सिंहस्थः मेलाधिकारी और नगर निगम आयुक्त हो अलग- अलग
डाॅ. चन्दर सोनाने
आस्था और विश्वास का महापर्व सिंहस्थ आगामी 22 अप्रैल से 21 मई तक उज्जैन में आयोजित होने जा रहा हैं। इस पुनीत पर्व पर करीब 5 करोड़ श्रद्धालुओं के उज्जैन आने का अनुमान हैं। इतनी अधिक संख्या में श्रद्धालुओं के आने पर निश्चित रूप से नगर में और मेला क्षेत्र में स्वच्छता, पेयजल, शौचालय और मूत्रालय , सीवर लाइन आदि अनेक मूलभूत कार्य नगर निगम को ही करने होते हैं। किंतु वर्तमान में नगर निगम आयुक्त व मेला अधिकारी दोनो अत्यन्त महत्वपूर्ण पदों पर एक ही अधिकारी श्री अविनाश लवानिया पदस्थ है। दोनों पदों के कार्य व दायित्व अलग-अलग होने के कारण कोई भी व्यक्ति दोनो पदों के साथ न्याय करने में समर्थ नही हो सकता । इसलिए राज्य शासन को चाहिए तत्काल दोनों पद पर पृथक-पृथक अधिकारी तैनात करें।
संभागायुक्त डाॅ. रवीन्द्र पस्तोर ने पिछले माह और इस माह झोन स्तरीय बैठक लेकर समीक्षा में स्पष्ट रूप से यह पाया कि नगर निगम के कार्य अत्यन्त पिछड़ रहे हैं। मजेदार बात यह हैं कि संभागायुक्त के साथ सिंहस्थ मेला क्षेत्र के निरीक्षण के दौरान श्री अविनाश लवानिया सिर्फ मेलाधिकारी बन जाते हैं। और वह यह भूल जाते हैं। कि संभागायुक्त द्वारा सिंहस्थ क्षेत्र की नगर निगम से संबंधित जो कमियां बताई जा रही हैं। उसकी जिम्मेदारी नगर निगम आयुक्त हाने के नाते उनकी स्वयं की हैं।
उल्लेखनीय हैं कि मेला क्षेत्र में शौचालय निर्माण के कार्य का निरीक्षण करते हुए संभागायुक्त ने गुणवत्ताहीन कार्य पर जब अत्यन्त नाराजगी व्यक्त की तो नगर निगम आयुक्त और मेलाधिकारी श्री अविनाश लवानिया गैर जिम्मेदार पूर्ण तरीके से वहां बताते हैं कि डी.पी.आर. के डिजायन के अनुसार कार्य नही हो रहा हैं, जबकि डी.पी.आर. के अनुसार कार्य नही होने की जिम्मेदारी नगर निगम आयुक्त होने क नाते उनके स्वयं की हैं। वे उस समय ये भूल जाते हैं कि वे नगर निगम के आयुक्त के पद को भी धारण कर रहें हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब नगर निगम के कार्य की धीमी गति पर संभागायुक्त स्पष्ट रूप से सार्वजतिक रूप से असंतोष प्रकट कर चुके हैं।
वर्तमान में नगर निगम आयुक्त श्री अविनाश लवानिया नगर निगम के कार्य को वास्तव में देख ही नही पा रहे हैं। उन्होंने नगर निगम के सिंहस्थ संबंधित कार्य नगर निगम के अपर आयुक्त व उपायुक्त के भरोसे छोड़ रखे हैं। श्री अविनाश लवानिया का अधिकांश समय मेला कार्यालय में ही बितता हैं। वे मेला कार्यालय की व्ययस्तताओं के कारण नगर निगम के कार्यो को देख ही नही पा रहे हैं।
सिंहस्थ में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए तथा साधु संतो की मूलभूत सुविधा के लिए नगर निगम द्वारा समस्त महत्वपूर्ण कार्य किए जाने हैं। सम्पूर्ण मेला क्षेत्र में साफ सफाई और मूलभूत सुविधओं की महती जिम्मेदारी नगर निगम की रहेगी। अब बहुत कम समय बचा हैं। अतः नगर निगम आयुक्त के पद पर राज्य शासन द्वारा पृथक से एक जिम्मेदार अधिकारी को तैनात किया जाना अत्यन्त आवश्यक हैं। गत सिंहस्थ में नगर निगम आयुक्त के रूप में श्री विनोद शर्मा ने 24 घंटों में से 18 घंटे दिन रात काम कर अपने कार्य व दायित्व का सफलतापूर्वक निर्वहन किया था अब फिर ऐसे ही कर्मठ अधिकारी की जरूरत हैं। जो अपना अधिकांश समय पूर्णरूप से नगर निगम के कार्य को समर्पित कर सकें। अतः राज्य शासन की महती जिम्मेदारी हैं कि वह नगर निगम आयुक्त के पद पर एक कर्मठ व्यक्ति को तत्काल तैनात करें, ताकि नगर निगम के और सिंहस्थ से संबंधित सभी कार्य समय सीमा में पूर्ण किए जा सकें।
