सिंहस्थ भूमि क्षेत्र से समस्त अतिक्रमण हटाना आवश्यक
डाॅ. चन्दर सोनाने
उज्जैन में आगामी 22 अप्रैल से 21 मई तक सिंहस्थ का भव्य आयोजन होगा। इसके लिए सभी 13 अखाड़ों के श्री महंतों का उज्जैन आकर अपने शिविर को परंपरागत स्थल पर ही लगाने का प्रयास करना शुरू हो गया हैं। किंतु सिंहस्थ भूमि क्षेत्र पर अनेक जगह पर अतिक्रमण होने के कारण श्रीमंत नाराज होकर अपना असंतोष खुलकर प्रकट भी कर रहे हैं। हाल ही में दिगंबर अखाड़े के श्रीमहंत कृष्णदास जी और श्रीमहंत रामकिशोर शास्त्री ने विष्णु सागर के किनारे अपने परंपरागत पड़ाव स्थल का अवलोकन किया तो वे वहां अतिक्रमण देखकर नाराज हो गये तथा उन्होंने परंपरागत स्थान पर से अतिक्रमण हटाने पर ही सिंहस्थ में आने की बात मेला अधिकारी से की। उन्होंने अतिक्रमण नही हटाने पर सिंहस्थ में नही आने की चेतावनी भी हाथो-हाथ दे दी।
विष्णु सागर अकेला ऐसा स्थान नही हैं, जहां अतिक्रमण के कारण श्रीमहंत नाराज हुए हैं, बल्कि अनेक स्थान सिंहस्थ मेला क्षेत्र में ऐसे हैं, जहां अतिक्रमण के कारण परंपरा के अनुसार अखाड़ों के शिविर लगना मुश्किल हैं। महाकाल मंदिर के पीछे रूद्र सागर में भी यही स्थिति देखने को मिल रही हैं। रूद्र सागर में न केवल लोगों ने अतिक्रमण कर मकान बना लिए हैं, बल्कि शासन और जिला स्तर पर भी अतिक्रमण कर पक्के निर्माण कार्य कर लिए गए हैं। इसलिए रूद्र सागर में शंकराचार्यो के परंपरागत शिविर लगाने में समस्या आने की भी पूरी संभावनाएं हैं। पिछले दिनों कमिष्नर डाॅ. रवीन्द्र पस्तोर और कलेक्टर श्री कवीन्द्र कियावत के मेला क्षेत्र के भ्रमण के दौरान उनके सामने भी अतिक्रमण की शिकायत आने पर उन्होंने अतिक्रमण हटाने के निर्देश भी दिए हैं। कुछ स्थानों से अतिक्रमण हटे भी हैं, किंतु सम्पूर्ण सिंहस्थ मेला क्षेत्र से अतिक्रमण हटना अभी शेष हैं।
गत सिंहस्थ सन् 2004 में उज्जैन में आयोजित हुआ था। उस समय इसके लिए कुल भूमि 2154.42 हेक्टेयर भूमि अधिगृहित की गई थी। दिनांक 22 अप्रैल से 21 मई 2016 तक आयोजित होने वाले आगामी सिंहस्थ के लिए कुल भूमि 3061 हेक्टेयर अधिकृत की गई है। इस सिंहस्थ में सेटेलाइट टाउन के लिए 352 हेक्टेयर भूमि अतिरिक्त अधिगृहित की गई हैं। सन् 1980 में आयोजित सिंहस्थ में उज्जैन कस्बे की 1346.29 हेक्टेयर भूमि अधिगृहित की गई थी। मजेदार बात यह हैं कि सन् 1980 में आयोजित किए गए सिंहस्थ में उज्जैन शहर की जितनी भूमि अधिगृहित की गई थी, वही भूमि सिंहस्थ 2004 और आगामी सिंहस्थ 2016 में भी शामिल हैं। जबकि गत 25 वर्षो में उस भूमि पर अनेक शासकीय और अशासकीय तौर पर काॅलोनियां कट गई हैं। और उसमें वर्षो से नागरिक निवास भी कर रहे हैं। पिछले पच्चीस वर्षो से सिंहस्थ क्षेत्र में लगातार हो रहे अतिक्रमण के कारण सिंहस्थ क्षेत्र की भूमि वास्तविक रूप में लगातार कम होती जा रही हैं। इस समस्या के स्थाई निराकरण के लिए सम्पूर्ण क्षेत्र का सीमांकन किया जाना जरूरी हैं।
