top header advertisement
Home - आपका ब्लॉग << पुत्तन चाचा का पश्चाताप...!!

पुत्तन चाचा का पश्चाताप...!!



​तारकेश कुमार ओझा
जीवन संध्या पर पुत्तन चाचा पश्चाताप की आग में झुलस रहे हैं। कुनबे का मुखिया होने से घर - परिवार में उनकी मर्जी के बगैर कभी कोई पत्ता न हिलता था , न अब हिलता है। चचा को गम है कि उन्होंने कुछ गलत फेसले किए।
परिवार का होनहार पप्पू इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद नौकरी के लिए बड़े शहर जा रहा था। लेकिन चचा ने उसे नहीं जाने दिया।
चचा कहते रहे... क्या रखा है नौकरी में। अपनी मिट्टी छोड़ कर कहां जाओगे।वे खेती को सदा - सर्वदा उत्तम बताते रहे।
सचमुच आज पप्पू घर पर ही रह कर खेती - बारी कर रहा है। गाय - बैल चरा रहा है।
पप्पू की बुरी हालत देख चचा गमगीन है। उन्हें अपने फैसले पर पश्चाताप है।
चचा से और भी गलतियां हुई है।
परिवार के कई नालायकों की उन्होंने जबरन शादी करवा दी।
घर के लोगों ने उन्हें काफी रोका। बिगड़ी माली हालत का हवाला दिया। सात फेरे लेने वालों के आपने पैर पर खड़े होने के बाद ही उन्हें शादी के बंधन में बांधने की सलाह दी। लेकिन चचा ने किसी की एक नहीं सूनी।
वे बराबर कहते रहे... हर चीज का समय होता है। समय पर सब काम हो जाना चाहिए। चचा को सबसे बड़ी चिंता अपने अभिमान की रहती थी।
वे बार - बार यही कहते ... फलां के पुरवा के पांडेयजी को उन्होंने वचन दे दिया है। बात से टले तो किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे।
इस मामले में उनकी और भी कई विचित्र दलीलें होती थी। वे कहते रहते थे भगवान जिसे भी दुनिया में भेजता है उसे मुंह के साथ पेट भी देता है तो निवाले का इंतजाम भी कर देता है। दुनिया में कोई भूखा भी रहता है भला...।
लिहाजा  परिवार के लोगोॆं को उनके अभिमान के आगे हथियार डालने पड़ते। लेकिन उनके इस अभिमान की भारी कीमत पूरे कुनबे को चुकानी पड़ी। क्योंकि परिवार पर आर्थिक बोझ लगातार बढ़ता रहा। बगैर आत्मनिर्भर हुए शादी की कीमत पीढ़ी - दर पीढ़ी चुकाने को अभिशप्त थी।
चचा इस बात से दुखी थे, और जीवन संध्या पर इसका पश्चाताप कर रहे थे। वे हर किसी से कहते... मुझे पछतावा है, मुझसे गलतियां हुई है।
माली हालत बिगड़ने के चलते परिवार में कलह मची रहती थी। आश्रितों की राय थी कि अब चूल्हा अलग हो जाना चाहिए। लेकिन चचा को यह पसंद नहीं था। वे बराबर कहते.. मेरी जीते जी यह नहीं हो सकता।
घुटन भरे माहौल में घर के दो सदस्यों ने फंदे से लटक कर आत्महत्या कर ली।
चचा को इस बात का भारी पछतावा है। अब वे अपनी गलती मान रहे हैं।
नात - कबीला से संबंध बनाने या तोड़ने को लेकर भी चचा ने कई गलत फैसले किए और अब वे इस पर पछता रहे हैं।
परिवार के बुजुर्गों के वैकुंठगमन पर चचा हैसियत से काफी बढ़ - चढ़  कर खर्च करते रहे। परिवार के सदस्यों ने उन्हें  काफी रोका -टोका। लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी। ऐसे अवसरों पर उनकी दलील होती थी.. पुरखों का श्राद्ध क्या रोज - रोज होता है। स्वर्ग सिधार चुके पुरखे भी तो देखेें कि हमने कितने बढ़िया तरीके से उनका अंतिम संस्कार किया है।
चचा की इस जिद के चलते कुनबे की कई बीघा खेत बिक गई। चचा को अब इस बात का पछतावा है।
वे अक्सर बुदबुदाते हैं... भाई - भतीजों की बात मुझे मान लेनी चाहिए थी। शायद मैं गलत था...।
यही नही् सरकार द्वारा चलाए जा रहे अभियान से अभिप्रेरित होकर  परिवार के युवा सदस्यों ने घर पर शौचालय बनाने की ठानी, लेकिन चचा नहीं माने।
 वे कहते रहे... यह भी कोई बात हुई... जहां रहे , वहीं मल - मूत्र का त्याग करें। अरे भाई, खेत - मैदान सर्वोत्तम है। इससे सेहत भी ठीक रहती है।
उनकी इस जिद के चलते परिवार की महििलाओं के साथ अनहोनी हो गई। गांव में इज्जत उतरी औऱ पुलिस - कचहरी का चक्कर अलग।
चचा को अब इसका भारी पछतावा है। वे हर किसी से कहते हैं... मुझसे भूल हुई है। मुझे अपने निर्णय पर पहले ही पुनर्विचार कर लेना चाहिए था।
अपने देश के राजनेता भी शायद चचा जैसे ही हैं। जो पहले तो गलतियां करते हैं और  इस पर तब पछताते हैं जब इसका कोई मतलब नहीं रह जाता।
अक्सर हम किसी न किसी राजनेता को पश्चाताप करते सुनते हैं कि मुझे अपने उस फैसले पर अफसोस है। लेकिन सालों बाद उनका क्या फायदा। जिद्दी चाचा की तरह वे देश का नुकसान तो कर ही चुके हैं।

 

Leave a reply