उज्जैन में प्रसिद्ध हैं वेधशाला
इस वेधशाला का निर्माण सवाई राजा जयसिंह द्वारा सन् 1725 ई. से 1730 ई. के मध्य किया गया था। राजा जयसिंह ने इसी प्रकार की चार अन्य वेधशालाओं का निर्माण दिल्ली, जयपुर, मथुरा तथा वाराणसी में भी करवाया था।इस वेधशाला में सम्राट्- यन्त्र, नाडीवलय यन्त्र, दिगंश- यन्त्र तथा याम्योत्तर भित्ति यऩ्त्र प्रमुख उपकरण हैं। इन यंन्त्रों से ग्रह नक्षत्रों के वृत्त एवं संक्रमण का अध्ययन किया जाता रहा हैं। इसी कारण लोग इसे यन्त्र महल भी कहते हैं।
इस वेधशाला का जीर्णोद्धार सन् 1923 ई. में भू. पू. ग्वालियर राज्य के तत्कालिक महाराजा माधवराव सिंधिया द्वारा करवाया गया था। शिक्षा विभाग के अन्तर्गत इस वेधशाला में ग्रह नक्षत्रों का अध्ययन आज भी किया जाता हैं। प्रतिवर्ष “एफेमेरीज“ अर्थात् ग्रहों की दैनिक गति एवम् “स्थ्तिि दर्शक“ पत्रिका प्रकाशित की जाती हैं। इस प्रकार जयसिंह निर्मित वेधशालाओं में यही एकमात्र वेधशाला हैं, जहाँ खगोलीय अध्ययन के लिए आज भी इन यन्त्रों का प्रयोग किया जाता हैं।