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धार: शांत शहर में क्यों उठ रही अशांति की लहरें ?



                                डाॅ. चन्दर सोनाने
    आगामी 12 फरवरी को वसंत पंचमी का त्यौहार है। वसंत पंचमी यानी खुशी और उल्लास का पर्व । छः ऋतुओं में वसंत ऋतु सबसे अच्छी मानी गई हैं। धार के भोजशाला में बसंत के स्वागत के लिए पिछले अनेक दशकों से आपसी प्रेम और भाइचारें के साथ बसंत ऋतु के उत्सव का आयोजन होता आ रहा हैं। किंतु पिछले कुछ वर्षांे से इस शांत शहर को लगता हैं किसी की नजर लग गई हैं। प्रेम और खुशी के इस पर्व के आने पर वहां के वाशिंदे डर से कांपने लग जाते हैं । उन्हें कुछ न कुछ अनहोनी का डर सा लगने लगता हैं।
        धार कस्बा शांति के टापु के रूप में मालवांचल में प्रसिद्ध था। राजा भोज की यह नगरी अपने साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए दूर-दूर तक विख्यात थी। फिर क्यों ऐसा होने लगा हैं कि बसंत ऋतु आते ही वहां की शांत फिजाओं में कुछ लोग जहर घोलने लग जाते हैं। इसकी पड़ताल जरूरी हैं। इसके लिए हमें ढ़ाई दशक पहले जाना पड़ेगा। प्रदेश में श्री सुंदर लाल पटवा दूसरी बार सन् 1990 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। उस समय हिन्दूत्व की आंधी उठने लगी थी। प्रदेश में राजनैतिक कारणों से लोगों के दिलों को तोडने का प्रयास किया जाने लगा था । एक साथ पडोस में रहने वाले लोगो को अचानक यह बताया जा रहा था कि वे हिन्दू और मुसलमान हैं। इसी बीच बसंत ऋतु का त्यौहार आया । इस दिन राजा भोज के प्रसिद्ध भोजषाला परिसर में बसंतोत्सव का आयोजन होने वाला था। जो पिछले अनेक सालों से शांति पूर्वक होता आ रहा था। अचानक राजनैतिक कारणों से शांत शहर में भूचाल सा आने लगा था। वर्षो से होते आ रहे बसंतोत्सव के इस आयोजन के संदर्भ में यह मांग उठने लगी कि भोजशाला से लगी हुई मस्जिद में अब नमाज नही होगी। यहां राजा भोज की आराध्य देवी सरस्वती की आराधना और पूजा पाठ ही होंगे । चारों तरफ समर्थन और विरोध में बहस होने लगी। शांत शहर में प्रेम की जगह विद्वेष की भावना हिलोरे लेने लगी। इसके पीछे राजनैतिक दलों के अपने-अपने स्वार्थ छिपे थे। वे पर्दे के पीछे रहकर उन्मादों को हवा दे रहे थे। इस प्रकार आपसी प्रेम और विश्वास के साथ वर्षांे से जीवन यापन कर रहे हिन्दू और मुसलमानों के बीच वैमनस्य के बीज बोये जाने लगे। उस समय बड़े ही अशांत माहौल में बसंतोत्सव का आयोजन किया गया। फिर तो यह क्रम ही चल निकला। हर साल बसंत उत्सव आते ही धार के नागरिक अनजानी आशंकाओं से कांपने लगते हैं और कई अपने परिवार की सुरक्षा के लिए कुछ दिनों के लिए धार से पलायन कर जाते हैं। इस बीच कई बार बसंत उत्सव के समय धार शहर में धारा 144 लगाई गई और अनेक बार कफ्र्यू के साये में भी बसंतोत्सव मनाया गया।
  ढ़ाई दशक पहले राजनैतिक बिसात पर खेली गई शतरंज के कारण अब हर साल बसंत उत्सव के समय धार में अशांति का माहौल बनने लग गया हैं। इस साल भी अभी से यह होने लगा हैं। इस वर्ष  12 फरवरी को बसंतोत्सव का त्यौहार हैं। एक परिचित ने 10 फरवरी को धार में शादी के आमंत्रण के संबंध में अभी से वहां जाने से मना कर दिया हैं। उसे यह आशंका होने लगी है कि उस दिन कुछ हो सकता हैं, इसलिए वहां से आने वाले आमंत्रण के संबंध में अभी से उसने यह निर्णय ले लिया कि वह वहां नहीं जा पाएगा। इस के बारे में उसके अपने तर्क हैं। उसका कहना हैं कि अभी से पुलिस वाले रात 9 बजते ही शहर में निकलते हैं और लोगो को घर के अंदर जाने के लिए कहते हैं। शहर में अभी से पुलिस की चहलकदमी बड़ गई हैं। लोग तरह तरह की बातें करने लगे हैं। आशंका व्यक्त कर रहें हैं। इससे धार के निवासियों में एक ड़र सा बैठा जा रहा हैं। प्रशासन मौन हैं। वह वहां के वाशिंदों को यह बता ही नही पा रहा हैं कि कुछ नही होने वाला हैं, बल्कि वह अपने जाने अनजाने प्रयासों से लोगांे के दिलों में डर ही बैठा रहा हैं।
इस माहौल में जरूरत इस बात की हैं कि धार के प्रशासन को लोगों से सीधी बातचीत करना चाहिए। आवागमन सामान्य रखना चाहिए। उसके प्रयासों से यह आभाष नही होना चाहिए कि कुछ अनहोनी घटित होने की संभावना हैं। विभिन्न धार्मिक और सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठनों से जीवंत संवाद रखकर शांति समिति की बैठक आयोजित करना चाहिए। संबंधित आयोजकों से उनके कार्यक्रमों के बारे में सीधा और जीवंत संवाद रखना चाहिए। परंपरा के अनुसार सरस्वती की आराधना एवं पूजन की व्यवस्था और मस्जिद में नमाज की भी व्यवस्था समुचित रूप से हो, इसके लिए संबंधित आयोजकों से सीधा और जीवंत संवाद रखना चाहिए। मिल बैठकर आयोजन की रूपरेखा बनाकर उसे अंतिम रूप देना चाहिए। सबको विश्वास मंे ंलेकर और उनका विश्वास जीतकर कार्य करना चाहिए। मिल बैठकर यदि कोई आयोजन किया जाए तो उसकी सफलता से इंकार नहीं किया जा सकता । संवादहीनता कतई नही होना चाहिए। संबंधित समस्त पक्षों को एक साथ बैठाकर सर्वमान्य रास्ता निकालना चाहिए। यदि ऐसा होता हैं तो निश्चित रूप से भोजषाना परिसर में शांतिपूर्वक समस्त धार्मिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक आयोजन भी होंगे और मस्जिद में शांतिपूर्वक नमाज भी अदा की जा सकेगी। यदि जिला प्रषासन ऐसा करता है तो धार की फिजा में वैमनस्य का जहर नही फैलेगा और फिर से धार शहर प्रेम, शांति और आपसी भाईचारें की मिसाल के रूप में अपने आप को सबके सामने प्रस्तुत कर सकेगा।
 

 

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