साधु संतों को नही मिल रही मूलभूत सुविधाएँ लाखों श्रद्धालुओं के सामने रहेगी समस्याएँ
डाॅ. चन्दर सोनाने
साधु संतो के बिना सिंहस्थ की कल्पना नहीं की जा सकती हैं। इसलिए राज्य सरकार द्वारा साधु संतो को समस्त मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराना जरूरी भी समझा गया हैं। साधुओं की पेशवाई निकलने से यह स्पष्ट संकेत रहता हैं कि अब सिंहस्थ का आगाज हो गया हैं। देश भर से साधु संत इकट्ठे होकर सिंहस्थ मेला क्षेत्र में एक निश्चित तिथि को पूरे शानोशौकत और पूर्ण वैभव के साथ नगर से भ्रमण करते हुए सिंहस्थ मेला क्षेत्र में वहाँ प्रवेश करते हैं, जहां उनका शिविर रहता हैं। कुल तेरह अखाड़ों में से जूना अखाड़े की आज भव्य पेशवाई निकली। हजारों साधु संत और महामंडलेष्वर इस पेशवाई में ष्शामिल हुए। इसके बाद निर्धारित तिथियों पर अन्य अखाड़ों की भी पेशवाई निकलना तय हो गया हैं। किंतु, मेला क्षेत्र में अभी भी साधु संतों को मूलभूत सुविधाओं की दरकार हैं। वे शौचालय और मूत्रालय के लिए भटक रहे हैं। जहां बन भी गए हैं, वे गुणवत्ता पूर्ण नही हैं और अनेक शौचालय अभी से टूट फूट गए हैं । ऐसी स्थिति में सहज ही प्रश्न उठ रहा हैं कि जब साधु संतों के लिए ही मूलभूत सुविधाएं अभी तक मेला प्रशासन द्वारा जुटाई नही गई हैं तो सिंहस्थ समय में जब लाखों श्रद्धालु प्रतिदिन उपस्थित होगें तब क्या हालत होगी ?
गत सिंहस्थ 2004 के प्रशासकीय प्रतिवेदन में स्पष्ट रूप से यह स्वीकार किया गया था कि सिंहस्थ मेले के कुछ क्षेत्रों में सीवर लाइन ने काम नही किया था । लगता हैं इस सिंहस्थ में गत सिंहस्थ में की गई भूल से कोई सीख नही ली गई हैं। सम्पूर्ण मेला क्षेत्र में साधु संतों और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए करीब 70 हजार शौचालय बनाए जाने का लक्ष्य तैयार किया गया हैं । अब जबकि साधु संतों का विधिवत आना शुरू हो गया हैं तब तक आधे शौचालय भी अभी तक नही बन पाए हैं। मजेदार बात यह हैं कि केंद्र सरकार की योजना के अनुसार एक स्थायी शौचालय 12 हजार रूपये में बनाया जा रहा हैं, वहीें नगर निगम उज्जैन द्वारा मेला क्षेत्र में 20 हजार रूपयें की लागत के अस्थायी शौचालय बनाए जा रहे हैं । स्थायी शौचालय की तुलना में अस्थायीशौचालय करीब दोगुनी कीमत में बनाए जा रहे हैं। यह स्पष्ट रूप से नगर निगम को शंका के घेरे में डाल रहा हैं। इतना ही नहीं जो शौचालय बने है ंउसकी गुणवत्ता इतनी खराब हैं कि उपयोग के पूर्व ही कई
