दो सालों में डूबे बैंकों के 1.14 लाख करोड़ रूपये
देश के 29 बैंकों से दिए गए लोन के जो आंकड़े सामने आए हैं वह चौंकाने वाले है रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, 2013 से 2015 के वित्तीय वर्षों में बैंकों से करीब 1.14 लाख करोड़ रुपये लोन के तौर पर दिए गए जिसकी वापसी की उम्मीद धूमिल पड़ चुकी है। यह रकम बैंकों के बीते 9 साल के रिकॉर्ड से कई गुना ज्यादा है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2012 में वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर आरबीआई के आंकड़ों से पता चला था कि कर्ज के तौर पर दिए गए बैंकों के करीब 15551 करोड़ रुपये वापस आने की उम्मीद नहीं हैं। मार्च 2015 तक यह आंकड़ा तीन गुना बढ़कर 52542 करोड़ रुपये हो तक पहुंच गया।
RBI के पास भी नहीं है ये आंकड़ा
बैंकों से कर्ज लेकर वापस न करने वालों में कौन लोग शामिल हैं, ये इंडिविजुअल हैं या फिर कोई बिजनेसमैन और उन्होंने अब तक बैंकों को कितना घाटा पहुंचाया है। इस संबंध मे आर बी आई ने कहा है कि 'कर्ज लेकर वापस न करने वालों में सबसे बड़ा नाम किसका है इसकी जानकारी अभी उपलब्ध नहीं है, क्योंकि बैंक डूबे हुए पैसों का संयुक्त आंकड़ा ही पेश करते हैं।'
सिर्फ दो बैंकों ने दिया ऐसा कोई लोन
एक ओर जहां सरकार पब्लिक सेक्टर के बैंकों को मजबूत करने की कोशिश कर रही है तो वहीं, डूबता पैसा उनके लिए सबसे बड़ी मुसीबत है। आंकड़ों के मुताबिक, साल 2004 से 2015 के बीच करीब कर्ज के रूप में दिए गए बैंकों के 2.11 लाख करोड़ रुपये डूब गए. ऐसे आधे से ज्यादा लोन (1,14,182 करोड़ रुपये) साल 2013 से 2015 के बीच में लिए गए हैं। गौर करने वाली बात ये है कि बीते पांच सालों में सिर्फ दो बैंकों स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र और स्टेट बैंक ऑफ इंदौर ने ऐसा कोई लोन पास नहीं किया है जिसमें पैसा डूब गया हो।
85 फीसदी तक बढ़ गए मामले
दूसरे शब्दों में कहें तो साल 2004 से 2012 के बीच इस तरह के लोन का आकंड़ा 4 फीसदी था, जो 2013 से 2015 के बीच बढ़कर 60 फीसदी हो गया। वित्तीय वर्ष 2015 की समाप्ति पर बैंकों से लिए गए कर्ज को वापस न करने के मामले 85 फीसदी तक बढ़ गए। इस संबंध में आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने चिंता जताई है। उन्होंने सरकारी बैंकों को लगातार हो रहे घाटे से उबारने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत पर जोर दिया।