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शादी के लड्डू और राजनीति के रसगुल्ले...!!



तारकेश कुमार ओझा
यदि कोई आपसे पूछे कि देश में हो रहे विधानसभा चुनावों की खास बात क्या है तो आपका जवाब कुछ भी हो सकता है। लेकिन मेरी नजरों से देखा जाए तो चुनाव दर चुनाव अब काफी परिवर्तन स्पष्ट नजर आने लगा है। सबसे बड़ी बात यह कि चुनाव  में अब वोटबैंक जैसी बात नदारद होती जा रही है। बड़े - बड़े दिग्गज भी चुनाव में जीत को लेकर पहले की तरह आश्वस्त नहीं रह पाते। उन पर जनता का भारी दबाव रहता है कि भैया चुनाव में खड़े हो तो कुछ करके दिखाओ। और कुछ नहीं तो कम से कम कुछ नामचीन चेहरों को ही हमारे सामने ले आओ।इसी बहाने किसी  सेलीब्रेटी के  दर्शन तो हों। फिर सोचेंगे किसे वोट देना है और किसे नहीं। राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के दौरान एक और खास बात नोट करने लायक रही। वह यह कि प्रख्यात फिल्म अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती इस बार चुनावी परिदृश्य में कहीं नजर नहीं आए। श्रीमान अपने गृह राज्य पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पा र्टी तृणमूल का्ंग्रेस के राज्यसभा सदस्य हैं। सांसद बनने के बाद यह पहला मौका है जब वे अपनी पा र्टी के लिए चुनाव प्रचार करने सामने नहीं आए। अन्यथा अपने गृह प्रदेश  ही नहीं पड़ोसी राज्यों में भी जरूरत होने पर वे अपनी पा र्टी का चुनाव प्रचार करते रहे हैं। बताते हैं कि सारधा चिटफंड घोटाले में नाम आने से मिथुन चक्रव र्ती काफी दुखी हैं। इसी के चलते उन्होंने अपनी पा र्टी ही नहीं बल्कि राजनीति से भी दूरी बना ली है। अब यह तो शादी के लड्डू की तर्ज राजनीति के रसगुल्ले  वाली बात होती जा रही है। जिसमें खाने और न खाने वाला दोनों पछताता है। पता नहीं ऐसी क्या बात है जो राजनीति ताकतवर लोगों को हमेशा लुभाती है। यह देखते हुए भी कि इससे पहले उनके जैसे कई लोग राजनीति से तौबा कर चुके हैं। लेकिन राजनीति का मोह लगातार नए - नए लोगों को अपनी जद में लेता जाता है। नजदीकियों के मुताबिक मिथुन चक्रवर्ती  पहले वामपंथी विचारधारा से प्रभावित रहे हैं। बंगाल के कम्युनिस्टों से उनकी काफी पटती थी। हालांकि अपनी कर्मभूमि महाराष्ट्र में वे शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे  के भी नजदीकी रहे हैं। लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि मिथुन तृणमूल का्ंग्रेस के करीब आए और पा र्टी ने भी उन्हें राज्यसभा भेज दिया।  लेकिन सारधा चिटफंड घोटाले में नाम आने से वे इतने दुखी हुए कि उन्होॆंने न सिर्फ राजनीति बल्कि लोगों से भी दूरी बना ली। हालांकि घोटाले में नाम आने के बाद मिथुन पहले ऐसे व्यक्ति रहे जिन्होंने आरोपी चिटफंड कंपनी से लिए गए पैसे बकायदा मामले की जांच कर रही सीबीआई को वापस कर दिए। लेकिन इसके बाद वे राजनीति से दूर होते गए। अनेक नामी - गिरामी हस्तियों के बाद मिथुन का भी राजनीति से हुआ मोहभंग शादी के लड्डू वाली कहावत को ही चरितार्थ करता है। जिसमें खाने वाला भी पछताता है और न खाने वाला भी। लेकिन यह सवाल कौतूहल का विषय है कि आखिर किन वजहों से खाते - पीते लोग राजनीति की ओर आकृष्ट होते हैं जबकि जल्द ही उनका इससे मोहभंग भी हो जाता है।शायद मन के मुताबिक स्थापित होने के बाद जीवन के एक पड़ाव पर ऐसे लोगों को महसूस होता है कि राजनीति से जुड़ कर वह खुद को अधिक सुरक्षित महसूस कर सकता है। कुछ लोग अपेक्षित व्यस्तता के लिए भी इसकी ओर आकृष्ट होते हैं। बेशक जीवन के एक मोड़ पर स्थापित होने के बाद किसी को भी लग सकता है कि वह राजनीति से जुड़ कर जनता की सेवा करे अथवा  इसके पीछे निश्चित योजना  या उद्देश्य भी हो सकता है। जैसे मिथुन चक्रवर्ती के मामले में बताया जाता है कि वे हमेशा जनता से जुड़े रह कर और ईमानदारी से सबसे ज्यादा टैक्स चुकाने वाले कलाकार के तौर पर मिली अपनी पुरानी पहचान से ही खुश थे। लेकिन उन्हें इस बात हमेशा मलाल रहा कि लंबे समय से रुपहले पर्दे से जुड़े रहने के बावजूद अभी तक उन्हें कोई सरकारी एवार्ड नहीं मिल पाया। संभव है इसी वजह से वे राजनीति की ओऱ आकृष्ट हुए हों।  उन्हें लगा हो कि ताकतवर राजनेताओं की छत्रछाया में शायद उन्हें वह सब  मिल सके जिसकी वे चाह रखते हैं। लेकिन यहां तो लेने के देने पड़ गए। लिहाजा  अमिताभ बच्चन व गोविंदा समेत तमाम अभिनेताओं की तरह जल्द ही उनका इससे मोहभंग हो गया।

 

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