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भारतीय बाजार पर चढ़ा चीनी पिचकारियों का रंग



देशभर में होली को लेकर उत्साह चरम पर है। हर तरफ खुशी का माहौल है। लेकिन होली के रंग और पिचकारी बनाने वाले घरेलू निर्माता उदास हैं। उन्हें नुकसान हो रहा है। इसकी वजह चीन के सस्ते उत्पाद हैं। ये बाजार में छा गए हैं और जमकर बिक रहे हैं। एसोचैम के एक सर्वे में यह जानकारी दी गई।

सर्वे के अनुसार, चीन के उत्पाद अधिक इनोवेटिव और 55 फीसद तक सस्ते हैं। इसकी वजह से इन्होंने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में निर्मित होली उत्पादों को बाजार से गायब कर दिया है। एसोचैम सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन के सर्वे के अनुसार मेक इन इंडिया को प्रोत्साहित करने के सरकार के प्रयासों के बावजूद चीन की सस्ती पिचकारियों और रंगों ने छोटे मैन्यूफैक्चरर्स को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर दिया है। इनमें से तमाम लोग दशकों से इस उद्योग में हैं। उन्हें 75 फीसद तक नुकसान की आशंका है। ग्राहकों के बीच स्वदेशी उत्पादों की मांग बिल्कुल ठंडी है।

एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने कहा कि चीनी उत्पादों और भारतीय निर्माताओं के उत्पाद की कीमत में 55 फीसद से ज्यादा का अंतर है। चीन के उत्पादों की मांग निकलने का यही मुख्य कारण है।

सर्वे में 250 से ज्यादा मैन्यूफैक्चरर्स, सप्लायर्स और ट्रेडर्स को शामिल किया गया। ज्यादातर का मानना है कि पारंपरिक पिचकारियां बाजार से करीब-करीब गायब हो गई हैं। ग्राहकों की इनमें बहुत कम दिलचस्पी है। जबकि सस्ता होने के कारण चीन में बने होली के खिलौनों और रंगों को जमकर खरीदा जा रहा है। घरेलू मैन्यूफैक्चरर्स का दावा है कि वे केवल प्राकृतिक, जैविक और त्वचा के अनुकूल रंगों को ही बेचते हैं। जबकि चीन के उत्पाद घटिया क्वालिटी के हैं। इनमें त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले एसिड, डीजल इंजन ऑयल, ग्लास पाउडर और माइका जैसे केमिकल मिले होते हैं।

एसोचैम के एक अनुमान के मुताबिक हर साल पांच हजार कलर मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट होली में इस्तेमाल के लिए पांच लाख किलो से ज्यादा गुलाल का उत्पादन करती हैं। इसमें से दो लाख किलो का इस्तेमाल सिर्फ उत्तर प्रदेश में होता है। उद्योग चैंबर ने उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य में "होली पर्यटन" को प्रोत्साहित करने की सलाह दी है, जहां स्थानीय लोग और पर्यटक पूरे उत्साह के साथ मिलकर इसे मनाएं।

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