लगातार हो रहे अतिक्रमण के कारण सिंहस्थ का वास्तविक क्षेत्र कम होता जा रहा हैं। गैर सरकारी तौर पर हो रहे अतिक्रमण के साथ ही शासकीय स्तर पर भी लगातार सिंहस्थ भूमि पर अतिक्रमण किया जा रहा हैं। इस कारण सिंहस्थ क्षेत्र की भूमि निरंतर कम होती जा रही हैं। हाल ही में रूद्र सागर क्षेत्र में से ही सड़क निर्माण किया गया हैं। इसके साथ ही इंटरप्रिटेशन सेन्टर का निर्माण भी रूद्रसागर की भूमि पर ही कर दिया गया हैं। सड़क चैड़ीकरण के नाम से भी रूद्र सागर निरंतर छोटा और संकुचित किया जा रहा हैं।
उज्जैन के पौराणिक सप्तसागरों रूद्रसागर, पुष्करसागर क्षीरसागर, गोवर्धनसागर, रत्नाकरसागर, विष्णुसागर और पुरूषोत्तमसागर में भी लगातार अतिक्रमण के कारण ऐतिहासिक सप्तसागर निरंतर सिमटते जा रहे हैं। इन सागरों का भी सीमांकन होना अत्यंत आवश्यक हैं, अन्यथा एक समय ऐसा आएगा जब ये ऐतिहासिक एवं पौराणिक सप्त सागर केवल इतिहास एवं पुराणो में ही मिलेंगे, वास्तविक रूप में अपने स्थल से विलुप्त हो चुके होंगे। इसलिए इन सप्तसागरों पर से अतिक्रमण रोका जाने के लिए जरूरी है कि उसका सीमांकन कर लिया जाए। इसके साथ ही प्रत्येक सप्तसागर की सीमा के चारों ओर बाउंड्रीवाॅल बना दी जाए ताकि कोई अतिक्रमण नही कर सके।
सिंहस्थ भूमि पर भविष्य में अतिक्रमण नही होने पाए और वास्तविक रूप से जो भूमि बचती हैं, इसका सीमांकन किया जाना अत्यंत आवश्यक हैं। इसके लिए सम्पूर्ण सिंहस्थ मेला क्षेत्र के समस्त छः झोनो में भूमि का वास्तविक सीमांकन करना जरूरी हैं। सीमांकन करने के बाद प्रत्येक झोन क्षेत्र का नक्शा प्रमुख स्थान पर लगा देना चाहिए। इस सिंहस्थ भूमि पर अतिक्रमण करने वाले लोगो की सूचना देने के लिए वहां सूचना पटल लगाकर सक्षम अधिकारी का नाम व मोबाइल नंबर भी अंकित किया जाना चाहिए, ताकि कोई भी अतिक्रमण करना चाहे तो जागरूक नागरिक सक्षम अधिकारी को मोबाइल पर सूचना दे सकें ताकि सख्ती से अतिक्रमण पर रोक लगाई जा सके। जिला प्रशासन को चाहिए कि प्रत्येक झोन क्षेत्र के सीमांकन के बाद उसकी लगातार निरीक्षण और समीक्षा करते रहें ताकि भविष्य में होने वाले अतिक्रमण को योजनाबद्ध तरीकें से रोका जा सके।