37 सालों से बेसहारा 310 दिव्यांगों की कर रहे हैं परवरिश, खुद हैं नि:संतान
भोपाल. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में विकलांगों के लिए ‘दिव्यांग’ शब्द के इस्तेमाल पर जोर दिया। ऐसे ही एक शख्स हैं सरदार खान। 310 बच्चों के पिता। यही पहचान है इस शख्स की। क्योंकि जिन बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी ये निभा रहे हैं वे साधारण नहीं हैं। दिव्यांग हैं।
सरदार जन्म से मुसलमान हैं। लेकिन जब दिव्यांग बच्चों को अपनाया तो क्या धर्म और क्या जाति। नाम से पहचानो तो उन बच्चों में से 90 फीसदी हिंदू। लेकिन हैं सब उनके बच्चे। 60 साल के सरदार निसंतान हैं, लेकिन उन्हें मलाल नहीं। फख्र से कहते हैं- मैं तो 310 बच्चों का पिता हूं। पेशे से सिलाई मास्टर इस पिता ने अपने बच्चों को अच्छी तालीम दिलाई। 110 बच्चों को रोजगार मिल गया।
इस तरह उन्होंने अपने नाम सरदार यानी मुखिया को चरितार्थ किया। मुखिया तो ऐसा ही होना चाहिए। कोहेफिजा स्थित शुभम आश्रम में अभी 26 बच्चे हैं। ये सभी दिव्यांग हैं। सरदार खान ने 3 दिसंबर 1978 को शारीरिक रूप से दिव्यांगों की सेवा का बीड़ा आज भी जारी है। जेब की 1 लाख 86 हजार रुपए की पूंजी से इंदिरा सिलाई सेंटर खोला। 12 कर्मचारी रखे। धीरे-धीरे संख्या बढ़ती गई। भोपाल में 3 दिसंबर 1984 को गैस रिसाव हुआ तो सरदार को 126 बच्चे ऐसे मिले जो बेसहारा थे। दिव्यांग भी। उन्हें सहारे की जरूरत थी। आगे बढ़कर इन बच्चों की परवरिश शुरू की तो पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे इस काम के लिए किसी से चंदा नहीं लेते। सिलाई के काम से होने वाली आय बच्चों के लिए खर्च करते हैं। खुद की दो एकड़ जमीन हज हाउस के लिए दान कर दी।
जन्नत की खुशी.....मैं आठवीं पास, बच्चे पढ़ लिख गए..
मैं तो आठवीं पास हूं। मेरे 310 ऐसे बच्चें हैं, जो पढ़-लिख गए हैं। समाज में इज्जत की जिंदगी जी रहे हैं, मुझे तो यही जन्नत मिल गई। सिंगारचोली में दो एकड़ जमीन थी, सरकार ने हज हाउस के लिए मांगी तो फौरन दे दी। अब जो भी जमा पूंजी है, उससे अपने 26 बच्चों को पाल रहा हूं।
कोहेफिजा के शुभम आश्रम में फिलहाल कर रहे हैं 26 बच्चों की परवरिश...