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आरक्षण के संबंध में खुली बहस जरूरी



                    डाॅ. चन्दर सोनाने
        हमारे देश के संविधान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आरक्षण देने का प्रावधान उनकी सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक दृष्टिकोण से अत्यंत पिछड़े होने के कारण किया गया था। बाद में इसमें देश के अत्यंत पिछड़े वर्ग को भी शामिल करते हुए उन्हें आरक्षण दिया गया। गत वर्ष गुजरात में हिंसक आंदोलन करने वाले पटेलों ने आरक्षण की मांग कर सबको हैरत में डाल दिया। हाल ही में हरियाणा में जाट समाज ने आरक्षण की मांग लेकर आंदोलन छेडा। आए दिन आरक्षण के लिए किए जा रहे हिंसक आंदोलनों के कारण अनेक लोगो की जानंे जा रही हैं। इसे रोकना अत्यंत आवश्यक हैं। इसके लिए जरूरी हैं कि देश में आरक्षण के संबंध में खुली बहस की जाए। यह बहस हर स्तर पर की जाए। देश के हर प्रांत में की जाए। राष्ट्रीय स्तर पर भी खुली बहस हो।
        यहां यह देखा जाना अत्यंत आवश्यक हैं कि अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग को आरक्षण क्यों दिया गया ? समाज के पिछड़े और कमजोर तबके को थोड़ा सहारा देकर आगे लाने के प्रयास के कारण संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया। इसके फायदे भी सामने दिख रहे हैं। किंतु यहां यह सोचा जाना जरूरी हैं कि समाज में क्या अब भेदभाव समाप्त हो गया हैं ? कमजोर तबके के साथ क्या अब समानता का व्यवहार किया जा रहा हैं ? शैक्षणिक एवं आर्थिक रूप से थोड़ी अच्छी स्थिति होते देखकर क्या उनके साथ बराबरी का व्यवहार दिया जा रहा हैं ? शहरों विशेषकर ग्रामीण अंचलों में अनुसूचित जाति के लोगो के साथ समानता के साथ क्या व्यवहार किया जा रहा हैं ? यह सब देखने के लिए हम आसपास की कुछ घटनाओं पर दृष्टिपात करते हैं।
        गत वर्ष ही मध्यप्रदेश के  शाजापुर जिले के ग्राम पतौली में गणेश प्रतिमा विसर्जन के समय अनुसूचित जाति के लोगों के द्वारा जुलूस निकालने और प्रसाद बांटने से गांव के सवर्ण समर्थ लोगो द्वारा न केवल उन्हें जबरन रोका गया अपितु उन्हें मारा पिटा और धौंस भी दी गई । गत वर्ष ही हरियाणा के फरीदाबाद के पास सनपेड गांव में दलित समाज के जितेन्द्र के घर में आधी रात में दरवाजा बंद कर तथा पेट्रोल छिड़ककर सवर्णो द्वारा आग लगा दी गई, जिसमें दो मासूम बच्चे जिंदा जलकर मर गए। इसी प्रकार उत्तर प्रदेष के प्रतापगढ़ में दलित समाज के दो भाईयों ने आई.आई.टी में प्रवेष करने के लिए परीक्षा पास की तो सवर्णो ने उनके घर पर पत्थर फेंके तथा अपमानित किया।  
      उक्त घटनाए मात्र उदाहरण भर हैं। दलित चिंतक चन्द्रभान प्रसाद का स्पष्ट मानना हैं कि लोगो की अभी भी मानसिकता नही बदली हैं। विशेष कर दलितों के साथ अभी भी ग्रामीण अंचलों में अत्यंत भेदभाव पूर्ण व्यवहार किया जाता हैं। जब तक सामाजिक दृष्टिकोण से भेदभाव समाप्त नही होता हैं, तब तक आरक्षण लागू किया जाना अत्यंत आवश्यक हैं। सामाजिक दृष्टि से अत्यंत पिछड़े होने के कारण ही आरक्षण का प्रावधान किया गया था, ताकि वे अच्छी षिक्षा प्राप्त कर आर्थिक रूप से सम्मानपूर्वक अपना जीवन यापन कर सकें। संविधान निर्माताओं की भी यही मंशा थी। सुपर 30 के संस्थापक प्रसिद्ध शिक्षाविद आनंद कुमार का यह स्पष्ट मानना हैं कि वर्तनाम परिस्थितियों को देखते हुए अभी कमजोर तबके के  लोगो को आरक्षण मिलना चाहिए।
        गुजरात के पटेल आंदोलन के बाद हरियाणा के जाट आंदोलन ने फिर आरक्षण के प्रति लोगों में एक नई बहस की शुरूआत कर दी हैं। जहां सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से अत्यंत समर्थ पटेल समाज आरक्षण चाहते हैं, वहीं अब जाट समाज आरक्षण का लाभ लेने का आगे आए हैं । उक्त दोनों समाज सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से यदि  पिछडी श्रेणी में आते हैं तो उन्हें भी आरक्षण जरूर दिया जाना चाहिए और यदि नहीं तो इन्हें  आरक्षण कभी नही मिलना चाहिए।
       आए दिन होने वाले नए-नए आंदोलनों को देखते हुए आरक्षण का महत्व, आवष्यकता, उपयोगिता  एवं प्रासंगिकता पर एक नई बहस की शुरूआत समय की आवष्यकता हैं। हर राज्य के महाविद्यालयों में इस पर खुली बहस होना चाहिए। स्वतंत्रता के बाद संविधान द्वारा दिए गए आरक्षण के लाभांवित व्यक्तियों की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थित में आए बदलावों को रेखांकित किया जाना खहिए। अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग के अत्यंत कमजोर लोगो की पहचान कर उनको आरक्षण का और सहारा देने के औचित्य और आवष्यकता पर बहस होनी चाहिए। जिन्हें आरक्षण का लाभ मिल गया हैं, उनकी आर्थिक स्थिति की सीमा बांधते हुए उन्हें आरक्षण से वंचित किया जाना चाहिए। ताकि उन तबके के और कमजोर लोगो को उसका लाभ मिल सके।
        बहस ये भी होना चाहिए कि देष में और हर राज्य में क्या जाति के आधार पर जिसका जितना जनसंख्या का प्रतिषत हैं , उतना आरक्षण उन्हें दे दिया जाए। हालांकि यह एक खतरनाक पहल भी हो सकती हैं। किंतु आए दिन हो रहे आंदोलनों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए यह एक उपाय हो सकता हैं। इससें यह  स्पश्ट हो जाएगा कि कोई किसी का हक नही मार रहा हैं । सबको अपनी अपनी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का लाभ मिल सकेगा। कोई दुखी नही रहेगा। और सबकों आरक्षण का लाभ मिल सकेगा।

 

 

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