सिंहस्थः मोक्षदायिनी शिप्रा को मोक्ष की दरकार
डाॅ. चन्दर सोनाने
दिनांक 22 अप्रैल से 21 मई 2016 तक उज्जैन में पतीत पावन शिप्रा नदी के तट पर आस्था और विश्वास का महापर्व सिंहस्थ का आयोजन होने जा रहा हैं। मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में डुबकी लगाने के लिए करीब 5 करोड़ श्रद्धालुओं के उज्जैन आने की संभावना हैं। किन्तु मोक्षदायिनी शिप्रा नदी क्या शुद्ध हैं ? आज भी शिप्रा में 11 नालों का गंदा पानी चैबीस घंटे अनवरत मिल रहा हैं। इसे रोकने वाला वर्तमान में कोई दिख नही रहा। जिला प्रशासन का इस और ध्यान ही नही हैं। आज मोक्षदायिनी शिप्रा नदी को खुद मोक्ष की दरकार हैं।
हाल ही में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्री नरेंद्र गिरी जी महाराज उज्जैन आए थे। उन्होंने शिप्रा नदी में मिल रहे नालों के गंदे पानी को देखते हुए अपनी पीड़ा सार्वजनिक रूप से उजागर की हैं। उन्होंने चिंता व्यक्त की हैं कि यही हाल रहा तो साधु संत सिंहस्थ में शिप्रा में स्नान नहीं करेंगे। बाद में साधु संतो ने भी विभिन्न स्थानों पर जहाँ शिप्रा नदी में गंदे नाले मिल रहे हैं, देखे तथा जिला प्रशासन के अधिकारियों को भी वास्तविकता से रूबरू कराया। उज्जैन ही नहीं साधु संतों ने देवास जाकर वहाँ भी शिप्रा नदी में कारखानों और नालों का गंदा पानी मिलता हुआ देखा और दिखाया।
इससे प्रशासन में खलबली तो मच गई हैं, किंतु देखना यह हैं कि उन पर कोई असर होता हैं या नही। सिंहस्थ के आयोजन को मात्र छः माह बचे हैं। इसी अवधि के पूर्व शिप्रा नदी में मिल रहे नालो के गंदे पानी को रोकना जरूरी हैं। कमिश्नर डाॅ. रवीन्द्र पस्तोर और कलेक्टर श्री कवीन्द्र कियावत को इस और विशेष ध्यान देने की जरूरत हैं।
केंद्र शासन की दो महत्वपूर्ण योजनाओं राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना और जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण योजना से शिप्रा नदी के शुद्धिकरण के पूर्व में भी प्रयास हुए हैं, किन्तु वे अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं। राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के दो चरणों में कुल 30 करोड 67 लाख रूपये खर्च कर दिए गए हैं। इस योजना के प्रथम चरण में 29 करोड़ 42 लाख रूपये वर्ष 2003 में मंजूर कर सम्बन्धित विभाग को राशि भी दे दी गई थी। देश की बड़ी नदियों के संरक्षण के लिए केन्द्र सरकार की इस योजना के तहत गंगा, गोदावरी, यमुना व चंबल के साथ शिप्रा नदी को भी शुद्धिकरण हेतु सन् 2001 में शामिल किया था। शिप्रा के शुद्धिकरण के लिए उज्जैन शहर के 11 नालों के गंदे पानी को शिप्रा में मिलने से रोकने के लिए 9 पंपिग स्टेशन बनाए गए। इन पंपिंग स्टेशनों के माध्यम से शहर के नालों का गंदा पानी लिफ्ट कर ग्राम सदावल में भेजने की योजना बनाई गई थी। वहाँ पानी के शुद्धिकरण के लिए ट्रीटमेंट प्लांट भी बनवाया गया था। उस समय इस योजना का जोर शोर से प्रचार प्रसार भी किया गया था कि अब शिप्रा नदी में कभी भी नालों का गंदा पानी नहीं मिल सकेगा और शिप्रा हमेशा शुद्ध रहेगी । किन्तु, इस योजना के बनने के बाद मेंटेनेंस के लिए राशि उपलब्ध नहीं होने के कारण इस योजना ने दम तोड़ दिया।
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान के विशेष प्रयास पर राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना में योजना के दूसरे चरण के लिए सन् 2008 में एक करोड ़पच्चीस लाख रूपये योजना के पांच साल तक के मेंटेनेंस के लिए स्वीकृत किए गए। किंतु कुछ साल चलने के बाद फिर से योजना ठप्प पड़ गई। और उज्जैन शहर की करीब एक सौ काॅलोनियों का गंदा पानी 11 बड़े नालों के माध्यम से फिर से शिप्रा में मिलने लगा।
