पापमोचनी एकादशी का महत्तव
पाप मोचनी एकादशी व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है. वर्ष 2016 में पापमोचनी एकादशी व्रत 4 अप्रैल के दिन किया जायेगा. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी पापों को नष्ट करने वाली होती है. स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने इसके फल एवं प्रभाव को अर्जुन के समक्ष प्रस्तुत किया था.
पापमोचनी एकादशी व्रत साधक को उसके सभी पापों से मुक्त कर उसके लिए मोक्ष के मार्ग खोलती है. इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी का पूजन करना चाहिए. अगर कोई व्यक्ति इस पूजा को पूरे विधि-विधान से करने पर व्रत के शुभ फलों में वृद्धि होती है.
पापमोचनी एकादशी की कथा
कथा के अनुसार भगवान अर्जुन से कहते हैं, राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से जब पूछा कि प्रभु यह बताएं कि मनुष्य जो जाने अनजाने पाप कर्म करता है उससे कैसे मुक्त हो सकता है. राजा मान्धाता के इस प्रश्न के जवाब में लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे.
इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नज़र ऋषि पर पड़ी तो वह उन पर मोहित हो गयी और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने हेतु यत्न करने लगी. कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थे कि उनकी नज़र अप्सरा पर गयी और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे. अप्सरा अपने यत्न में सफल हुई और ऋषि कामपीड़ित हो गए.
काम के वश में होकर ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गये और अप्सरा के साथ रमण करने लगे. कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जागी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरत हो चुके हैं. उन्हें उस अप्सरा पर बहुत क्रोध हुआ और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया. श्राप से दुखी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए अनुनय करने लगी.
अप्सरा की याचना से द्रवित हो मेधावी ऋषि ने उसे विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने के लिए कहा भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था. इसलिए ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनका पाप नष्ट हो गया. उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ व स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गयी.
पाप मोचनी एकादशी पूजन विधि
- इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है.
- व्रती को दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन करे और मन से भोग विलास की भावना को निकालकर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करनी चाहिए.
- एकादशी के दिन सूर्योदय होते ही स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए संकल्प के उपरान्त श्री विष्णु की पूजा करें.
- पूजा के पश्चात भगवान के समक्ष बैठकर भग्वद् कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए.
- एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है. इसलिए रात में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें.
- द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें और फिर ब्रह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें. इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए.