प्रदेश में 63% असिंचित भूमि: खेती कैसे हो फायदे का सौदा ?
डाॅ. चन्दर सोनाने
म.प्र. में आजकल हर दिन यह दुःखद खबर पढ़ने में आ रही है कि फलां जिले में किसान ने आत्महत्या कर ली । अल्प वर्षा या अतिवृष्टि के कारण किसान की फसल चैपट हो जाती हैं और वह अवसाद में चले जाकर आत्महत्या जैसे आत्मघाती कदम मजबूरी में उठा लेता हैं । एक सर्वेक्षण के अनुसार जो किसान आत्महत्या कर रहें हंै, उनमें से 90: किसान सीमांत हैं।
म.प्र के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान ने जब से सत्ता के सूत्र अपने हाथ में लिए हैं, तब से उन्होंने खेती को फायदे का सौदा बनाने का बीड़ा उठाया हैं। उन्होंने अनेकबार अपना यह संकल्प दोहराया भी हैं। किन्तु यदि हम प्रदेश के कुल सिंचित एवं असिंचित क्षेत्र के आंकडे देखे तो हमें हालात ज्यादा अच्छे नहीं दिखाई देते हैं। वर्ष 2012-13 के उपलब्ध आंकड़े के अनुसार म.प्र. में कुल औसत सिंचित क्षेत्र केवल 36.6% ही हैं। इसे यूं भी देखा जा सकता हैं कि प्रदेश की औसत 63.4: भूमि अभी भी असिंचित हैं। अर्थात सिंचित क्षेत्र के लिए प्रदेश में अभी बहुत कुछ करना बाकी हैं। प्रदेश के जिलों की जिलेवार स्थिति देखंे तो स्थिति स्पष्ट रूप से निराशाजनक दिखाई देती हैं। प्रदेश में जिलेवार सिंचित रकबा इस प्रकार हैं - प्रदेश में 25: से कम सिंचित वाले जिलांे में से डिंडोरी जिले में मात्र 1: भूमि सिंचित हैं। अलीराजपुर में 14.8:, मंडला में 11.0:, शहडोल में 13.7:, अनूपपुर जिले में 3.0:, उमरिया जिले में 21.5:, सिंगरौली जिले में 14.2:, सीधी जिले में 23.2:,भूमि सिंचित क्षेत्र हैं। यहां यह उल्लेखनीय हैं कि 25ः, से भी कम सिंचित वाले सभी 8 जिलें आदिवासी बाहुल्य जिले हैं। यह स्थिति अत्यंत निराशाजनक हैं। इन जिलों में सिंचाई के लिए अत्यधिक कार्य करने की जरूरत हैं।
प्रदेश के जिन जिलों में 50: से कम सिंचित क्षेत्र हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- बैतूल में 25.3:, भोपाल में 41.5:, रायसेन में 47.2:, राजगढ़ में 41.4:, सीहोर में 46.8:, विदिशा में 40.3:, भिंड में 43.4:, गुना जिले में 39.6:, अशोक नगर में 35.2:, शिवपुरी में 42.7:, हरदा में 48.9:, धार में 43.4:, इंदौर में 43.2:, झाबुआ मे 26.4:, खंडवा में 43.5:, बुरहानपुर में 43.9:, बडवानी में 36.3:, बालाघाट में 46.8:, छिन्दवाड़ा में 29. 0:, जबलपुर में 45.9:, कटनी में 47.1:, नरसिंहपुर में 48.1:, सिवनी में 28.8:, रीवा में 26.9:, सतना में 32.0:, छतरपुर में 41.7:, दमोह में 29.9:, पन्ना में 31.1:, सागर में 34.7:, देवास में 39.2:, मंदसौर में 38.8:, नीमच में 38.3:, रतलाम में 34.2:,शाजापुर में 35.6:, और उज्जैन में 37.2:, भूमि ही सिंचित हैं। इस प्रकार 35 जिले ऐसे हैं जहाँ पर 25 से 50: सिंचित भूमि हैं । इन जिलो की स्थिति भी
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चिंता जनक हैं।
प्रदेश में मात्र 7 जिले ऐसे हैं, जहाँ 50: से अधिक भूमि सिंचित हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं - मुरैना में 55.1:, श्योपुर, में 59.6:, दतिया में 72.9:, ग्वालियर में 65.0:, होेशंगाबाद में 56.3:, खरगौन में 56.1:, और टीकमगढ़ में 57.3:, क्षेत्र सिंचित हैं। इन सब जिलों को देखने के बाद स्पष्ट परिलक्षित होता हैं कि मुरैना , श्योपुर, दतिया और ग्वालियर में चंबल परियोजना के कारण सिंचित क्षेत्र में वृद्धि हुई हैं। इसी प्रकार होशंगाबाद में नर्मदा परियोजना के कारण स्थिति में सुधार हुआ हैं। खरगौन जिले में देजला देवड़ा परियोजना के कारण सिंचाई क्षेत्र में वृद्धि हुई हैं। अर्थात जिन क्षेत्रों में सिंचाई की वृह्द और मध्यम सिंचाई परियोजना लागू की गई, वहाँ 50: से अधिक भूमि सिंचित पाई गई हैं। इस क्षेत्र के किसान निःसंदेह अन्य जिलांे के किसानों से अधिक खुशहाल हैं।