इसी प्रकार जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण योजना में सन् 2012 में शिप्रा शुद्धिकरण के नाम से 4 करोड़ 86 लाख रूपये मंजूर किए गए। इस राशि से रूद्र सागर से दूर्गादास की छतरी तक नालों का पानी शिप्रा नदी में मिलने से रोकने के लिए 1180 मिटर लंबी पाइप लाइन डाली गई। इसमें चार चरणों में से पहले चरण में हरसिद्धि से रामघाट, दूसरे चरण में रामघाट से छोटी रपट, तीसरे चरण में छोटी रपट से चक्रतीर्थ, और चैथे चरण में चक्रतीर्थ से दूर्गादास की छतरी तक पाइप लाइन डाली गई। बेगम बाग और रूद्र सागर की और से आने वाले नालों के पानी को विशेष रूप से शिप्रा में मिलने से रोकने के लिए यह योजना लागू की गई थी। फरवरी 2014 में यह योजना पूर्ण हो गई। कुछ समय योजना ठीक से चलने के बाद देखभाल के अभाव में तथा नियमित रूप से मेंटेनेंस नही होने के कारण यह
भी असफल सिद्ध हो गई। नोडल एंजेसी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने गंभीरतापूर्वक इस और ध्यान ही नहीं दिया। परिणाम स्वरूप इस योजना में कई जगह से पाइप लाइन चैक होने से नालांे का गंदा पानी अभी भी शिप्रा में मिलते हुए आसानी से देखा जा सकता हैं।
इस प्रकार केन्द्र शासन की दो महत्वपूर्ण योजनाओं में कुल 35 करोड़ 13 लाख रूपये खर्च होने के बावजूद नतीजा सिफर रहा। नोडल एजेंसियों प्रदूषक नियंत्रण मंडल, जल संसाधन विभाग और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों के विरूद्ध इस योजना के क्रियान्वयन में गंभीर लापरवाही पर सख्त कार्यवाही किये जाने की जरूरत हैं।
अब जरूरत इस बात की हैं कि शिप्रा नदी को पतीत पावन मानकर मोक्ष की कामना के लिए सिंहस्थ में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की भावनाओं और विश्वास को सम्मान देकर फिर से इस दिशा में गंभीरता पूर्वक कार्य किया जाए। अभी भी समय हैं। राज्य शासन विशेषकर मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान को इस और विषेश ध्यान देने की जरूरत हैं, तभी मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में नालों के गंदे पानी कोे मिलने से रोका जा सकेगा।
दिनांक 22 अप्रैल से 21 मई 2016 तक उज्जैन में पतीत पावन शिप्रा नदी के तट पर आस्था और विश्वास का महापर्व सिंहस्थ का आयोजन होने जा रहा हैं। मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में डुबकी लगाने के लिए करीब 5 करोड़ श्रद्धालुओं के उज्जैन आने की संभावना हैं। किन्तु मोक्षदायिनी शिप्रा नदी क्या शुद्ध हैं ? आज भी शिप्रा में 11 नालों का गंदा पानी चैबीस घंटे अनवरत मिल रहा हैं। इसे रोकने वाला वर्तमान में कोई दिख नही रहा। जिला प्रशासन का इस और ध्यान ही नही हैं। आज मोक्षदायिनी शिप्रा नदी को खुद मोक्ष की दरकार हैं।
हाल ही में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्री नरेंद्र गिरी जी महाराज उज्जैन आए थे। उन्होंने शिप्रा नदी में मिल रहे नालों के गंदे पानी को देखते हुए अपनी पीड़ा सार्वजनिक रूप से उजागर की हैं। उन्होंने चिंता व्यक्त की हैं कि यही हाल रहा तो साधु संत सिंहस्थ में शिप्रा में स्नान नहीं करेंगे। बाद में साधु संतो ने भी विभिन्न स्थानों पर जहाँ शिप्रा नदी में गंदे नाले मिल रहे हैं, देखे तथा जिला प्रशासन के अधिकारियों को भी वास्तविकता से रूबरू कराया। उज्जैन ही नहीं साधु संतों ने देवास जाकर वहाँ भी शिप्रा नदी में कारखानों और नालों का गंदा पानी मिलता हुआ देखा और दिखाया।
इससे प्रशासन में खलबली तो मच गई हैं, किंतु देखना यह हैं कि उन पर कोई असर होता हैं या नही। सिंहस्थ के आयोजन को मात्र छः माह बचे हैं। इसी अवधि के पूर्व शिप्रा नदी में मिल रहे नालो के गंदे पानी को रोकना जरूरी हैं। कमिश्नर डाॅ. रवीन्द्र पस्तोर और कलेक्टर श्री कवीन्द्र कियावत को इस और विशेष ध्यान देने की जरूरत हैं।
