पड़ोसी देश नेपाल का साथ छुटने का खतरा
डाॅ. चन्दर सोनाने
नेपाल के प्रधानमंत्री श्री के.पी. शर्मा ओली ने प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद पहली बार कल 15 नवंबर को देश की जनता को संबोधित करते हुए भारत द्वारा सीमा पर की गई नाकेबंदी को युद्धकाल की हालत से भी बद्तर करार दिया हैं। उन्होंने जनता से स्पष्ट रूप से कहा हैं कि “हमें महसूस हो गया हैं कि जरूरी सामान के लिए केवल भारत पर निर्भरता रखना हमारी कमजोरी हैं।” नेपाल के प्रधानमंत्री का अपनी देश की जनता से सीधे बातचीत करते हुए उक्त बात कहना भारत के लिए खतरें की घंटी हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी विश्व के देशों की लगातार यात्रा कर उनसे मधुर संबंध बनाने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं पड़ोसी देश नेपाल पर ध्यान नही देने के कारण उससे दशकों पुराना साथ छुटने का खतरा उत्पन्न हो गया हैं।
श्री के.पी. शर्मा ओली जब सेे प्रधानमंत्री बने हैं, तब से लगातार भारत से सीमा पर की गई अघोषित नाकेबंदी को समाप्त करने की अपील कर रहे हैं। नेपाल में भारत से जरूरी ईंधन ,दवाईंयाँ सहित आवश्यक सामान की आपूर्ति ठप्प होने के कारण संकट की स्थिति बन गई हैं। हालत यहाँ तक पहुंच गई हैं कि रसोई गैस के संकट के कारण लोग खाना नहीं बना पा रहे हैं।
भारत की लगातार उदासीनता के कारण नेपाल ने चीन से दोस्ताना संबंध बनाना आरंभ कर दिया हैं। स्थिति की नजाकत को देखते हुए चीन ने भी तुरंत नेपाल के साथ करार करके ईंधन आपूर्ति शुरू भी कर दी हैं। भारत को इससे सबक लेना चाहिए। नेपाल के प्रति भारत की विदेश नीति यहां पूरी तरह फेल होती दिखाई दे रही हैं। सामयिक दृष्टिकोण से नेपाल भारत के लिए विशेष महत्व रखता हैं। यह सर्वविदित हैं। भारत में किसी भी दल की सत्ता केन्द्र में रही हों किंतु सामान्यतः यही होता आया हैं कि विदेश नीति लगभग अप्रभावित रही हैं। सभी राजनितिक दलों ने राजनितिक सीमाओं से ऊपर उठते हुए देशहीत को सर्वोपरि महत्व दिया हैं।
हमारे देश के प्रधानमंत्री लगातार और लगभग हर महीने विदेश यात्रा कर रहे हैं। विश्व के अनेक देशों में उनका योजनाबद्ध तरीके से अभूतपूर्व स्वागत हुआ हैं। यह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के सलाहकारों के “ईवेंट मैनेजमेंट” का बेहतरीन उदाहरण कहा जा सकता हैं। किंतु विदेश नीति के ईवेंट मैनेजमेंट के कर्ताधर्ताओं को भारत और नेपाल के दशकों पुराने आपसी भाईचारें के संबंधांे की कोई परवाह नही हैं। लगता ह्रैं वे इसे गौण महत्व का विषय समझकर नजरअंदाज कर रहे हैं। किंतु यह भारत के लिए आत्मघाती सिद्ध होगा । भारत की इसी तरह की नीति से उसके स्थायी पड़ोसी देश नेपाल का साथ छुटने का गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया हैं। भारत का इस संबंध में यह कहना कि उसके द्वारा किसी तरह की कोई नाकाबंदी नहीं की गई हैं। समस्या नेपाल के भीतर की ही हैं। जहाँ मधेसी आंदोलनकारियों के कारण भारत से जरूरी सामानों के ट्रक जा नहीं पा रहे हैं। भारत का यह वक्तव्य हास्यास्पद हैं। अभी भी देर नही हुई हैं। भारत के विदेशी रणनीतिकारों को चेत जाना चाहिए और तुरंत नेपाल के साथ पड़ोसी धर्म का निर्वहन करते हुए आवश्यक सामग्री पहुंचाने का तुरंत और ठोस प्रयास करना चाहिए। अन्यथा नेपाल भारत की बजाय और तेजी के साथ चीन से जुड़ने लगेगा। यह भारत के हित में कदापि उचित नही होगा।
