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डाॅक्टरों की सेवा वृद्धि की बजाय पदोन्नति होना चाहिए




       राज्य सरकार द्वारा मेडिकल काॅलेजो में वरिष्ठ चिकित्सकों की कमी को देखते हुए उनकी सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष को बढ़ाकर 70 वर्ष करने की योजना बनाई जा रही हैं। यह सिद्धान्तः गलत हैं। प्रदेश में अनेक चिकित्सक ऐसे हैं, जिन्हें 25 से 30 वर्ष एक ही पद पर कार्य करते हुए हो गए हैं, किन्तु उन्हंे एक भी पदोन्नति नही मिली हैं। इसलिए 65 वर्ष की सेवानिवृत्ति की आयु को बढ़ाने की बजाय जिन चिकित्सकों की एक भी पदोन्नति नही हुई हैं, उन्हें पदोन्नति का लाभ देकर उनके साथ न्याय किया जाना चाहिए।
       राज्य सरकार के चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा हाल ही में इस संबंध में नई योजना बनाई जा रही हैं। इसमें पिछली बार की तरह ही कारण बताए जा रहे हैं। पिछली बार जब इन चिकित्सकों की सेवानिवृत्ति की आयु 62 से 65 वर्ष बढ़ाई गई थी, तब भी यही कारण दिए गए थे कि योग्य और अनुभवी चिकित्सक नही होने के कारण इनकी सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाई जाना आवश्यक हैं। यही गलती एक बार फिर दोहराई जा रही हैं।
       राज्य में दो स्तर पर चिकित्सकों की भर्ती होती है। पहले स्तर पर राज्य के शासकीय मेडिकल काॅलेजो में असिस्टेंट प्रोफेसर , एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों पर सीधी अथवा पदोन्नति से भर्ती हांेती हैं। यहां पहले 60 वर्ष सेवा निवृृत्ति की आयु निश्चित थी । इसे बढ़ाकर 62 वर्ष और बाद में 65 वर्ष कर दी गई। मेडिकल काॅलेजों में वरिष्ठ पदों पर व्यक्तियों की कमी की बात बताते हुए सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाई जाती रही है। किन्तु यहाँ पर भी समयबद्ध पदोन्नति के नियम होने के बावजूद पदोन्न्ति नही होने के कारण वरिष्ठ पदों पर व्यक्ति की कमी बताने का षडयंत्र वर्षो से चला आ रहा हैं। यदि यहां समय पर पदोन्नति की प्रक्रिया अपनाई जाए तो वर्षो से पदोन्नति की राह देख रहे चिकित्सकों के साथ न्याय होगा। यदि निचले स्तर पर से क्रमशः वरिष्ठ पदों पर नियमित रूप से पदोन्नति की जाएगी तो निचले स्तर पर रिक्त पदों पर भर्ती भी हो सकेगी। इससे हजारों बेरोजगार चिकित्सकों को रोजगार भी उपलब्ध हो सकेगा।
         दूसरे स्तर पर प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों और जिला चिकित्सालयों में सहायक चिकित्सक के पद पर डाॅक्टरों की भर्ती होती हैं। यहां के डाॅक्टरों की पदोन्नति की स्थिति  बहुत बद्तर हैं। अधिकतर चिकित्सक ऐसे हैं जिनकी पहली नियुक्ति को हुए 25 से 30 वर्ष हो चुके हैं किंतु उनकी एक भी पदोन्नति अभी तक नही हुई हैं। मजेदार बात यह हैं कि उन्हें राज्य शासन के क्रमोन्नति का लाभ मिल रहा हैं। अधिकतर चिकित्सकों को दो -दो क्रमोन्नति का लाभ मिल गया हैं। किंतु वे अपने प्रथम नियुक्ति के समय के पद पर ही पदस्थ हैं। यदि ऐसे चिकित्सकों की दो-दो पदोन्नति भी कर दी जाए तो शासन को एक रूपये का भी वित्तीय भार नही आएगा। अनेक चिकित्सक ऐसी स्थिति में जहां पदस्थ हैं वहीं अपनी प्रैक्टिस का दायरा बढ़ा लेते हैं और पदोन्नति का नाम आते ही हताश और निराश हो जाते हैं। जबकि उनके समय के अन्य व्यक्तियों को अन्य विभाग में पदस्थ रहते हुए दो-दो पदोन्नतियां मिल चुकी होने पर उनमें निराशा और हताशा का भाव आ जाता हैं। इन चिकित्सकों की भी नियमित पदोन्नति होना अत्यंत आवश्यक हैं। इनमें आ रहे हताशा के भाव उनके पेशे को भी प्रभावित करते हैं ।
     राज्य शासन के मुख्य सचिव और लोकसेवा आयोग के भी सपष्ट निर्देष हैं कि सभी विभागों में समय पर नियमानुसार पदोन्नति की जाए। किंतु ऐसा वास्तव में हो नही रहा हैं। इससे दोनांे स्तर के चिकित्सकों में हताशा और निराशा व्याप्त हो रही हैं। जरूरत इस बात की हैं कि प्रदेश एवं देश के इन प्रतिभाशाली युवाओं को समय पर पदोन्नति का लाभ प्राप्त हो सके। इसके लिए केवल यह किया जाना जरूरी हैं कि संबंधित विभाग राज्य शासन के पदोन्नति के नियमों का पालन सुनिश्चित करें । इससे प्रदेश के हजारों डाॅक्टरों में नई चेतना और जागृति आ सकेगी।
 

 

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