आस्था और विश्वास का महापर्व सिंहस्थ आगामी 22 अप्रैल से 21 मई तक उज्जैन में आयोजित होने जा रहा हैं। इस पुनीत पर्व पर करीब 5 करोड़ श्रद्धालुओं के उज्जैन आने का अनुमान हैं। इतनी अधिक संख्या में श्रद्धालुओं के आने पर निश्चित रूप से नगर में और मेला क्षेत्र में स्वच्छता, पेयजल, शौचालय और मूत्रालय , सीवर लाइन आदि अनेक मूलभूत कार्य नगर निगम को ही करने होते हैं। किंतु वर्तमान में नगर निगम आयुक्त व मेला अधिकारी दोनो अत्यन्त महत्वपूर्ण पदों पर एक ही अधिकारी श्री अविनाश लवानिया पदस्थ है। दोनों पदों के कार्य व दायित्व अलग-अलग होने के कारण कोई भी व्यक्ति दोनो पदों के साथ न्याय करने में समर्थ नही हो सकता । इसलिए राज्य शासन को चाहिए तत्काल दोनों पद पर पृथक-पृथक अधिकारी तैनात करें।
संभागायुक्त डाॅ. रवीन्द्र पस्तोर ने पिछले माह और इस माह झोन स्तरीय बैठक लेकर समीक्षा में स्पष्ट रूप से यह पाया कि नगर निगम के कार्य अत्यन्त पिछड़ रहे हैं। मजेदार बात यह हैं कि संभागायुक्त के साथ सिंहस्थ मेला क्षेत्र के निरीक्षण के दौरान श्री अविनाश लवानिया सिर्फ मेलाधिकारी बन जाते हैं। और वह यह भूल जाते हैं। कि संभागायुक्त द्वारा सिंहस्थ क्षेत्र की नगर निगम से संबंधित जो कमियां बताई जा रही हैं। उसकी जिम्मेदारी नगर निगम आयुक्त हाने के नाते उनकी स्वयं की हैं।
उल्लेखनीय हैं कि मेला क्षेत्र में शौचालय निर्माण के कार्य का निरीक्षण करते हुए संभागायुक्त ने गुणवत्ताहीन कार्य पर जब अत्यन्त नाराजगी व्यक्त की तो नगर निगम आयुक्त और मेलाधिकारी श्री अविनाश लवानिया गैर जिम्मेदार पूर्ण तरीके से वहां बताते हैं कि डी.पी.आर. के डिजायन के अनुसार कार्य नही हो रहा हैं, जबकि डी.पी.आर. के अनुसार कार्य नही होने की जिम्मेदारी नगर निगम आयुक्त होने क नाते उनके स्वयं की हैं। वे उस समय ये भूल जाते हैं कि वे नगर निगम के आयुक्त के पद को भी धारण कर रहें हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब नगर निगम के कार्य की धीमी गति पर संभागायुक्त स्पष्ट रूप से सार्वजतिक रूप से असंतोष प्रकट कर चुके हैं।
वर्तमान में नगर निगम आयुक्त श्री अविनाश लवानिया नगर निगम के कार्य को वास्तव में देख ही नही पा रहे हैं। उन्होंने नगर निगम के सिंहस्थ संबंधित कार्य नगर निगम के अपर आयुक्त व उपायुक्त के भरोसे छोड़ रखे हैं। श्री अविनाश लवानिया का अधिकांश समय मेला कार्यालय में ही बितता हैं। वे मेला कार्यालय की व्ययस्तताओं के कारण नगर निगम के कार्यो को देख ही नही पा रहे हैं।
सिंहस्थ में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए तथा साधु संतो की मूलभूत सुविधा के लिए नगर निगम द्वारा समस्त महत्वपूर्ण कार्य किए जाने हैं। सम्पूर्ण मेला क्षेत्र में साफ सफाई और मूलभूत सुविधओं की महती जिम्मेदारी नगर निगम की रहेगी। अब बहुत कम समय बचा हैं। अतः नगर निगम आयुक्त के पद पर राज्य शासन द्वारा पृथक से एक जिम्मेदार अधिकारी को तैनात किया जाना अत्यन्त आवश्यक हैं। गत सिंहस्थ में नगर निगम आयुक्त के रूप में श्री विनोद शर्मा ने 24 घंटों में से 18 घंटे दिन रात काम कर अपने कार्य व दायित्व का सफलतापूर्वक निर्वहन किया था अब फिर ऐसे ही कर्मठ अधिकारी की जरूरत हैं। जो अपना अधिकांश समय पूर्णरूप से नगर निगम के कार्य को समर्पित कर सकें। अतः राज्य शासन की महती जिम्मेदारी हैं कि वह नगर निगम आयुक्त के पद पर एक कर्मठ व्यक्ति को तत्काल तैनात करें, ताकि नगर निगम के और सिंहस्थ से संबंधित सभी कार्य समय सीमा में पूर्ण किए जा सकें।