सिंहस्थ भूमि क्षेत्र का सीमांकन जरूरी
डाॅ. चन्दर सोनाने
गत सिंहस्थ सन् 2004 में उज्जैन में आयोजित हुआ था। उस समय इसके लिए कुल भूमि 2154.42 हेक्टेयर भूमि अधिगृहित की गई थी। दिनांक 22 अप्रैल से 21 मई 2016 तक आयोजित होने वाले आगामी सिंहस्थ के लिए कुल भूमि 3061 हेक्टेयर अधिकृत की गई है। इस सिंहस्थ में सेटेलाइट टाउन के लिए 352 हेक्टेयर भूमि अतिरिक्त अधिगृहित की गई हैं। सन् 1980 में आयोजित सिंहस्थ में उज्जैन कस्बे की 1346.29 हेक्टेयर भूमि अधिगृहित की गई थी। मजेदार बात यह हैं कि सन् 1980 में आयोजित किए गए सिंहस्थ में उज्जैन शहर की जितनी भूमि अधिगृहित की गई थी, वही भूमि सिंहस्थ 2004 और आगामी सिंहस्थ 2016 में भी शामिल हैं। जबकि गत 25 वर्षो में उस भूमि पर अनेक शासकीय और अशासकीय तौर पर काॅलोनियां कट गई हैं। और उसमें वर्षो से नागरिक निवास भी कर रहे हैं। पिछले पच्चीस वर्षो से सिंहस्थ क्षेत्र में लगातार हो रहे अतिक्रमण के कारण सिंहस्थ क्षेत्र की भूमि वास्तविक रूप में लगातार कम होती जा रही हैं। इस समस्या के स्थाई निराकरण के लिए सम्पूर्ण क्षेत्र का सीमांकन किया जाना जरूरी हैं।
लगातार हो रहे अतिक्रमण के कारण सिंहस्थ का वास्तविक क्षेत्र कम होता जा रहा हैं। गैर सरकारी तौर पर हो रहे अतिक्रमण के साथ ही शासकीय स्तर पर भी लगातार सिंहस्थ भूमि पर अतिक्रमण किया जा रहा हैं। इस कारण सिंहस्थ क्षेत्र की भूमि निरंतर कम होती जा रही हैं। हाल ही में रूद्र सागर क्षेत्र में से ही सड़क निर्माण किया गया हैं। इसके साथ ही इंटरप्रिटेषन सेन्टर का निर्माण भी रूद्रसागर की भूमि पर ही कर दिया गया हैं। सड़क चैड़ीकरण के नाम से भी रूद्र सागर निरंतर छोटा और संकुचित किया जा रहा हैं।
आगामी सिंहस्थ के लिए विभिन्न अखाडों और महामंडलेश्वर के शिविर मेला क्षेत्र में लगेंगे। इसके लिए विभिन्न अखाड़ों के प्रतिनिधियों और साधु संतो ने अपने शिविर स्थलों को देखने के लिए उज्जैन आना भी शुरू कर दिया हैं। उन्हें अपने परंपरागत स्थान पर अतिक्रमण देखकर क्रोध आ रहा हैं और वे अपनी असंतुष्टि व्यक्त भी करने लग गए हैं। रूद्र सागर में परंपरानुसार शंकराचार्यो के शिविर लगते है। यहां आज हालात यह हैं कि निजी और शासकीय स्तर पर बहुत अधिक अतिक्रमण हो गये हैं। यहां षंकराचार्यो को परंपरानुसार जगह देना मेला प्रशासन के लिए समस्या बनता जा रहा हैं। अभी तो यह शुरूआत हैं। परंपरानुसार जगह नही मिलने पर विभिन्न अखाड़ों के संत महात्मा असंतुष्ट होंगे तो उन्हें संतुष्ट करना मुश्किल होगा।