प्रदेश के सिंचित और असिंचित क्षेत्र को देखने से यह स्पष्ट परिलक्षित होता हैं कि प्रदेश में सिंचाई के क्षेत्र में अभी बहुत काम करना बाकी हैं। किसानों को केवल सिंचाई की व्यवस्था उपलब्ध करा दी जाये तो वे खुशहाल हो सकते हैं। समृद्ध किसानों से ही समृद्ध प्रदेश और समृद्ध देश बनेगा। दुर्भाग्य से वर्तमान में लगभग सभी किसान सिंचाई के लिए प्राकृतिक वर्षा पर निर्भर हैं। कम वर्षा हुई हो या अधिक वर्षा हुई हो किसानों की कमर टूट जाती हैं। यदि किसानों को वर्ष भर सिंचाई की सुविधा दी जाये तो एक फसल के नहीं आने पर या नष्ट हो जाने पर वे इसकी भरपाई दूसरी फसल से आसानी से कर सकेंगे। इसलिए किसान को आत्महत्या से बचाने के लिए देश में दीर्घकालीन व अल्पकालीन सिंचाई योजनाओं को अपनाना होगा, तभी किसान खुशहाल हो सकेगा। यदि सभी किसानों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करा दी जाये तो निश्चित ही खेती फायदे का धंधा बन सकता हैं।
मुख्यमंत्री ने हाल ही में अतिवृष्टि से किसानों की नष्ट हुई फसल के लिए राहत राशि के लिए 700 करोड़ रूपये की घोषणा की हैं। यदि इतनी ही राशि हम किसानों को सिंचाई सुविधा के लिए उपलब्ध करा दे तो हालात बदलते देर नही लगेगी। तब खबर कहीं से यह नहीं आएगी कि फलां जिले में किसान ने आत्महत्या कर ली हैं, बल्कि यह खबर आएगी कि इस दिवाली पर किसानों ने इतने नए ट्रेक्टर उठाए, इतनी मोटरसाइकिलें ली और उन्होंने अपनी गृहलक्ष्मी के लिए इतने जेवरात बनाए। राज्य शासन को विशेष कर मुख्यमंत्री को इस दिशा में सार्थक पहल करने की सख्त जरूरत हैं।
म.प्र. में आजकल हर दिन यह दुःखद खबर पढ़ने में आ रही है कि फलां जिले में किसान ने आत्महत्या कर ली । अल्प वर्षा या अतिवृष्टि के कारण किसान की फसल चैपट हो जाती हैं और वह अवसाद में चले जाकर आत्महत्या जैसे आत्मघाती कदम मजबूरी में उठा लेता हैं । एक सर्वेक्षण के अनुसार जो किसान आत्महत्या कर रहें हंै, उनमें से 90: किसान सीमांत हैं।
म.प्र के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान ने जब से सत्ता के सूत्र अपने हाथ में लिए हैं, तब से उन्होंने खेती को फायदे का सौदा बनाने का बीड़ा उठाया हैं। उन्होंने अनेकबार अपना यह संकल्प दोहराया भी हैं। किन्तु यदि हम प्रदेश के कुल सिंचित एवं असिंचित क्षेत्र के आंकडे देखे तो हमें हालात ज्यादा अच्छे नहीं दिखाई देते हैं। वर्ष 2012-13 के उपलब्ध आंकड़े के अनुसार म.प्र. में कुल औसत सिंचित क्षेत्र केवल 36.6% ही हैं। इसे यूं भी देखा जा सकता हैं कि प्रदेश की औसत 63.4: भूमि अभी भी असिंचित हैं। अर्थात सिंचित क्षेत्र के लिए प्रदेश में अभी बहुत कुछ करना बाकी हैं। प्रदेश के जिलों की जिलेवार स्थिति देखंे तो स्थिति स्पष्ट रूप से निराशाजनक दिखाई देती हैं। प्रदेश में जिलेवार सिंचित रकबा इस प्रकार हैं - प्रदेश में 25: से कम सिंचित वाले जिलांे में से डिंडोरी जिले में मात्र 1: भूमि सिंचित हैं। अलीराजपुर में 14.8:, मंडला में 11.0:, शहडोल में 13.7:, अनूपपुर जिले में 3.0:, उमरिया जिले में 21.5:, सिंगरौली जिले में 14.2:, सीधी जिले में 23.2:,भूमि सिंचित क्षेत्र हैं। यहां यह उल्लेखनीय हैं कि 25ः, से भी कम सिंचित वाले सभी 8 जिलें आदिवासी बाहुल्य जिले हैं। यह स्थिति अत्यंत निराशाजनक हैं। इन जिलों में सिंचाई के लिए अत्यधिक कार्य करने की जरूरत हैं।
