हमने बिगाड़ा है, हम सब संवारे
सामाजिक मैकेनिज्म को होना होगा सकारात्मक
उज्जैन । शहर में गन्दी-सी बदबूदार बस्ती है, जहां रवि रहता है। अभी वह महज बारह वर्ष का ही है और वह समाज में नि:सन्देह सबसे बड़ा कार्य कर रहा है। वह समाजसेवक भी नहीं है, वह किसी पाठशाला का विद्यार्थी भी नहीं है, मगर रवि उस कार्य को करने की ओर चल पड़ा है, जहां उसके आगे-पीछे कोई नहीं है। दूर-दूर तक सिर्फ वो ही वो है। उसको यह कार्य करने की प्रेरणा उसके पेट (भूख) से मिली है, क्योंकि उसकी माँ और परिवार के अन्य सदस्य भी इसी कार्य में पता नहीं कब से हैं। रवि गन्दगी में जिन्दगी को ढूंढने का प्रयास कर रहा है। रवि दोपहर का भोजन करने से पूर्व शहर की विभिन्न गन्दी नालियों से हजारों प्रकार के मच्छरों, मक्खियों के बीच से पॉलीथीन और अन्य प्रकार का कचरा निकालने का कार्य करता है। भोजन करने के बाद पुन: तीन-चार थैले पॉलीथीन वाली सामग्री के एकत्रित कर ही लेता है।
यह वो कचरा होता है जो रवि जैसे होनहार बालक के समाज के भाई-बहन, माता-पिता, अंकल-आंटी व चाचा-चाची सभी के द्वारा हरएक तबके से रोज असंख्य और असीमित तादाद में शहर में उड़ेला जाता है। हमारे द्वारा असंख्य असीमित प्लास्टिक, डिस्पोजल, कटोरी, ग्लास, चाय के मग और पॉलीथीन सहित दर्जनों बायोडिग्रेडिबल सामग्री का भरपूर प्रयोग करते हैं। हमारे द्वारा भरपूर उपयोग कर लेने के बाद इसका अनावश्यक दुरूपयोग पर्यावरण करता है, जिसे हम प्रदूषण कहते हैं।
इस प्रदूषण नामक भयंकर कार्यवाही ने हम सबको समय-समय पर महसूस कराया है। हम सब जानते हैं कि यह हमारे ही कर्मों का फल है। कोई भी इंसान इसे अपने पड़ोसी पर ढौल नहीं सकता है। अभी हाल ही में हमारे शहर में संभवत: पृथ्वी का सबसे बड़ा सिंहस्थ महामेला लगने वाला है। हमारे अपने शहर उज्जैन को अनादि नगरी भी कहा जाता है। यह तो हम भी जानते हैं कि अनादि नगरी में शिप्रा नदी और अन्य गलियों में प्लास्टिक सामग्री का क्या आलम है।
शासन-प्रशासन तो अपनी तरफ से कार्य कर रही है। क्या सामाजिक मैकेनिज्म इसकी भान है? जिला प्रशासन ने विवाह समारोह या पार्टी आयोजित करने वाले प्रतिष्ठानों पर पॉलीथीन का उपयोग करने पर पाबन्दी आदेश जारी किया है, मगर फिर भी यह काफी नहीं है, जब तक कि समाज नाम का मैकेनिज्म शामिल नहीं हो। समाज का मैकेनिज्म यह समझता है कि जब तक कि प्लास्टिक उत्पाद पैकिंग और पॉलीथीन निर्माण पर पाबन्दी नहीं लगाई जायेगी, इनका उपयोग बन्द नहीं होगा। दण्डात्मक कार्यवाही भी प्लास्टिक का उपयोग करने से नहीं रोक सकती।
इन सब तथ्यों की जानकारी जिला प्रशासन को भी है। क्योंकि जिला प्रशासन का महकमा इसी समाज से आता है। इसके लिये सामाजिक जागरूकता और पहल की अत्यावश्यक आवश्यकता है। इसके लिये भी प्रशासन ने एक रणनीति बनाई है। प्रशासन फिलहाल में इको फ्रेंण्डली कागज, कपड़े के उत्पाद, रिड्यूज पेपर पाउच व कैरीबेग की तादाद बाजार में बढ़ाने के लिये मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण योजना और शहरी राष्ट्रीय विकास आजीविका मिशन योजना के तहत प्रकरण बनाकर निर्माण इकाई स्थापित कराने की तैयारी कर ली है।
आज ही 29 दिसम्बर को शहर की चिन्हित 132 महिलाओं का डॉ.अंबेडकर भवन में दो दिवसीय प्रशिक्षण सम्पन्न हुआ। दो दिवसीय प्रशिक्षण के प्रथम दिन 28 दिसम्बर को व्याख्यात्मक और दूसरे दिन प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया गया। ये महिलाएं अपने-अपने गली-मोहल्ले में स्व-समूह बनाकर बाजार में इको-फ्रेण्डली केरीबैग्स की तादाद बढ़ाने का कार्य करने जा रही है। हम सबका यह कर्त्तव्य है कि आने वाली पीढ़ी को प्लास्टिक सामग्री से मुक्ति दिलायें। अनादि नगर को अनादि रहने दें।
समाज क्या करे
वैसे तो समाज का हर इंसान समाज हितैषी है तो अपने स्थान पर वो बहुत कुछ कर सकता है। जिस तरह प्लास्टिक के आगमन से पूर्व कार्य होता था, उसी अनुरूप दिनचर्या अपनाये। यह मुश्किल जरूर है लेकिन नामुमकीन नहीं। कम से कम प्लास्टिक उत्पाद का उपयोग करे। कोशिश करे कि पुरानी प्लास्टिक का (जो घर में है) उसका पूरी तरह उपयोग करे। प्लास्टिक उत्पाद को डस्टबीन में ही डाले। समय-समय पर श्रमदान भी करें। यदि इंसान को अपने कर्त्तव्य का बोध है तो वह यह सब करेगा और इसके साथ ही भविष्य में इको-फ्रेण्डली केरीबैग का इस्तेमाल कर प्लास्टिक केरीबैग का बहिष्कार करेगा।