शौचालयों की दीवारें टूट फूट गई हैं । शौचालय की जो शीट उपयोग में लाई जा रही हैं वह भी मिट्टी और गिट्टी डालकर रखी जा रही हैं। जो पाइप उपयोग में लाया जा रहा हैं देखने से ही वह गुणवत्ताहीन प्रतीत हो रहा हैं। इसके साथ ही यह विसंगति भी हैं कि 10 शौचालय के उपर एक टंकी दी जा रही हैं, जो पूर्ण रूप से अपर्याप्त हैं । नगर निगम द्वारा तीन ठेकेदारों को शौचालय निर्माण का काम दिया गया हैं। इन तीनों ठेकेदारों द्वारा स्वयं काम नही करते हुए उप ठेकेदारों को यह काम दे दिया गया हैं। शौचालय का यह निर्माण कार्य प्रथम दृष्टि से देखने पर ही गुणवत्ता हीन दिखाई देता है।
सिंहस्थ 22 अप्रेल से 21 मई तक आयोजित किया जा रहा हैं। प्रशासनिक अधिकारियों की यहां यह असफलता है कि वे 22 अप्रेल से ही सिंहस्थ शुरू होने का समझ रहे हैं ,जबकि पूर्व अनुभव के आधार पर और परंपरा के अनुसार करीब एक माह पूर्व ही साधु संत मेला क्षेत्र में आकर अपना शिविर लगाने का काम शुरू कर देते हैं। सिंहस्थ के पूर्व ही जब साधु संत आ जाते हैं तो उनके लिए मूलभूत सुविधाओं की जरूरत होती हैं। इसका आंकलन करने में प्रशासनिक अधिकारी असफल सिद्ध हो चुके हैं। जो शौचालय बन भी चुकें हैं उस पर नगर निगम की कोई निगरानी नही है। ठेकेदार मनमाने तरीके से गुणवत्ता हीन सामग्री का उपयोग शौचालय निर्माण में कर रहे हैं। कल्पना की जा सकती हैं कि यदि सिंहस्थ शुरू हो गया और शौचालय निर्माण नही हुए , जो हुए हैं वो गुणवत्ता पूर्ण नहीं हुए तो क्या हालात होगी ? श्रद्धालु मजबूरी में यहां-वहां खुले में शौच करने के लिए मजबूर हो जाएंगे। बने शौचालय गुणवत्ता हीन होने के कारण यदि मलमूत्र सेफ्ती टेंक में नहीं गए और उसके भर जाने पर उसकी निकासी की समुचित व्यवस्था नही हुई तो पूरा मेला क्षेत्र को नरक बनते समय नही लगेगा। बनाए जा रहे शौचालयों की 10 यूनिट पर एक छोटी पानी की टंकी रखी जाना भी परेशानी को आमंत्रित किया जाना लग रहा हैं। सामान्य दिनों में जब एक परिवार के लिए ही एक टंकी की आवष्यकता होती हैं तो सम्पूर्ण मेला अवधि में 10 शौचालयों पर एक छोटी टंकी निसंदेह अपर्याप्त सिद्ध होगी।
अभी भी समय हैं। प्रभारी मंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह, संभागायुक्त डाॅ रवीन्द्र पस्तौर और कलेक्टर श्री कवीन्द्र कियावत नगर निगम आयुक्त श्री अविनाश लवानिया पर लगाम कसे । श्री लवानिया मेला अधिकारी के रूप में भले ही सफल नजर आ रहे हों, लेकिन नगर निगम आयुक्त के रूप में वें पूर्ण रूप से असफल सिद्ध हो रहे हैं। सिंहस्थ में लगे सभी विभागों में से नगर निगम उज्जैन को सर्वाधिक 446 करोड़ 5 लाख रूपये की राशि दी गई हैं । इतनी बड़ी राशि के लिए पूर्वकालीन अधिकारी तैनात नही कर राज्य शासन द्वारा निश्चित रूप से गलती की गई हैं। अब बाहर से आए प्रशासनिक अधिकारियों में से प्रत्येक झोन में एक वरिष्ठ अधिकारी केवल मूलभूत सुविधा के लिए तैनात करना समय की आवश्यकता हैं। अन्यथा बहुत बड़ा संकट आने वाला हैं, जिसकी कल्पना भी अधिकारियों द्वारा नहीं की गई हैं।
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