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महाकालेश्वर मंदिर


    उज्जयिनी के महाकालेश्वर की मान्यता भारत के प्रमुख बारह ज्योर्तिलिंगों में की जाती है। महाकालेश्वर मन्दिर का माहात्म्य विभिन्न पुराणों में विस्तृत रूप से वर्णित हैं। महाकवि कालिदास से लेकर संस्कृत साहित्य के अनेक प्रसिद्ध कवियों ने इस मन्दिर का वर्णन भावविभोर होकर किया हैं।लोक-मानस में महाकाल की परम्परा अनादि हैं। उज्जैन भारत की कालगणना का केन्द्र बिन्दु था और महाकाल उज्जैन के अधिपति आदिदेव थे।
               इतिहास के प्रत्येक युग में - शुंग, कुशाण , सातवाहन, गुप्त, परिहार, परमार तथा अपेक्षाकृत आधुनिक मराठाकाल में इस मन्दिर का निरन्तर जीर्णोद्धार होता रहा हैं। 1235 ई. में अल्तुतमिश ने इसे नष्ट कर दिया था। वर्तमान मन्दिर का पुनर्निमाण राणोजी सिन्धिया के काल में मालवा के सूबेदार रामचन्द्र बाबा शेणवी द्वारा कराया गया था। वर्तमान में भी जीर्णोद्धार एवम् सुविधा विस्तार का कार्य होता रहा हैं।
             महाकालेश्वर की प्रतिमा दक्षिण-मुखी हैं। तान्त्रिक परम्परा में प्रसिद्ध दक्षिण-मुखी पूजा का महत्व बारह ज्योतिर्लिंगों में केवल महाकालेश्वर को ही प्राप्त है। ओंकारेश्वर में मन्दिर के ऊपरी पीठ पर महाकाल मूर्ति के समान इस मन्दिर के ऊपरी पीठ में ओंकारेश्वर शिव की प्रतिष्ठा हैं। तीसरे खण्ड में नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा के दर्शन वर्ष में एक बार  केवल नागपंचमी केा होते है। विक्रमादित्य और भेाज की महाकाल पूजा तो प्रसिद्ध हैं। परन्तु मुगलकाल में भी पूजा के लिए शासकीय सनदे महाकाल मन्दिर को प्राप्त होती रही हैं। वर्तमान मे यह मन्दिर महाकाल मन्दिर प्रबन्ध समिति के तत्वावधान में संरक्षित हैं।  

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