प्रदेश के जिन जिलों में 50: से कम सिंचित क्षेत्र हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- बैतूल में 25.3:, भोपाल में 41.5:, रायसेन में 47.2:, राजगढ़ में 41.4:, सीहोर में 46.8:, विदिशा में 40.3:, भिंड में 43.4:, गुना जिले में 39.6:, अशोक नगर में 35.2:, शिवपुरी में 42.7:, हरदा में 48.9:, धार में 43.4:, इंदौर में 43.2:, झाबुआ मे 26.4:, खंडवा में 43.5:, बुरहानपुर में 43.9:, बडवानी में 36.3:, बालाघाट में 46.8:, छिन्दवाड़ा में 29. 0:, जबलपुर में 45.9:, कटनी में 47.1:, नरसिंहपुर में 48.1:, सिवनी में 28.8:, रीवा में 26.9:, सतना में 32.0:, छतरपुर में 41.7:, दमोह में 29.9:, पन्ना में 31.1:, सागर में 34.7:, देवास में 39.2:, मंदसौर में 38.8:, नीमच में 38.3:, रतलाम में 34.2:,शाजापुर में 35.6:, और उज्जैन में 37.2:, भूमि ही सिंचित हैं। इस प्रकार 35 जिले ऐसे हैं जहाँ पर 25 से 50: सिंचित भूमि हैं । इन जिलो की स्थिति भी
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चिंता जनक हैं।
प्रदेश में मात्र 7 जिले ऐसे हैं, जहाँ 50: से अधिक भूमि सिंचित हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं - मुरैना में 55.1:, श्योपुर, में 59.6:, दतिया में 72.9:, ग्वालियर में 65.0:, होेशंगाबाद में 56.3:, खरगौन में 56.1:, और टीकमगढ़ में 57.3:, क्षेत्र सिंचित हैं। इन सब जिलों को देखने के बाद स्पष्ट परिलक्षित होता हैं कि मुरैना , श्योपुर, दतिया और ग्वालियर में चंबल परियोजना के कारण सिंचित क्षेत्र में वृद्धि हुई हैं। इसी प्रकार होशंगाबाद में नर्मदा परियोजना के कारण स्थिति में सुधार हुआ हैं। खरगौन जिले में देजला देवड़ा परियोजना के कारण सिंचाई क्षेत्र में वृद्धि हुई हैं। अर्थात जिन क्षेत्रों में सिंचाई की वृह्द और मध्यम सिंचाई परियोजना लागू की गई, वहाँ 50: से अधिक भूमि सिंचित पाई गई हैं। इस क्षेत्र के किसान निःसंदेह अन्य जिलांे के किसानों से अधिक खुशहाल हैं।
प्रदेश के सिंचित और असिंचित क्षेत्र को देखने से यह स्पष्ट परिलक्षित होता हैं कि प्रदेश में सिंचाई के क्षेत्र में अभी बहुत काम करना बाकी हैं। किसानों को केवल सिंचाई की व्यवस्था उपलब्ध करा दी जाये तो वे खुशहाल हो सकते हैं। समृद्ध किसानों से ही समृद्ध प्रदेश और समृद्ध देश बनेगा। दुर्भाग्य से वर्तमान में लगभग सभी किसान सिंचाई के लिए प्राकृतिक वर्षा पर निर्भर हैं। कम वर्षा हुई हो या अधिक वर्षा हुई हो किसानों की कमर टूट जाती हैं। यदि किसानों को वर्ष भर सिंचाई की सुविधा दी जाये तो एक फसल के नहीं आने पर या नष्ट हो जाने पर वे इसकी भरपाई दूसरी फसल से आसानी से कर सकेंगे। इसलिए किसान को आत्महत्या से बचाने के लिए देश में दीर्घकालीन व अल्पकालीन सिंचाई योजनाओं को अपनाना होगा, तभी किसान खुशहाल हो सकेगा। यदि सभी किसानों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करा दी जाये तो निश्चित ही खेती फायदे का धंधा बन सकता हैं।
मुख्यमंत्री ने हाल ही में अतिवृष्टि से किसानों की नष्ट हुई फसल के लिए राहत राशि के लिए 700 करोड़ रूपये की घोषणा की हैं। यदि इतनी ही राशि हम किसानों को सिंचाई सुविधा के लिए उपलब्ध करा दे तो हालात बदलते देर नही लगेगी। तब खबर कहीं से यह नहीं आएगी कि फलां जिले में किसान ने आत्महत्या कर ली हैं, बल्कि यह खबर आएगी कि इस दिवाली पर किसानों ने इतने नए ट्रेक्टर उठाए, इतनी मोटरसाइकिलें ली और उन्होंने अपनी गृहलक्ष्मी के लिए इतने जेवरात बनाए। राज्य शासन को विशेष कर मुख्यमंत्री को इस दिशा में सार्थक पहल करने की सख्त जरूरत हैं।