जारी धार्मिक आबादी आंकड़ें: अर्द्ध सत्य प्रस्तुतीकरण
डाॅ. चन्दर सोनाने
केन्द्र सरकार ने जनगणना 2011 के धार्मिक आबादी आंकडे हाल ही में जारी किए हैं। इसमें जानबूझ कर आंकडों के साथ छेड़छाड़ की गई। अर्द्ध सत्य का प्रस्तुतीकरण किया गया हैं। जारी आंकडों में केवल यह प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया हैं कि देश की आबादी में मुस्लिमों की हिस्सेदारी बड़ी हैं और हिन्दुओं की घटी हैं।
हम सिलसिलेवार आंकडे को देखे तो यह स्पष्ट होगा कि हिन्दुओं की तुलना में मुस्लिम आबादी की ग्रोथ रेट कम रही हैं। पिछले तीन दशक के आंकडे को हम देखे तो स्पष्ट होता हैं कि पिछले दशक में ही आबादी बढ़ने की दर मुस्लिम की 4.7 प्रतिशत कम हुई हैं, जबकि हिन्दू की 3.2 कम हुई हैं। तीन दशक के आंकड़े निम्नानुसार हैं-
दशक मुस्लिम हिंदू
1981 से 1991 32.09 प्रतिशत 22.8 प्रतिशत
1991 से 2001 29.3 प्रतिशत 20.0 प्रतिशत
2001 से 2011 24.6 प्रतिशत 16.8 प्रतिशत
उक्त आंकड़ों को देखने से मुस्लिमों की प्रगतिशीलता हिन्दुओं की तुलना में अधिक और स्पष्ट परिलक्षित हो रही हैं। सन् 1981 से 1991 के बीच मुस्लिमों की आबादी की ग्रोथ रेट 32. 9 प्रतिशत रही। अगले दशक सन् 1991 से 2001 के बीच यह ग्रोथ रेट 29.3 प्रतिशत कम हो गई। यही नही पिछले दशक 2001 से 2011 के बीच यह ग्रोथ रेट और कम होकर 24.6 प्रतिशत हो गई। इसे इस तरह देखा जाये, वर्ष 1981 से 1991 की तुलना में वर्ष 1991 से 2001 में मुस्लिमों की ग्रोथ रेट 3.6 प्रतिशत कम हुई थी। वहीं , वर्ष 1991 से 2001 की तुलना में वर्ष 2001 से 2011 में मुस्लिमों ग्रोथ रेट एकदम गिरकर 4.7 प्रतिशत कम हो गई।
वहीं, हिन्दुओं की ग्रोथ रेट सन् 1981 से 1991 के बीच 22.8 प्रतिशत थी। यह एक दशक में गिरकर 20.0 प्रतिशत हो गई अर्थात 2.8 प्रतिशत ग्रोथ रेट एकदशक में कम हो गई। जबकि इसी दशक में मुस्लिमों की ग्रोथ रेट 3.6 प्रतिशत कम थी। पिछले दशक सन् 2001 से 2011 के बीच हिन्दुओं की आबादी की ग्रोथ रेट 16.8
प्रतिशत थी। यह ग्रोथ रेट पिछले दशक से 3.2 प्रतिशत कम रही। जबकि पिछले दशक में मुस्लिमों की आबादी की ग्रोथ रेट 4.7 प्रतिशत कम रही । वहीं हिन्दुओं की आबादी की ग्रोथ रेट 3.2 प्रतिशत कम रही। यह भी एक सच्चाई हैं कि पिछले तीन दशकों में हिन्दुओं की तुलना में मुस्लिम आबादी की ग्रोथ रेट कम रही , जिसे नजर अंदाज नही किया जा सकता हैं।
भाजपा सरकार ने जनगणना के आंकडों में छेड़छाड कर जों आंकडे प्रस्तुत किए ,ऐसा ही गलत प्रस्तुतीकरण पिछली कांग्रेस सरकार ने भी अन्य सन्दर्भों में किया था। भाजपा और कांग्रेस सरकार में इस मामले में कोई फर्क नही हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से यह अपेक्षा नही थी । धार्मिक आबादी के आंकडों के प्रस्तुतीकरण में राजनीतिक विश्लेषणों का मानना हैं कि बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव को दृष्टि में रखते हुए आंकडों का गलत प्रस्तुतीकरण किया गया।
जनगणना 2011 के धार्मिक आबादी आंकडे सरकार ने जारी किए हैं। उसकी प्रतिक्रिया शिवसेना ने भाजपा की नीति के अनुरूप ही दी है। शिवसेना ने हिन्दुओं की आबादी को बढ़ाने के उद्देश्य से परिवार नियोजन को तिलांजलि देकर आबादी बढ़ाने का आव्हान हाल ही में किया हैं। शिवसेना ने यह घोषणा की हैं कि 2011 के बाद जिन हिन्दू परिवारों में पाँच या अधिक बच्चें होंगे, उन्हें 2 लाख रूपये की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। शिवसेना की यह घोषणा आश्चर्यजनक और हास्यास्पद हैं। इस पर गहन चिंतन की आवश्यकता हैं।
आज के युवा कट्टरतावाद में विश्वास नही रखते हैं। भले ही यह कट्टरता हिन्दुओं की हो या मुसलमानों की। बाबरी मस्जीद को ढहाने के बाद वहाँ पर मंदिर बनाया जाये या मस्जिद ? इस पर युवाओं का चिंतन स्पष्ट रूप से हमारे सामने आ चुका हैं। उनका स्पष्ट बहुमत था कि वहाँ न तो मंदिर बनाया जाये और न ही मस्जिद, वहाँ स्कूल या अस्पताल बनाया जाना चाहिए। युवाओं की यह सोच हमें आश्वस्त करती हैं।
