बच्चों के व्यक्तित्व विकास के लिए प्रत्येक स्कूल में अनिवार्य हों बालसभा
डाॅ. चन्दर सोनाने
करीब तीन दशक पहले मध्यप्रदेष के प्रत्येक प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल में बच्चों के व्यक्तित्व के बहुमुखी विकास के लिए प्रत्येक शनिवार को बालसभा का आयोजन अनिवार्य रूप से होता था। इसमें नृत्य, संगीत, साहित्य आदि विधाओं के माध्यम से बालक- बालिकाएं अपनी प्रतिभा का परिचय देते थे। इससे बच्चों में शुरूवात से ही सांस्कृतिक एवं साहित्यिक गतिविधियों के बारें में सहज ही मूलभूत जानकारी की समझ हो जाती थी। किंतु धीरे-धीरे स्कूलों में बालसभा का आयोजन बंद हो गया।
प्रदेश के प्राथमिक और माध्यमिक वि़ज्ञालय में पढने वाले सभी बालक बालिकाओं के व्यक्तित्व विकास के लिए बालसभा का आयोजन अनिवार्य कर देने की महती आवश्यकता हैं। इन बाल सभाओं का आयोजन प्रत्येक शासकीय विद्यालय के साथ साथ अशासकीय स्कूलों में भी अनिवार्य कर देना चाहिए। इससे बच्चे बचपन में ही गीत-संगीत ,गायन-वादन के बारे में जहां सहज रूप से जानकारी प्राप्त कर सकेंगे, वहीं वे अपनी सांस्कृतिक विरासत से भी बखूबी परिचित हो सकेंगे। इसके साथ ही वे साहित्य के प्रति भी आकर्षित होकर संवेदनशील बन सकेंगे।
मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का एक दशक से अधिक समय से शासन हैं।यह दल अपनी सांस्कृतिक विरासत को लेकर कुछ अधिक ही सजग रहा हैं। इसलिए और भी ज्यादा जरूरत इस बात की हैं कि तीन दशक पूर्व बंद हो चुकी बाल सभा के आयोजन की परंपरा को फिर से पुनर्जीवित किया जा सकें। बालसभा के आयोजन के फिर से आरंभ होने से हर स्कूल में बालक बालिकाओं को बचपन में ही अपनी प्रतिभा को विकसित करने का जहां मौका मिल सकेगा वहीं जीवन के शुरूवात में ही बच्चे की रूचि किस क्षेत्र में अधिक हैं, यह पता भी बच्चें के माता पिता को चल जाएगा । इससे बच्चों के अभिभावकों को उनके व्यक्तित्व विकास में भी मदद मिल सकेगी। वर्तमान में अभिभावकों के समक्ष यह शाश्वत प्रश्न रहता हैं कि बच्चों की रूचियाँ कैसे पता चल सके ताकि उन्हें उनकी रूचि और प्रतिभा के अनुरूप आगे की शिक्षा दिला सकें। इससें अभिभावकों की जहां चिंता समाप्त होगी, वहीं बच्चों को अपनी रूचि और प्रतिभा के अनुरूप में भविष्य तय करने में मदद भी मिल सकेगी।