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छह-छह महीने के होते हैं दिन और रात, माइनस 89 डिग्री रहता तापमान


भोपाल। सियाचिन यहां चौकसी करने वाले जवानों की जीवटता के कारण फिर चर्चा में है। कुछ ऐसी ही जीवटता भारत और अन्य देशों के वैज्ञानिक दिखाते हैं, पृथ्वी के दक्षिणी क्षोर पर स्थित अंटार्कटिका में। उनका जीवन भी सियाचिन में सैनिकों की तरह मुश्किल होता है। भोपाल के डॉ. प्रकाश खातरकर भी 14 महीने तक अंटार्कटिका में रिसर्च करके लौटे हैं। वे बता रहे हैं, कितना मुश्किल होता है वहां का जीवन।

 

-अंटार्कटिका में पृथ्वी का साउथ पोल है। वहां का तापमान माइनस 55 डिग्री से लेकर माइनस 89 डिग्री तक होता है। सामान्य व्यक्ति को वहां जाने की अनुमति नहीं है।

 

- सिर्फ वैज्ञानिक ही वहां रिसर्च के लिए जाते हैं, क्योंकि वहां का वातावरण बिल्कुल प्रदूषित नहीं है। मैं वहां आयन मंडल में संचार की संभावनाओं पर रिसर्च करने गया था।

 

- वहां छह महीने तक दिन होता है और छह महीने पूरी तरह रात होती है। जहां देखो वहां सिर्फ बर्फ है। साउथ अफ्रीका से विमान के जरिये वहां जाते हैं। अंटार्कटिका जाने से पहले हिमालय की बर्फ में ट्रेनिंग दी जाती है।

 

अंटार्कटिका में सभी देशों ने अपने-अपने बेस कैंप बनाए हैं। इसी बेसकैंप में रहते हैं, कभी-कभी रिसर्च के लिए दूर जाने पर टेंट में भी रहना पड़ता है। अंटार्कटिका की ठंड सूखी होती है, यहां कंपकंपी नहीं छूटती बल्कि शरीर में दर्द होता है।

 

आठ से दस दिन में एक बार नहाते हैं। खाने के लिए ड्राय फ्रूट्स और पैकेज्ड फूड होते हैं। कच्चा राशन भी भारत सरकार वहां भेजती है, बेसकैंप के अंदर हफ्ते में एक बार खाना बनाया जाता है। थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ खाना जरूरी हाेता है, नहीं तो जबड़े जमने की संभावना होती है।

 

बेसकैंप के अंदर का तापमान हीटर और बायलर की मदद से कभी-कभी 5 डिग्री तक आ जाता है। ट्रेनिंग में इस बात की सख्त हिदायत दी जाती है कि यदि दस मिनट के लिए भी बेस कैंप से बाहर जा रहे हैं तो दो दिन का खाना अपने साथ लेकर जाएं। ठंड से बचने के लिए सियाचित के जवानों के जैसे ही कपड़े, जूते और ग्लब्ज दिए जाते हैं।

 

अंटार्कटिका जाने से पहले एम्स में पांच दिनों के सघन मेडिकल चेकअप से गुजरना होता है। मेडिकली फिट होने पर ही वहां जाने की अनुमति दी जाती है। जैसे कमजोर आंखों वाले लोगों को नहीं जाने दिया जाता, क्योंकि सूरज की रोशनी जब सफेद बर्फ पर पड़ती है तो आंखें चौंधियाजाती है।

 

14 महीने तक वहां रहने से कई लोग मानसिक रूप से बीमार हो जाते हैं। ग्रुप में झगड़े, गाली-गलौच आमबात होती है। ट्रेनिंग में ही यह समझा दिया जाता है कि कोई भी गाली-गलौच करे तो रिएक्ट न करें। हमारे साथ गए एक वैज्ञानिक की स्थिति मानसिक रूप से काफी खराब हो गई थी। बर्फ पर चलना सबसे ज्यादा खतरे वाला होता है।

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