उज्जैन के पौराणिक सप्तसागरों रूद्रसागर, पुष्करसागर क्षीरसागर, गोवर्धनसागर, रत्नाकरसागर, विष्णुसागर और पुरूषोत्तमसागर में भी लगातार अतिक्रमण के कारण ऐतिहासिक सप्तसागर निरंतर सिमटते जा रहे हैं। इन सागरों का भी सीमांकन होना अत्यंत आवश्यक हैं, अन्यथा एक समय ऐसा आएगा जब ये ऐतिहासिक एवं पौराणिक सप्त सागर केवल इतिहास एवं पुराणो में ही मिलेंगे वास्तविक रूप में अपने स्थल से विलुप्त हो चुके होंगे। इसलिए इन सप्तसागरों पर से अतिक्रमण रोका जाने के लिए जरूरी है कि उसका सीमांकन कर लिया जाए। इसके साथ ही प्रत्येक सप्तसागर की सीमा के चारों ओर बाउंड्रीवाॅल बना दी जाए ताकि कोई अतिक्रमण नही कर सके।
सिंहस्थ भूमि पर भविष्य में अतिक्रमण नही होने पाए और वास्तविक रूप से जो भूमि बचती हैं, इसका सीमांकन किया जाना अत्यंत आवश्यक हैं। इसके लिए सम्पूर्ण सिंहस्थ मेला क्षेत्र के समस्त छः झोनो में भूमि का वास्तविक सीमांकन करना जरूरी हैं। सीमांकन करने के बाद प्रत्येक झोन क्षेत्र का नक्शा प्रमुख स्थान पर लगा देना चाहिए। इस सिंहस्थ भूमि पर अतिक्रमण करने वाले लोगो की सूचना देने के लिए वहां सूचना पटल लगाकर सक्षम अधिकारी का नाम व मोबाइल नंबर भी अंकित किया जाना चाहिए, ताकि कोई भी अतिक्रमण करना चाहे तो जागरूक नागरिक सक्षम अधिकारी को मोबाइल पर सूचना दे सकें ताकि सख्ती से अतिक्रमण पर रोक लगाई जा सके। जिला प्रशासन को चाहिए कि प्रत्येक झोन क्षेत्र के सीमांकन के बाद उसकी लगातार निरीक्षण और समीक्षा करते रहें ताकि भविष्य में होने वाले अतिक्रमण को योजनाबद्ध तरीकें से रोका जा सके।
गत सिंहस्थ सन् 2004 में उज्जैन में आयोजित हुआ था। उस समय इसके लिए कुल भूमि 2154.42 हेक्टेयर भूमि अधिगृहित की गई थी। दिनांक 22 अप्रैल से 21 मई 2016 तक आयोजित होने वाले आगामी सिंहस्थ के लिए कुल भूमि 3061 हेक्टेयर अधिकृत की गई है। इस सिंहस्थ में सेटेलाइट टाउन के लिए 352 हेक्टेयर भूमि अतिरिक्त अधिगृहित की गई हैं। सन् 1980 में आयोजित सिंहस्थ में उज्जैन कस्बे की 1346.29 हेक्टेयर भूमि अधिगृहित की गई थी। मजेदार बात यह हैं कि सन् 1980 में आयोजित किए गए सिंहस्थ में उज्जैन शहर की जितनी भूमि अधिगृहित की गई थी, वही भूमि सिंहस्थ 2004 और आगामी सिंहस्थ 2016 में भी शामिल हैं। जबकि गत 25 वर्षो में उस भूमि पर अनेक शासकीय और अशासकीय तौर पर काॅलोनियां कट गई हैं। और उसमें वर्षो से नागरिक निवास भी कर रहे हैं। पिछले पच्चीस वर्षो से सिंहस्थ क्षेत्र में लगातार हो रहे अतिक्रमण के कारण सिंहस्थ क्षेत्र की भूमि वास्तविक रूप में लगातार कम होती जा रही हैं। इस समस्या के स्थाई निराकरण के लिए सम्पूर्ण क्षेत्र का सीमांकन किया जाना जरूरी हैं।
