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सिंहस्थ: पौराणिक सप्त सागरों का सीमांकन और सुरक्षा जरूरी


डाॅ चन्दर सोनाने
               पुराणों में उज्जैन में स्थित सप्त सागरों  का स्पष्ट रूप से उल्लेख मिलता हैं। उज्जैन के सप्त सागरों में रूद्र सागर, पुष्कर सागर, क्षीर सागर, गोवर्धन सागर, रत्न सागर, विष्णु सागर, और पुरूषोत्तम सागर का अपना विशिष्ट महत्व हैं। वर्तमान में इन सभी सागरों पर चारों और से अतिक्रमण हो रहे हैं। यदि इन बेतहाशा बढ़ रहे अतिक्रमणों पर तुरंत रोक नहीं लगाई गई तो कुछ सालों बाद सप्त सागरों का नाम केवल कागजो में ही सिमट कर रह जाएगा। इसलिए प्रत्येक सागर का सीमांकन कर सुरक्षा हेतु वहाँ पक्की बाउंड्री वाॅल बनाई जाना अति आवश्यक हैं।
              नगर निगम के अध्यक्ष श्री सोनू गेहलोत ने पिछले वर्ष पूर्ण गंभीरता से सप्त सागरों के गहरीकरण और साफ सफाई का न केवल बीड़ा उठाया, बल्कि शासन और प्रशासन का भी सहयोग लेकर इसे जन भागीदारी से जोड़ा। विशेष रूप से रूद्र सागर और विष्णु सागर का जीर्णोद्धार श्री सोनू गेहलोत ने कर दिखाया। उन्हें साधुवाद। अब जरूरत इस बात कि हैं कि प्रत्येक सप्त सागर का पुराणांे में वर्णित आकार एवं क्षेत्रफल के मान से तथा पुराने उपलब्ध अभिलेखों को देखकर उनका सीमांकन करना अत्यन्त आवश्यक हैं। सीमांकन के बाद प्रत्येक सागर का सीमांकन के अनुसार ही पक्की बाउंड्री वाॅल बनाई जाना आवश्यक हैं , ताकि किसी के भी द्वारा और अतिक्रमण नहीं किया जा सकें।
              नगर निगम के अध्यक्ष श्री सोनू गेहलोत ने पिछले वर्ष सप्त सागरों के जीर्णोद्धार का जो चमत्कार दिखाया है, उसी के कारण संभवतः मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने नगर निगम के अध्यक्ष का ताज उनके सिर पर दूसरी बार पहनाया। अतः अब श्री गेहलोत को सप्त सागरों के सीमांकन और बाउंड्री वाॅल का कार्य प्राथमिकता के साथ करने की जरूरत हैं। श्री गेहलोत यह कार्य कर सकते हैं। यदि उन्होंने पूर्व की तरह शासन और जिला प्रशासन और जनता की भागीदारी प्राप्त कर उक्त कार्य कर दिखाया तो उज्जैन उन्हें हमेशा याद रखेगा।
              मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की भी उज्जैन के सप्त सागरों के प्रति अगाध श्रद्धा हैं। इस कारण उन्होंने रूद्र सागर के गहरीकरण के कार्य में शामिल होकर स्वयं श्रमदान भी किया था। यदि उनके समक्ष सप्त सागरों के जीर्णोद्धार की कार्य योजना इसी सिंहस्थ में प्रस्तुत होती हैं तो वे निःसंदेह उसको स्वीकृित प्रदान करेंगे। संभागायुक्त डाॅ. रवीन्द्र पस्तोर और कलेक्टर श्री कवीन्द्र कियावत की भी महती जिम्मेदारी हैं कि वे समस्त सप्त सागरों की सुरक्षा के लिए सार्थक पहल करें।
         सप्त सागरों का संक्षिप्त विवरण तथा महत्व इस प्रकार हैं-
           रूद्र सागर - यह हरसिद्धि व महाकाल मंदिर के मध्य स्थित है। यहाँ स्नान के बाद नमक, नन्दीगण की प्रतिमा व रूद्राक्ष दान करने की प्रथा हैं। पूर्व में रूद्र सागर में प्रचुर मात्रा में कमल खिला करते थे। इसी वजह से उज्जैन का नाम कुमुदवती भी था। वर्तमान में यह तालाब वर्षा में ही जल से भरा रहता हैं, परन्तु गर्मी में जल बहुत कम हो जाता है या सूख जाता हैं।
          पुष्कर सागर - यह सागर नलिया बखल में स्थित हैं। यहाँ स्नान के बाद पीले वस्त्र, चने की दाल तथा सोना दान करने से गुरू का दोष दूर होता है। इसे रंग बावड़ी भी कहते हैं।
          क्षीर सागर - यह प्राचीन सरोवर नई सड़क के पास हैं। मानस भवन इसी के  तट पर बना हुआ हैं। इस सागर में स्नान के बाद पितृदोष के निवारण हेतु खीर या पात्र दान किया जाता हैं।
         गोवर्धन सागर -यह सरोवर बुधवारिया से नगरकोट की रानी तक फैला हुआ है। यहां पर स्नान के बाद काँसे के पात्र में मक्खन, मिश्री, गुड़ से भरा पात्र, लाल वस्त्र तथा लाल वस्तु दान करने से सूर्य जनित दोष एवं मंगलदोष (पीड़ा) नष्ट होते हैं।
         रत्नाकर सागर - वर्तमान में रत्नाकर उडांसा तालाब के नाम से जाना जाता हैं। इसकी भव्यता देखने लायक हैं। पूरे वर्ष इसमें जल भरा रहता हैं। इसमें स्नान के बाद श्रृंगार सामग्री, स्त्रियों के पहनने के वस्त्र तथा पंचरत्न के दान से शुक्र व केतु पीड़ा के दोष दूर होते हैं।
         विष्णु सागर - अंकपात के निकट स्थित इस सरोवर में स्नान के बाद विष्णु जी की प्रतिमा, आसन, माला, गरूड़ घंटी, पंचपात्र, तरभाना, आचमनी का दान देने से बुध-गुरू ग्रह संबंधी पीड़ा (दोष ) नष्ट होते हैं।
         पुरूषोत्तम सागर - अंकपात के पास स्थित यह सागर सोलह सागर के नाम से भी पहचाना जाता हैं । यहां पर स्नान के बाद मालपुआ, घी, मिठाई दान करने से शनि, राहु जनित दोष (पीड़ा) दूर होते हैं।

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