सिंह को भी सिंहस्थ प्रभारी मंत्री के रूप में तैनात कर सिंहस्थ की निरंतर समीक्षा की जिम्मेदारी उन्हैं सौंपी। मुख्यमंत्री और प्रभारी मंत्री ने उज्जैन के प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों पर विश्वास किया । किंतु उन्होने मुख्यमंत्री को निराश किया। सिंहस्थ के पहले शाही स्नान में करीब एक करोड़ श्रद्धालुओं के आने का दावा प्रभारी मंत्री द्वारा किया गया था, किंतु वास्तव में दस लाख श्रद्धालु भी शाही स्नान में नहीं आए। इसके कारणों की पड़ताल आवश्यक हैं। सबसे महत्वपूर्ण पुलिस का अव्यवहारिक और अनुभवहीन व्यवस्था रही ।
पुलिस महानिरीक्षक व्ही मधुकुमार ,डी.आई.जी. राकेश गुप्ता और पुलिस अधिक्षक एम.एस.वर्मा द्वारा शहर के बाहर सेटेलाइट टाउन से ही गाडियों को रोकने की योजना बनाई गई थी। वह सबको पता चल गई । पूरे उज्जैन शहर को बैरिकेटिंग से घेर दिया गया था। प्रत्येक घाट पर अनावश्यक बैरिकेटिंग की गई थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी भी प्रकार श्रद्धालु घाट तक नही पहुंच पाए इसके लिए पुलिस आमदा हैं। उज्जैन एक गलियों का शहर हैं। पुरानी उज्जैन की बस्ती गलियों में ही बसती हैं। सभी मार्गो को बैरिकेटिंग से पाट दिया गया था। सभी साढ़े आठ किलोमीटर लंबे घाटों पर सख्त बैरिकेटिंग कर दी गई थी। विशेष कर रामघाट, दत्त अखाड़ा, नरसिंगघाट आदि घाटों पर जाने वाली सभी प्रमुख गलियों पर बैरिकेटिंग लगाकर रास्ता रोक दिया गया था। हर जगह यह स्पष्ट लग रहा था कि जैसे भी हो श्रद्धालुओं को रोका जाए। प्रेस को कव्हरेज के लिए जितनी इस बार परेशानी आई इतनी पिछले किसी भी सिंहस्थ में नही आई थी। यह स्पष्ट कहना हैं उज्जैन और बाहर से आने वाले मीडियाकर्मी का । एक तरह से पूरे शहर को कफ्र्यू ग्रस्त बना दिया गया था । जैसे घाटों पर श्रद्धालुओं के बजाय आंतकवादी आने वाले हो, ऐसी व्यवस्था पुलिस द्वारा की गई थी।
पुलिस द्वारा की गई इस व्यवस्था की जानकारी स्थानीय नागरिकों द्वारा बाहर के अपने मित्रों और रिश्तेदारों को स्पष्ट रूप से बताई जा रही थी। उज्जैन के निवासियों द्वारा यह भी बताया जा रहा था कि हाल फिलहाल इस शाही स्नान पर नहीं आए। आएंगे तो बहुत परेशानी का सामना करना पड़ेगा और पांच से दस किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ेगा। आज की इस भौतिक सुख सुविधा वाले युग में कोई नही चाहेगा कि वह भीषण गर्मी में पांच से दस किलोमीटर पैदल चलें । बाहर के लोगो को जब यह मालुम पड़ गया कि शाही स्नान के दिनों में आना अर्थात परेशानियों को न्यौता देना हैं तो वे आए ही नहीं। सामान्यतः ग्रामीण अंचल से आने वाले श्रद्धालु पर्व और तिथियों पर बिना परेशानी की चिंता करे शिप्रा नदी में डुबकी लगाने के लिए आते रहे हैं। उन्हें कभी इतना लंबा पैदल चलने की नौबत नही आई, किंतु जब उन्हें भी यह पता चला कि इस बार पुलिस कफ्र्यू के सायें में सिंहस्थ आयोजित करने जा रही हैं तो वे भी शाही स्नान का पुण्य कमाने से मजबूरी वस किनारा कर गए।
उज्जैन के प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की अदूरदर्शिता और असफल योजना से अब भी सिखा जा सकता हैं। अभी सिंहस्थ की शुरूवात ही हुई हैं। कुल तीन शाही स्नान में से केवल एक ही शाही स्नान हुआ हैं। उसमें की गई भूलों से शिक्षा प्राप्त करते हुए और भूलों को सुधार करते हुए आगामी 9 मई और 21 मई को होने वाल शाही स्नान तथा शेष सात पर्व स्नानों पर ऐसी व्यवस्था करें कि श्ऱद्धालुओं को कम से कम परेशानी हो और उन्हें कम से कम पैदल चलना पड़े।
प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान मन से सिंहस्थ को सफल करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने अपना खजाना भी खोल दिया हैं। उन्हैं अब स्वयं यहाँ की व्यवस्थाओं पर सजग निगाह रखनी पड़ेगी। प्रभारी मंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह को गाड़ी से नही बल्कि सामान्य दर्शनार्थी जैसा उज्जैन में भ्रमण कर परेशानी को समझना होगा। उन्हें स्थानीय जनप्रतिनिधियों और अनुभवी समाज सेवी तथा पत्रकारों के अनुभव का लाभ लेकर स्थिति में आमौलचूल परिवर्तन करना होगा । उन्हें अधिकारियों पर कम और स्थानीय जनप्रतिनिधियों पर अधिक विश्वास कर चलना होगा । अब उन्हें जरूरत हैं उज्जैन के प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों पर अपनी सख्त नकेल कसने की तभी सिंहस्थ सफल होगा अन्यथा यह सिंहस्थ अव्यवस्थाओं के लिए भविष्य में जाना जाएगा।