सिंहस्थ: पुलिस कर्मियों द्वारा अत्यावश्यक सेवाओं का महत्व समझने की जरूरत
डाॅ. चन्दर सोनाने
सिंहस्थ 2004 के प्रशासकीय प्रतिवेदन में जिला प्रशासन द्वारा जो कमियाँ स्वीकार की गई और जिन्हें सार्वजनिक रूप से उजागर किया गया , उनमे बिन्दू क्रमांक 5 पर एक महत्वपूर्ण कमी को स्वीकार किया गया हैं। वह कमी थी- “पुलिसकर्मियों द्वारा अत्यावश्यक सेवाओं को अनावश्यक रूप से रोका जाना”। प्रशासकीय प्रतिवेदन में इस कमी को स्वीकार किए जाने का मतलब था, गत सिंहस्थ अवधि में पुलिस कर्मियों द्वारा सिंहस्थ मेला क्षेत्र में दी जाने वाली अत्यावश्यक सेवाओं को अनावश्यक रूप से रोका गया था। गत सिंहस्थ की कमी से सीख लेते हुए आगामी सिंहस्थ में इस कमी को दूर करने की अत्यधिक आवश्यकता हैं, क्योंकि गत सिंहस्थ में 2 करोड श्रद्धालु उज्जैन आए थे, जबकि आगामी सिंहस्थ में 5 करोड श्रद्धालुओं के उज्जैन आने की संभावना व्यक्त की जा रही हैं।
प्रशासकीय प्रतिवेदन में उक्त कमी को स्वीकारने का मतलब था कि आगामी सिंहस्थ में इस कमी को दूर किया जा सकें। इसके लिए जरूरी हैं कि जिन पुलिस कर्मियों की ड्यूटी मेला क्षेत्र में लगाई जाना प्रस्तावित हैं, उन्हें प्रशिक्षण दिया जाकर यह स्पश्ट किया जाए कि वें अत्यावश्यक सेवाएँ जैसे दूध, सफाई, जल टैंकर, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, विद्युत मंडल, स्वास्थ्य, प्रेस आदि को अनावश्यक रूप से नही रोका जाए। गत सिंहस्थ में यह कमी पायी गई थी कि बाहर से सिंहस्थ में पदस्थ पुलिस बल द्वारा अनेक स्थानों पर अपने विवेक का परिचय नही देते हुए प्रथम शाही स्नान के अवसर पर एक दिन पूर्व तथा एक दिन पष्चात तक कम भीड़ वाले क्षेत्रांे और पेषवाई वाले रास्तों के अतिरिक्त अन्य रास्तों को भी अनावष्यक रूप से रोका गया था, जिससे व्यवस्थाएं प्रभावित हुई तथा उचित व्यवस्था करने में बाधा आई। प्रषासकीय प्रतिवेदन में यह सुझाव भी दिया गया हैं कि “भविश्य में पुलिस बल विषेशतः बाहर से पदस्थ पुलिस दल को प्रारम्भ से ही अत्यावष्यक सेवाओं को अनावष्यक रूप से नही रोकने का प्रषिक्षण एवं निर्देष ष्सख्ती से दिया जाना आवष्यक हैं।“
गत सिंहस्थ में मेलाधिकारी श्री रजनी कांत गुप्ता को भी सिंहस्थ में जाने से रोक दिया था। इस मसले को लेकर उस समय बहुत बवाल मचा था, किंतु संबंधित पुलिस कर्मी के विरूद्ध कोई कार्यवाही पुलिस द्वारा नही की गई थी। इस कारण प्रषासनिक अधिकारियों में नाराजगी और असंतोश भी देखा गया था। यही नही अनेक झोनल अधिकारियों व सेक्टर मजिस्ट्रेट की भी अनेक बार पुलिसकर्मियों से झड़प हुई थी । सिंहस्थ मेला नगरीय प्रषासन एवं विकास विभाग म.प्र. के अन्तर्गत आयोजित किया जाता हैं। किंतु इसी विभाग के एक प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी को भी मेला क्षेत्र में जाने से रोका गया था। एक समय ऐसा भी आया जब लगा कि प्रषासनिक अधिकारी व पुलिस दोनो दो खेमों में बंट से गए हैं। बमुष्किल तत्कालीन संभागायुक्त श्री सी.पी. अरोरा और पुलिस महानिरीक्षक श्री सरबजीत सिंह ने सामंजस्य बैठाया था।
गत सिंहस्थ मे प्रेस को पुलिस द्वारा सिंहस्थ क्षेत्र में आने जाने के लिए प्रेस पास व वाहन वास दिए गए थे। किंतु अनेक बार यह षिकायत मिली कि प्रेस को भी मेला क्षेत्र में जाने व आने से और वाहन ले जाने से रोका गया। उस समय प्रेस में इस मुद्दे पर काफी नाराजगी भी दिखाई थी। एक बार एक स्थानीय दैनिक समाचार पत्र के सम्पादक को जाने से रोके जाने पर उन्होंने जब प्रेस पास पुलिसकर्मी को दिखाया तो उससे प्रेस पास लेकर उसे फाड़ दिया और निर्लज्जतापूर्वक बोला था कि बताओ अब आपके पास कहां हैं पास ? इस घ्टना की षिकायत वरीश्ठ अधिकारियों से करने पर भी संबंधित पुलिसकर्मी के विरूद्ध कोई कार्यवाही नही होने से प्रेस में बहुत असंतोश व्याप्त हो गया था।
हाल ही में अपर कलेक्टर श्री नरेन्द्र सूर्यवंषी और एक आरक्षक में नागपंचमी के समय महाकालेष्वर मंदिर में जाने बात पर विवाद हो गया। था। इसके लिए जांच समिति भी कलेक्टर श्री कवीन्द्र कियावत द्वारा बिठाई गई थी इसकी अभी तक रिपोर्ट नहीं आई हैं। इस प्रकरण को लेकर भी प्रषासनीक अधिकारियों में अत्यंत असंतोश व्याप्त हैं। इस प्रकरण से यह सिद्ध होता हैं कि अभी प्रषासकीय व पुुलिस अधिकारीयों में मत भेद हैं, जिसे पाटना अत्यन्त आवष्यक हैं। यदि इस प्रकरण का षीघ्र संतोशजनक निराकरण नही हुआ तो भविश्य में सिंहस्थ के समय विस्फोटक स्थिति हो सकती हैं।
गत सिंहस्थ के प्रषासकीय प्रतिवेदन से विषेश्कर पुलिस अधीक्षक श्री एम.एस. वर्मा को सबक लेने की जरूरत हैं। उन्हंे अभी से सिंहस्थ अवधि में पदस्थ होने वाले पुलिसकर्मियों को इस संबंध में प्रषिक्षण और सख्त निर्देष देने की जरूरत हैं। संभागायुक्त डाॅ. रवीन्द्र पस्तोर ,आईजी व्ही मधुकुमार को भी इस दिषा में अभी से संज्ञान लेकर कार्य योजना बनाकर उसका सफल क्रियान्वयन किया जाना जरूरी हैं।