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सफलता के लिये अच्छाई का निवेश जरूरी है - ललित गर्ग


अच्छाई और सफलता की कसौटी क्या है? इनका कोई लेबल नहीं, न  कोई आवरण है। व्यक्ति की कार्यशैली, व्यवहार, कर्म, वाणी, रहन-सहन, प्रकृति और स्वभाव ही उसका मापदंड है। सफलता भाग्य की फसल और पुरुषार्थ की निष्पत्ति है। हर किसी को वह नसीब नहीं होती, यह सतत जागरूकता, जीवन के प्रति सकारात्मकता एवं अच्छाई की ग्रहणशीलता से संभव है। कुछ अलग पहचान बनाने या सफलता को हासिल करने के लिये जरूरी है कि हम जिस चेहरे पर जिस विशेषता की गरिमा को देखें, उसे आदर से जीना सीखें, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति चाहता है अच्छा बनना, महान बनना, सफल बनना। हमें उन भूलों को लगाम देनी होगी, जिनकी स्वच्छंदता जीवन  विकास में बाधक बनती है। 
सफल एवं सार्थक जीवन को जो लोग धारण करते हैं उनका व्यक्तित्व फौलादी होता है और वे बिना सोचे-समझे जल्दबाजी में जीवन का कोई निर्णय नहीं लेते, ऐसे व्यक्ति अन्याय और शोषण को सहते नहीं, उनका दमन भी नहीं करते, अपितु उनका मार्गान्तरीकरण करते हैं। मानवीय संवेदना के कारण वे सबके सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख मानते हैं। उनकी सम्पूर्ण जिन्दगी औरों के लिये समर्पित हो जाती है। ऐसे व्यक्ति श्रेष्ठता का प्रमाण नहीं देते, बल्कि वे स्वयं प्रमाण होते हैं। यही उनकी सोच और कर्मशीलता उनके अच्छे होने को प्रदर्शित करती है।
अच्छा बनने की राह में जिस व्यक्ति से कुछ सीखा जाता है, उसका बड़ा-छोटा होना महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण है उससे सीखी जाने वाली बात। यदि किसी बहुत बड़ी हस्ती में कोई ऐब है तो वह त्याज्य है और यदि किसी बहुत छोटे आदमी में कोई सद्गुण है तो वह ग्राह्य है। मानव का लक्ष्य मानवता की प्राप्ति है, व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व की प्राप्ति नहीं। उसका आदर्श सार्वभौम अच्छाई है, सीमित अच्छाई नहीं। उसे ब्रह्म का अंश कहा जाता है। उसके अंदर भगवान का निवास माना जाता है। इससे सिद्ध है कि उसमें प्रच्छन्न रूप से इतनी अधिक शक्ति मौजूद रहती है कि वह अपने भीतर के सत् तत्व का सहारा लेकर अपनी सारी राक्षसी वृत्तियों का दमन कर सकता है और कितना भी अच्छा और कितना भी बड़ा बन सकता है। अपना निर्माता वह स्वयं है, जिसके लिए वह प्रेरणा और संबल कहीं से भी, किसी से भी ले सकता है। यदि वह हर व्यक्ति से कुछ लेने और सीखने का रास्ता खुला रखे तो उसकी उपलब्धियों की कोई सीमा नहीं रहेगी।
सबसे खास बात यह है कि एक सफल व्यक्ति की तुलना में एक अच्छे इंसान की उपलब्धि लंबे समय तक स्मृति में बनी रहती है। उसके लिए किए गए काम का दायरा भी व्यक्तिगत स्तर से ऊपर होता है। लेखक निक हाॅर्नबी के अनुसार, एक सफल व्यक्ति अपनी उपलब्धियों की वजह से पहचाना जाता है। हालांकि यह उपलब्धियां मूलभूत रूप से केवल उसे फायदा पहुंचाने वाली होती हैं, लेकिन एक अच्छे व्यक्ति का काम स्वार्थ से परे होता है।
अच्छे इंसान बनने के लिये सत्ता, सम्पत्ति और शक्ति कल्पना ही आधारहीन है। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गांधी, आचार्य तुलसी विश्व क्षितिज पर सूर्य की तरह चमक उठे। यह सत्ता शक्ति की परिणति नहीं है। बल्कि उनकी मर्यादा, कर्मयोग-करुणा, संवेदनशीलता, परोपकारिता और अहिंसा ने उन्हें आकाशीय ऊंचाइयां दी थी। फ्रांस के एक शीर्षस्थ राजनीतिज्ञ से किसी ने  पूछा-‘आप इतना अधिक काम करने के साथ ही सामाजिक हित के अन्य कार्यों में भाग लेने के लिए कैसे समय निकाल लेते हैं? उनका उत्तर था-मैं आज का काम आज ही कर लेता हूं।’ जो व्यक्ति एक-एक पल को कीमती समझकर उसका सही उपयोग करता है, समय को बिल्कुल नष्ट नहीं करता, वह अपने सौभाग्य का निर्माण कर सकता है।