नेपाल के प्रधानमंत्री श्री के.पी. शर्मा ओली ने प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद पहली बार कल 15 नवंबर को देश की जनता को संबोधित करते हुए भारत द्वारा सीमा पर की गई नाकेबंदी को युद्धकाल की हालत से भी बद्तर करार दिया हैं। उन्होंने जनता से स्पष्ट रूप से कहा हैं कि “हमें महसूस हो गया हैं कि जरूरी सामान के लिए केवल भारत पर निर्भरता रखना हमारी कमजोरी हैं।” नेपाल के प्रधानमंत्री का अपनी देश की जनता से सीधे बातचीत करते हुए उक्त बात कहना भारत के लिए खतरें की घंटी हैं। हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी विश्व के देशों की लगातार यात्रा कर उनसे मधुर संबंध बनाने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं पड़ोसी देश नेपाल पर ध्यान नही देने के कारण उससे दशकों पुराना साथ छुटने का खतरा उत्पन्न हो गया हैं।
श्री के.पी. शर्मा ओली जब सेे प्रधानमंत्री बने हैं, तब से लगातार भारत से सीमा पर की गई अघोषित नाकेबंदी को समाप्त करने की अपील कर रहे हैं। नेपाल में भारत से जरूरी ईंधन ,दवाईंयाँ सहित आवश्यक सामान की आपूर्ति ठप्प होने के कारण संकट की स्थिति बन गई हैं। हालत यहाँ तक पहुंच गई हैं कि रसोई गैस के संकट के कारण लोग खाना नहीं बना पा रहे हैं।
भारत की लगातार उदासीनता के कारण नेपाल ने चीन से दोस्ताना संबंध बनाना आरंभ कर दिया हैं। स्थिति की नजाकत को देखते हुए चीन ने भी तुरंत नेपाल के साथ करार करके ईंधन आपूर्ति शुरू भी कर दी हैं। भारत को इससे सबक लेना चाहिए। नेपाल के प्रति भारत की विदेश नीति यहां पूरी तरह फेल होती दिखाई दे रही हैं। सामयिक दृष्टिकोण से नेपाल भारत के लिए विशेष महत्व रखता हैं। यह सर्वविदित हैं। भारत में किसी भी दल की सत्ता केन्द्र में रही हों किंतु सामान्यतः यही होता आया हैं कि विदेश नीति लगभग अप्रभावित रही हैं। सभी राजनितिक दलों ने राजनितिक सीमाओं से ऊपर उठते हुए देशहीत को सर्वोपरि महत्व दिया हैं।
हमारे देश के प्रधानमंत्री लगातार और लगभग हर महीने विदेश यात्रा कर रहे हैं। विश्व के अनेक देशों में उनका योजनाबद्ध तरीके से अभूतपूर्व स्वागत हुआ हैं। यह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के सलाहकारों के “ईवेंट मैनेजमेंट” का बेहतरीन उदाहरण कहा जा सकता हैं। किंतु विदेश नीति के ईवेंट मैनेजमेंट के कर्ताधर्ताओं को भारत और नेपाल के दशकों पुराने आपसी भाईचारें के संबंधांे की कोई परवाह नही हैं। लगता ह्रैं वे इसे गौण महत्व का विषय समझकर नजरअंदाज कर रहे हैं। किंतु यह भारत के लिए आत्मघाती सिद्ध होगा । भारत की इसी तरह की नीति से उसके स्थायी पड़ोसी देश नेपाल का साथ छुटने का गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया हैं। भारत का इस संबंध में यह कहना कि उसके द्वारा किसी तरह की कोई नाकाबंदी नहीं की गई हैं। समस्या नेपाल के भीतर की ही हैं। जहाँ मधेसी आंदोलनकारियों के कारण भारत से जरूरी सामानों के ट्रक जा नहीं पा रहे हैं। भारत का यह वक्तव्य हास्यास्पद हैं। अभी भी देर नही हुई हैं। भारत के विदेशी रणनीतिकारों को चेत जाना चाहिए और तुरंत नेपाल के साथ पड़ोसी धर्म का निर्वहन करते हुए आवश्यक सामग्री पहुंचाने का तुरंत और ठोस प्रयास करना चाहिए। अन्यथा नेपाल भारत की बजाय और तेजी के साथ चीन से जुड़ने लगेगा। यह भारत के हित में कदापि उचित नही होगा।