लगातार हो रहे अतिक्रमण के कारण सिंहस्थ का वास्तविक क्षेत्र कम होता जा रहा हैं। गैर सरकारी तौर पर हो रहे अतिक्रमण के साथ ही शासकीय स्तर पर भी लगातार सिंहस्थ भूमि पर अतिक्रमण किया जा रहा हैं। इस कारण सिंहस्थ क्षेत्र की भूमि निरंतर कम होती जा रही हैं। हाल ही में रूद्र सागर क्षेत्र में से ही सड़क निर्माण किया गया हैं। इसके साथ ही इंटरप्रिटेषन सेन्टर का निर्माण भी रूद्रसागर की भूमि पर ही कर दिया गया हैं। सड़क चैड़ीकरण के नाम से भी रूद्र सागर निरंतर छोटा और संकुचित किया जा रहा हैं।
आगामी सिंहस्थ के लिए विभिन्न अखाडों और महामंडलेश्वर के शिविर मेला क्षेत्र में लगेंगे। इसके लिए विभिन्न अखाड़ों के प्रतिनिधियों और साधु संतो ने अपने शिविर स्थलों को देखने के लिए उज्जैन आना भी शुरू कर दिया हैं। उन्हें अपने परंपरागत स्थान पर अतिक्रमण देखकर क्रोध आ रहा हैं और वे अपनी असंतुष्टि व्यक्त भी करने लग गए हैं। रूद्र सागर में परंपरानुसार शंकराचार्यो के शिविर लगते है। यहां आज हालात यह हैं कि निजी और शासकीय स्तर पर बहुत अधिक अतिक्रमण हो गये हैं। यहां षंकराचार्यो को परंपरानुसार जगह देना मेला प्रशासन के लिए समस्या बनता जा रहा हैं। अभी तो यह शुरूआत हैं। परंपरानुसार जगह नही मिलने पर विभिन्न अखाड़ों के संत महात्मा असंतुष्ट होंगे तो उन्हें संतुष्ट करना मुश्किल होगा।
उज्जैन के पौराणिक सप्तसागरों रूद्रसागर, पुष्करसागर क्षीरसागर, गोवर्धनसागर, रत्नाकरसागर, विष्णुसागर और पुरूषोत्तमसागर में भी लगातार अतिक्रमण के कारण ऐतिहासिक सप्तसागर निरंतर सिमटते जा रहे हैं। इन सागरों का भी सीमांकन होना अत्यंत आवश्यक हैं, अन्यथा एक समय ऐसा आएगा जब ये ऐतिहासिक एवं पौराणिक सप्त सागर केवल इतिहास एवं पुराणो में ही मिलेंगे वास्तविक रूप में अपने स्थल से विलुप्त हो चुके होंगे। इसलिए इन सप्तसागरों पर से अतिक्रमण रोका जाने के लिए जरूरी है कि उसका सीमांकन कर लिया जाए। इसके साथ ही प्रत्येक सप्तसागर की सीमा के चारों ओर बाउंड्रीवाॅल बना दी जाए ताकि कोई अतिक्रमण नही कर सके।
सिंहस्थ भूमि पर भविष्य में अतिक्रमण नही होने पाए और वास्तविक रूप से जो भूमि बचती हैं, इसका सीमांकन किया जाना अत्यंत आवश्यक हैं। इसके लिए सम्पूर्ण सिंहस्थ मेला क्षेत्र के समस्त छः झोनो में भूमि का वास्तविक सीमांकन करना जरूरी हैं। सीमांकन करने के बाद प्रत्येक झोन क्षेत्र का नक्शा प्रमुख स्थान पर लगा देना चाहिए। इस सिंहस्थ भूमि पर अतिक्रमण करने वाले लोगो की सूचना देने के लिए वहां सूचना पटल लगाकर सक्षम अधिकारी का नाम व मोबाइल नंबर भी अंकित किया जाना चाहिए, ताकि कोई भी अतिक्रमण करना चाहे तो जागरूक नागरिक सक्षम अधिकारी को मोबाइल पर सूचना दे सकें ताकि सख्ती से अतिक्रमण पर रोक लगाई जा सके। जिला प्रशासन को चाहिए कि प्रत्येक झोन क्षेत्र के सीमांकन के बाद उसकी लगातार निरीक्षण और समीक्षा करते रहें ताकि भविष्य में होने वाले अतिक्रमण को योजनाबद्ध तरीकें से रोका जा सके।