top header advertisement
Home - आपका ब्लॉग << दिखावा बूरी बला है!

दिखावा बूरी बला है!




         श्रद्धा पंचोली

                   “ग्रीन सिटी-क्लीन सिटी”,“ ग्रीन उज्जैन-ग्रीन सिंहस्थ”। सिंहस्थ के आते ही उज्जैन की साफ-सफाइ्र्र की कितनी चिंता हो रही है। असली सफाई तो राजनीति में भ्रश्ट नेता की होनी चाहिए। अगर इनकी सफाई हो गई तो आधा उज्जैन इनके साफ होते ही साफ हो जायेगा। उज्जैन को ग्रीन सिटी बनाने की योजना पर दिनो-दिन चर्चाए हो रही है। उज्जैन पर खर्च हुए करोडो रूपए तो नेता ही निगल रहे है जिसका कोई हिसाब ही नही है।
                 “ग्रीन सिटी”- क्लीन सिटी” के बारे में हमारे मन में सामान्य धारणा यह बनती है कि जहाँ बहुत सारे पेड़-पोधों के बीच आषियाने बने हो। वही हो सकती है “ग्रीन सिटी”। अगर बात करे “क्लीन सिटी” की “क्लीन सिटी” साफ-सुथरा षहर ! वह जगह जहाॅँ हरियाली के बिच आषियानें बने हो, षैंचालय बने हो, प्लास्टिक या पाॅलीथिन का उपयोग ना हो वही है, “क्लीन सिटी”।
                 हमारे  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा चलाये गए इस अभियान से करोडो लोग जुड गए है, पर यह कितनी षर्म की बात है कि हमें सफाई के प्रति भी किसी ने जगाया, हम अपने घरों की सफाई करते है पर देष की सफाई के बारे में किसी का ध्यान नही गया क्यो ? अगर किसी व्यक्ति से पूछे तो उसका जवाब यही होगा -” दौडती भागती दुनियाॅँ में कहा टाईम मिलता है सोचने का, खाने-पिने की समझ पड. जाये उतना ही बहुत है, ऊपर से परिवार की जिमेदारी सो अलग ”।
                   अगर बात ” क्लीन सिटी ” की करे तो उज्जैन में लगने वाले सिंहस्थ की जोर-षोर से तैयारीयाॅँ चल रही है , पर आए दिन जगह - जगह गंदगी पसरी  हुई मिल रही है। गांधी जयंती पर साफ-सफाई को लेकर मंडी परिसर के अफसरो ने मंडी परिसर की सफाई की पर उस जगह की जहाँ कोई कचरा, गंदगी नही थी। मंडी परिसर में जहाँं महिनो तक गंदगी पडी रहती है उस तरफ किसी अफसर का ध्यान नही गया, सभी अफसरो ने हाथ में झाडू. लेकर फोटो खिचवाए और चले गए। मोदी जी के द्वारा सफाई के प्रति जगाने पर बेमन से यह रस्म अदा की गई। अब आप ही बताइए ऐसा दिखावा किस कामका ? एक खबर और आकशर््ण का केन्द्र बनी वो है ” पोलिथिन “। जी हाँ पाॅलिथिन को बन्द करने के कितने संकल्प कितनी रैलियों का सहारा लिया गया है, पर कुछ असर नहीं हुआ। हमें दूध की दुकानों पर लिखा मिलता है “कल से पाॅलिथिन बन्द कृपया बर्तन लाए” पर उनका कल आज तक नही हुआ है। सब्जीवाले खुले आम पाॅलिथिन में सब्जीयाँ दे रहे है, पर किसी का ध्यान नही है। इससे हमारा वातावरण प्रदूशित होता है। हमें इसका विरोध करना चाहिए।
                    ग्रीन सिटी की अगर बात करे तो फोर-लेन , चैड़ीकरण के चक्कर में सारे हरे भरे पेडों की बली दे दी। बेजुुबान पेड़ चिखते चिल्लाते रहे होगंे, पर किसी को उनका दर्द समझ नही आया, बेचारो की सरे आम ही मृत्यु हो गई । पेडो. पर बने आषियाने जो पक्षी द्वारा दिन-रात ,सप्ताह, महिने एक-एक कर बनाये गये आषियाने  कुछ ही द्यंटो में तबाह हों गये। उनकी तरफ किसी का ध्यान नही गया और ना ही किसी ने आवाज उठाई।
                     अगर किसी व्यक्ति की यह स्थिति हो तो वो वह कानून का सहारा लेता है, उसकी मदद करने के लिए वकिल, गवाह, जज, परिवार, रिष्तेदार आदी लोग साथ होते है ,पर इन बेजुबां जानवर, पक्षी का कौनवकील, कौन गवाह कौन जज........., परिवार है पर ये दोनों भी तो बेजुबां है।
                   ”व्क्षारोपण के दिन की बात है मैं सबके फोटो ले रही थी, सभी लोग नन्हें पौधे की बडे. प्यार से खातिरदारी कर रहे थे, पर नन्हां पोधा खुष होने के बजाय दुःखी और उदास दिख रहा था- “मैंने  उससे पूछा क्यो भाई इतने उदास क्यो दिख रहे हों, तुम्हारी कितने प्यार से खातिरदारी हो रही हैं।” पौधा मुझसे कहने लगा -“ ये सब दिखावा है कैमरा सामने होता है, तब ही मेरी इतनी खातिरदारी होती हैं। जब कैमरा सामने नही होता तो मुझे कोई पानी पिलाना भी उचित नही समझता। जिन अधिकारीयो को मुझसे बहुत प्यार है वो लोग मुझे देखने आते है , सिर्फ उनको दिखाने के लिए कही बार मेरे बड.े भाई-बहनो को लगाया जाता है, नही तो इनकी नजर में हमारा कोई आस्तित्व ही नही है।” अचानक मेरे कानो में एक स्वर सुनाई दिया, मेडम जल्दी कीजिए हम कबसे पोज देकर खडे. है। मैं वर्तमान में आ गई। उस कार्यक्रम को समाप्त कर के जब मैं जाने लगी तब मेरा ध्यान उस पौघे की तरफ गया मैं मन ही मन सोच रही थी कि क्या षायद कोई मुझसे बात कर रहा था। लेकिन जब मैंने उस पौघे की और गौर से देखा तब वह मुझे देखकर मुस्कुराया और बोला-“प्लीज हमारा घ्यान रखना, हमारा जीवन कैमरे के सामने ही है। अगर आपने हमारी और से ध्यान हटाया तो हमारा आस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा, अगर जिन्दा रहा तो फिर मिलेगे अलविदा”। मैंने उसे सांत्वना दी और मैं उस कार्यक्रम से बाहर आ गई।”
                  जब मैं पेड़ पौघो के बारे मैं सोचती हूँ तो एक सवाल मन मैं आता हैं कि एक पौधे को लगाने को लिए कितने लोग आस-पास खडे़ हो जाते है, अगर किसी को पौधा लगाना है तो कोई अलग से क्यो नही लगाता, सब फोटो खिचवाकर चले जाते है। ऐसा दिखावा सही नही है। ऐसी बाते सुनकर और साथ ही ऐसा दिखावा देखकर मुझें कुछ लाईन याद आ गई- 
”गोरैया तुम षहर ना जाओ, नही मिलेगी सांस,
पेड़  सारे कटे षहर के, कहा करोगी वास।”

                                                                           श्रद्धा पंचोली
   

Leave a reply