विदेशी लोन उठाने में देरी, लगा 300 करोड़ प्रतिबद्धता शुल्क
नई दिल्ली। विश्व बैंक सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय और विदेशी एजेंसियों से लोन या सहायता लेकर चल रही परियोजनाओं पर प्रतिबद्धता शुल्क ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। यही वजह है कि केंद्र ने राज्यों को निर्देश दिया है कि वे विदेशी लोन का इस्तेमाल समझदारी से करें।
केंद्र को यह कदम उठाने की जरूरत इसलिए पड़ी है क्योंकि बीते तीन साल में विदेशी लोन पर भारी भरकम 300 करोड़ रुपये से अधिक प्रतिबद्धता शुल्क लगा है। प्रतिबद्धता शुल्क तब लगता है कि जब कोई सरकार किसी विदेशी एजेंसी या अंतरराष्ट्रीय संस्था से लोन मंजूर करा ले लेकिन उसे समय पर नहीं ले। अगर मंजूर हुए लोन को उठाने में विलंब होता है तो संबंधित विदेशी एजेंसी उस पर प्रतिबद्धता शुल्क वसूल सकती है।
सूत्रों का कहना है कि वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग ने हाल में राज्यों से कहा है कि बाह्य सहायता प्राप्त (ईएपी) लोन का इस्तेमाल समझदारी से करें क्योंकि मंजूर किए गए लोन को समय पर न लेने से प्रतिबद्धता शुल्क काफी अधिक है। इसके अलावा विदेशी मुद्रा में उतार-चढ़ाव का जोखिम भी है। मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2013-14 में 117 कराड़ रुपये, 2014-15 में 111 करोड़ रुपये और 2015-16 में नवंबर तक 85 करोड़ रुपये प्रतिबद्धता शुल्क लग चुका है।
एशियाई विकास बैंक और विश्व बैंक के चुनिंदा लोन पर प्रतिबद्धता शुल्क लगता है। विश्व बैंक दो प्रकार से लोन देता है। पहला है आईडीए-इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन फंड जिसके माध्यम से गरीब देशों को गरीबी दूर करने के लिए लोन दिया जाता है। इस लोन पर कोई ब्याज तो नहीं लगता लेकिन अगर कोई देश मंजूर हुए लोन को नहीं उठाता है तो उसे सालाना 0.50 फीसद की दर से प्रतिबद्धता शुल्क का भुगतान करना होता है।
दूसरा लोन इंटरनेशनल बैंक ऑफ रीकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (आईबीआरडी) के माध्यम से दिया जाता है। इससे मंजूर हुए लोन को भी न उठाने पर पहले 0.75 फीसद प्रतिबद्धता शुल्क लगता था, लेकिन मई 2007 के बाद मंजूर हुए नए ऋण के संबंध में यह शुल्क समाप्त कर दिया गया है।
इसी तरह एशियाई विकास बैंक भी मंजूर हुए लोन को न उठाने पर 0.75 फीसद की दर से प्रतिबद्धता शुल्क वसूलता है। सूत्रों ने कहा कि लोन समय पर न उठाने की बड़ी वजह यह है कि कई परियोजनाओं के क्रियान्वयन में विलंब हो जाता है। यही वजह है कि सरकार अब विदेशी सहायता या लोन से चलने वाली परियोजनाओं की निगरानी का एक तंत्र बना रही है। इसमें नीति आयोग की मदद भी ली जाएगी।