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हमेशा याद रहेगी यह शहादत



मौत से आठ दिन तक बहादुरीपूर्वक संघर्ष करने के बाद आखिरकार लांसनायक हनमंथप्पा कोप्पड ने दम तोड़ दिया। दिल्ली में सैनिक अस्पताल में गुरुवार दोपहर 11.45 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। इसके साथ ही देश की चढ़ती-उतरती उम्मीदें भी टूट गईं। हनमंथप्पा अपने साथियों के साथ सियाचिन में छह दिन तक 25 फीट से ज्यादा बर्फ के नीचे फंसे रहे। इससे उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया। दोनों फेंफड़ों में गंभीर निमोनिया के लक्षण पाए गए। उनके दिमाग तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच रही थी।

इसके बावजूद यह उनकी अदम्य जिजीविषा ही थी कि आठ दिनों तक उन्होंने मौत को खुद से दूर रखा। हनमंथप्पा के साथ उनके नौ साथी भी बर्फीले तूफान की चपेट में आए थे। यह दु:खद खबर 3 फरवरी को आई। इसके बाद युद्धस्तरीय बचाव अभियान चलाया गया। तब नौ सैनिकों के शव बरामद हुए। इस बीच हनमंथप्पा का जीवित मिलना करिश्माई था। लेकिन अंतत: उनके जीवित बचने की आस भी टूट गई।

इस दु:खद घटना ने सियाचिन की रक्षा में तैनात सैनिकों की कठिनाइयों की ओर फिर ध्यान खींचा है। इस चोटी के आसपास फौजी ऐसे हादसों का शिकार होकर शांतिकाल में भी अपनी जान गंवाते रहे हैं। हालांकि भारत ने वहां तैनात अपने सैनिकों के लिए मौसम का पूर्वानुमान लगाने तथा उन्न्त उपकरणों और तकनीक के जरिए भरसक सुरक्षा इंतजाम किए हैं, लेकिन हादसों को पूरी तरह रोकना संभव नहीं हुआ है।

करीब 78 किलोमीटर लंबे सियाचिन क्षेत्र का दो-तिहाई इलाका और उसकी खास चोटियां 1984 से भारत के नियंत्रण में हैं। मैदानी इलाकों के मुकाबले वहां ऑक्सीजन की मात्रा बमुश्किल आधी है। दिन का तापमान वहां माइनस 25 डिग्री तो रात का माइनस 50 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता है। ऐसे विकट हालात में भारत और पाकिस्तान के सैनिक दुनिया के इस सबसे ऊंचे रणक्षेत्र पर अपनी सरहदों की हिफाजत करते हैं। गुजरे तीन दशक में यहां दोनों देशों के लगभग ढाई हजार फौजियों की जान मौसम ने ली है।

ऐसे में यह सवाल मौजूं है कि क्या इस निर्जन स्थल की रक्षा के लिए सैनिकों की कुर्बानी देना वाजिब है? दोनों देशों में वहां से सैनिकों की वापसी का करार हो जाए, तो यह बहस एक आशाजनक मुकाम तक पहुंच सकती है। लेकिन पाकिस्तान के इरादों को लेकर भारत में मौजूद संदेह के कारण ऐसे समझौते संभव नहीं हुए हैं। जब वर्ष 1999 में पाकिस्तान ने कारगिल में घुसपैठ की थी, तब यह शक गहरा गया कि सियाचिन से भारतीय सेना की वापसी के बाद वह इस चोटी को चोरी-छिपे हथियाने की कोशिश करेगा। एक बार ऐसा हो गया, तो भारत के लिए दोबारा सियाचिन को उससे छीनना कठिन होगा, क्योंकि पाकिस्तान की तरफ से वहां पहुंचना अपेक्षाकृत आसान है।

यही वजह है कि ताजा दुर्घटना के बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने दो-टूक कहा कि सियाचिन पर भारतीय सेना की तैनाती बनी रहेगी। फिलहाल तो इस चोटी की रक्षा करते हुए दस भारतीय वीरों ने अपनी जान गंवाई है। उनकी शहादत को पूरा देश नमन करता है।

 

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