केन्द्र सरकार ने जनगणना 2011 के धार्मिक आबादी आंकडे हाल ही में जारी किए हैं। इसमें जानबूझ कर आंकडों के साथ छेड़छाड़ की गई। अर्द्ध सत्य का प्रस्तुतीकरण किया गया हैं। जारी आंकडों में केवल यह प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया हैं कि देश की आबादी में मुस्लिमों की हिस्सेदारी बड़ी हैं और हिन्दुओं की घटी हैं।
हम सिलसिलेवार आंकडे को देखे तो यह स्पष्ट होगा कि हिन्दुओं की तुलना में मुस्लिम आबादी की ग्रोथ रेट कम रही हैं। पिछले तीन दशक के आंकडे को हम देखे तो स्पष्ट होता हैं कि पिछले दशक में ही आबादी बढ़ने की दर मुस्लिम की 4.7 प्रतिशत कम हुई हैं, जबकि हिन्दू की 3.2 कम हुई हैं। तीन दशक के आंकड़े निम्नानुसार हैं-
दशक मुस्लिम हिंदू
1981 से 1991 32.09 प्रतिशत 22.8 प्रतिशत
1991 से 2001 29.3 प्रतिशत 20.0 प्रतिशत
2001 से 2011 24.6 प्रतिशत 16.8 प्रतिशत
उक्त आंकड़ों को देखने से मुस्लिमों की प्रगतिशीलता हिन्दुओं की तुलना में अधिक और स्पष्ट परिलक्षित हो रही हैं। सन् 1981 से 1991 के बीच मुस्लिमों की आबादी की ग्रोथ रेट 32. 9 प्रतिशत रही। अगले दशक सन् 1991 से 2001 के बीच यह ग्रोथ रेट 29.3 प्रतिशत कम हो गई। यही नही पिछले दशक 2001 से 2011 के बीच यह ग्रोथ रेट और कम होकर 24.6 प्रतिशत हो गई। इसे इस तरह देखा जाये, वर्ष 1981 से 1991 की तुलना में वर्ष 1991 से 2001 में मुस्लिमों की ग्रोथ रेट 3.6 प्रतिशत कम हुई थी। वहीं , वर्ष 1991 से 2001 की तुलना में वर्ष 2001 से 2011 में मुस्लिमों ग्रोथ रेट एकदम गिरकर 4.7 प्रतिशत कम हो गई।
वहीं, हिन्दुओं की ग्रोथ रेट सन् 1981 से 1991 के बीच 22.8 प्रतिशत थी। यह एक दशक में गिरकर 20.0 प्रतिशत हो गई अर्थात 2.8 प्रतिशत ग्रोथ रेट एकदशक में कम हो गई। जबकि इसी दशक में मुस्लिमों की ग्रोथ रेट 3.6 प्रतिशत कम थी। पिछले दशक सन् 2001 से 2011 के बीच हिन्दुओं की आबादी की ग्रोथ रेट 16.8
प्रतिशत थी। यह ग्रोथ रेट पिछले दशक से 3.2 प्रतिशत कम रही। जबकि पिछले दशक में मुस्लिमों की आबादी की ग्रोथ रेट 4.7 प्रतिशत कम रही । वहीं हिन्दुओं की आबादी की ग्रोथ रेट 3.2 प्रतिशत कम रही। यह भी एक सच्चाई हैं कि पिछले तीन दशकों में हिन्दुओं की तुलना में मुस्लिम आबादी की ग्रोथ रेट कम रही , जिसे नजर अंदाज नही किया जा सकता हैं।
भाजपा सरकार ने जनगणना के आंकडों में छेड़छाड कर जों आंकडे प्रस्तुत किए ,ऐसा ही गलत प्रस्तुतीकरण पिछली कांग्रेस सरकार ने भी अन्य सन्दर्भों में किया था। भाजपा और कांग्रेस सरकार में इस मामले में कोई फर्क नही हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से यह अपेक्षा नही थी । धार्मिक आबादी के आंकडों के प्रस्तुतीकरण में राजनीतिक विश्लेषणों का मानना हैं कि बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव को दृष्टि में रखते हुए आंकडों का गलत प्रस्तुतीकरण किया गया।
जनगणना 2011 के धार्मिक आबादी आंकडे सरकार ने जारी किए हैं। उसकी प्रतिक्रिया शिवसेना ने भाजपा की नीति के अनुरूप ही दी है। शिवसेना ने हिन्दुओं की आबादी को बढ़ाने के उद्देश्य से परिवार नियोजन को तिलांजलि देकर आबादी बढ़ाने का आव्हान हाल ही में किया हैं। शिवसेना ने यह घोषणा की हैं कि 2011 के बाद जिन हिन्दू परिवारों में पाँच या अधिक बच्चें होंगे, उन्हें 2 लाख रूपये की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। शिवसेना की यह घोषणा आश्चर्यजनक और हास्यास्पद हैं। इस पर गहन चिंतन की आवश्यकता हैं।
आज के युवा कट्टरतावाद में विश्वास नही रखते हैं। भले ही यह कट्टरता हिन्दुओं की हो या मुसलमानों की। बाबरी मस्जीद को ढहाने के बाद वहाँ पर मंदिर बनाया जाये या मस्जिद ? इस पर युवाओं का चिंतन स्पष्ट रूप से हमारे सामने आ चुका हैं। उनका स्पष्ट बहुमत था कि वहाँ न तो मंदिर बनाया जाये और न ही मस्जिद, वहाँ स्कूल या अस्पताल बनाया जाना चाहिए। युवाओं की यह सोच हमें आश्वस्त करती हैं।