केंद्र शासन की दो महत्वपूर्ण योजनाओं राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना और जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण योजना से शिप्रा नदी के शुद्धिकरण के पूर्व में भी प्रयास हुए हैं, किन्तु वे अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं। राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के दो चरणों में कुल 30 करोड 67 लाख रूपये खर्च कर दिए गए हैं। इस योजना के प्रथम चरण में 29 करोड़ 42 लाख रूपये वर्ष 2003 में मंजूर कर सम्बन्धित विभाग को राशि भी दे दी गई थी। देश की बड़ी नदियों के संरक्षण के लिए केन्द्र सरकार की इस योजना के तहत गंगा, गोदावरी, यमुना व चंबल के साथ शिप्रा नदी को भी शुद्धिकरण हेतु सन् 2001 में शामिल किया था। शिप्रा के शुद्धिकरण के लिए उज्जैन शहर के 11 नालों के गंदे पानी को शिप्रा में मिलने से रोकने के लिए 9 पंपिग स्टेशन बनाए गए। इन पंपिंग स्टेशनों के माध्यम से शहर के नालों का गंदा पानी लिफ्ट कर ग्राम सदावल में भेजने की योजना बनाई गई थी। वहाँ पानी के शुद्धिकरण के लिए ट्रीटमेंट प्लांट भी बनवाया गया था। उस समय इस योजना का जोर शोर से प्रचार प्रसार भी किया गया था कि अब शिप्रा नदी में कभी भी नालों का गंदा पानी नहीं मिल सकेगा और शिप्रा हमेशा शुद्ध रहेगी । किन्तु, इस योजना के बनने के बाद मेंटेनेंस के लिए राशि उपलब्ध नहीं होने के कारण इस योजना ने दम तोड़ दिया।
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान के विशेष प्रयास पर राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना में योजना के दूसरे चरण के लिए सन् 2008 में एक करोड ़पच्चीस लाख रूपये योजना के पांच साल तक के मेंटेनेंस के लिए स्वीकृत किए गए। किंतु कुछ साल चलने के बाद फिर से योजना ठप्प पड़ गई। और उज्जैन शहर की करीब एक सौ काॅलोनियों का गंदा पानी 11 बड़े नालों के माध्यम से फिर से शिप्रा में मिलने लगा।
इसी प्रकार जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण योजना में सन् 2012 में शिप्रा शुद्धिकरण के नाम से 4 करोड़ 86 लाख रूपये मंजूर किए गए। इस राशि से रूद्र सागर से दूर्गादास की छतरी तक नालों का पानी शिप्रा नदी में मिलने से रोकने के लिए 1180 मिटर लंबी पाइप लाइन डाली गई। इसमें चार चरणों में से पहले चरण में हरसिद्धि से रामघाट, दूसरे चरण में रामघाट से छोटी रपट, तीसरे चरण में छोटी रपट से चक्रतीर्थ, और चैथे चरण में चक्रतीर्थ से दूर्गादास की छतरी तक पाइप लाइन डाली गई। बेगम बाग और रूद्र सागर की और से आने वाले नालों के पानी को विशेष रूप से शिप्रा में मिलने से रोकने के लिए यह योजना लागू की गई थी। फरवरी 2014 में यह योजना पूर्ण हो गई। कुछ समय योजना ठीक से चलने के बाद देखभाल के अभाव में तथा नियमित रूप से मेंटेनेंस नही होने के कारण यह
भी असफल सिद्ध हो गई। नोडल एंजेसी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने गंभीरतापूर्वक इस और ध्यान ही नहीं दिया। परिणाम स्वरूप इस योजना में कई जगह से पाइप लाइन चैक होने से नालांे का गंदा पानी अभी भी शिप्रा में मिलते हुए आसानी से देखा जा सकता हैं।
इस प्रकार केन्द्र शासन की दो महत्वपूर्ण योजनाओं में कुल 35 करोड़ 13 लाख रूपये खर्च होने के बावजूद नतीजा सिफर रहा। नोडल एजेंसियों प्रदूषक नियंत्रण मंडल, जल संसाधन विभाग और लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों के विरूद्ध इस योजना के क्रियान्वयन में गंभीर लापरवाही पर सख्त कार्यवाही किये जाने की जरूरत हैं।
अब जरूरत इस बात की हैं कि शिप्रा नदी को पतीत पावन मानकर मोक्ष की कामना के लिए सिंहस्थ में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की भावनाओं और विश्वास को सम्मान देकर फिर से इस दिशा में गंभीरता पूर्वक कार्य किया जाए। अभी भी समय हैं। राज्य शासन विशेषकर मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान को इस और विषेश ध्यान देने की जरूरत हैं, तभी मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में नालों के गंदे पानी कोे मिलने से रोका जा सकेगा।