भगवान महावीर ने गौतम से कहा-गौतम! क्षण भर भी प्रमाद मत करो अर्थात् एक समय भी व्यर्थ मत करो। काल की सबसे छोटी इकाई समय है। एक निमेष में असंख्य समय बीत जाता है। इतने सूक्ष्म समय का जो सम्मान करना जानता है, इस अमूल्य निधि को संजोना जानता है और समय की कद्र करना जानता है वह अवश्य ही ऊंचाइयों को छू सकता है, उच्चता के शिखर तक पहुंच सकता है और महानता का वरन करते हुए एक अच्छा एवं सच्चा इंसान बन सकता है। पैसा, प्रसिद्धि और शक्ति हासिल कर लेना उतना मुश्किल काम नहीं है, जितना सद्गुणों को बनाए रखना। यदि आप दस बार काम बिगड़ने के बाद भी सच का साथ नहीं छोड़कर 11वीं बार भी सजा पाते हैं और फिर अगली बार सच बोलने का साहस रखते हैं तो आप अच्छे हैं, आप गुणवान है, आप नैतिक है। 
एक बार रूसी लेखक टाॅलस्टाय से उनके एक मित्र ने कहा, मैंने तुम्हारे पास एक व्यक्ति को भेजा था। उसके पास उसकी प्रतिभा के काफी प्रमाणपत्र थे। लेकिन तुमने उसे चुना नहीं। मैंने सुना है कि तुम ने उस पद के लिए जिस व्यक्ति को चुना है, उसके पास ऐसा कोई प्रमाणपत्र नहीं था। आखिर उसमें कौन सा ऐसा गुण था कि तुम ने मेरी बात की उपेक्षा कर दी? लिओ टाॅलस्टाय ने कहा, मैंने जिसे चुना है उसके पास अमूल्य प्रमाणपत्र हैं। उसने मेरे कमरे में आने से पहले इजाजत मांगी थी। अंदर आने से पहले पैरों को दरवाजे पर रखा, ताकि बंद होने पर आवाज न हो। उसके कपड़े साधारण, परन्तु साफ सुथरे थे। उसने बैठने से पूर्व कुर्सी साफ कर ली थी, उसमें आत्मविश्वास था। वह मेरे प्रश्न का ठीक और संतुलित जवाब दे रहा था। मेरे प्रश्न समाप्त होने पर वह इजाजत लेकर चुपचाप उठा और चुपचाप चला गया। उसने किसी तरह की चापलूसी या चयन के लिए सिफारिश की कोशिश भी नहीं की। ये ऐसे प्रमाणपत्र थे, जो बहुत कम व्यक्तियों के पास होते हैं। ऐसे गुण संपन्न व्यक्ति के पास यदि लिखित प्रमाणपत्र न भी हों, तो कोई बात नहीं। आप ही बताइए, मैंने ठीक चयन किया या नहीं? टाॅलस्टाय ने यहां सफलता से ज्यादा अच्छाई-गुण को महत्व दिया। एक सफल व्यक्ति गुणवान हो जरूरी नहीं है, लेकिन एक गुणवान व्यक्ति जरूर सफल होता है। 
नाटककार जाॅन ड्राइडेन ने कहा था, ‘इस दुनिया के चारों ओर देखिए केवल कुछ लोग अपनी अच्छाई के बारे में जानते हैं या यह जानते हैं कि उन्हें इसे खोजना है।’ कोई भी सफलता या सफल व्यक्ति इसकी बराबरी नहीं कर सकता। अमेरिकी निबंधकार, कवि और दार्शनिक हेनरी डेविड थोरो के अनुसार अच्छाई एकमात्र निवेश है जो कि कभी असफल नहीं होता।
आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में-‘‘बड़ा वह नहीं है जो धनवान है, बड़ा वह है जिसमें त्याग की चेतना है, बड़ा वह नहीं जो तथाकथित उच्च कुल में जन्मा है, बड़ा वह है जो सच्चरित्री है। बड़ा वह नहीं है जो शास्त्रों का पंडित है, बड़ा वह है जो संयमी है। महानता और लघुता सापेक्ष मूल्य है।’ महान् बनने की अदम्य आकांक्षा रखनेवाले व्यक्ति को त्याग और बलिदान की वेदी पर अपने प्राणों की आहुति देनी होती है, दीपक बनकर जलना होता है, फूल बनकर खिलना होता है और जीवन शैली को बदलना होता है। 

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