9 साल की उम्र में कट गए थे आज कर ली पीएचडी
हौसले से पाई शिक्षा की दौलत
राशिद चौधरी, अमरोहा। जीवन में चाहे कितने भी संघर्ष क्यों न करना पड़े, इंसान अगर मन से हार मान लेता है तो टूट जाता है, जबकि मन में कुछ करने की ठानकर आगे बढ़ने वाला ही जीतता है। कुछ ऐसा ही मन में ठाना शाने आलम ने, जिन्होंने बचपन में ही दोनों हाथ एक हादसे में गवां दिए, लेकिन हिम्मत नहीं टूटने दी।
दोनों कुहनियों तक कटे हाथों के बाद भी न केवल मुफ्ती और पीएचडी की डिग्री हासिल की, बल्कि मदरसे में शेख-उल हदीस की उपाधि पाने वाले जिले के पहले गुरु भी बने। हसनपुर क्षेत्र के गांव गंगवार में इनामुलहक के परिवार में दस जनवरी, 1989 को पैदा हुए शाने आलम के दोनों हाथ महज नौ बरस की उम्र में एक हादसे में कुहनी तक कट गए।
उस दौर में शाने आलम मदरसे के विद्यार्थी हुआ करते थे। गरीब परिवार और ग्रामीण परिवेश से ताल्लुक रखने वाले शाने आलम ने यहीं से खुद की जिंदगी को ज्ञान के शिखर पर पहुंचाने का संकल्प लिया। मदरसे में हाफिज, मौलवी और मुफ्ती की पढ़ाई करने के बाद दो साल पहले ही दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की।
दोनों कुहनियों में कलम दबाकर लिखने में दक्ष शाने आलम का लेख भी ऐसा है कि लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। इसी प्रतिभा के बल पर उन्होंने कई लेखन प्रतियोगिताएं जीतीं। उत्तराखंड के पूर्व राज्यपाल डॉ. अजीज कुरैशी ने उन्हें सम्मानित किया। वर्ष 2015 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत भी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं।
खुद के पैरों पर खड़ा होने और वर्षों के तप से पैदा किए ज्ञान को शिष्यों को बांटने के लिए अक्टूबर 2015 को वह मदरसा अहमद उल उलूम खानपुर गंगोह जिला सहारनपुर में शेख-उल-हदीस (अरबी भाषा पढ़ाने वाला शिक्षक) के लिए हुई लिखित व मौखिक परीक्षा में शामिल हुए। यहां उन्हें काबिलियत के बूते नियुक्ति भी मिली। अब वह मदरसे में बच्चों को पढ़ा रहे हैं।