धर्म के मामले में न्यायालय का हस्तक्षेप उचित नही
डाॅ. चन्दर सोनाने
आखिरकार वही हुआ, जिसकी संभावना व्यक्त की जा रही थी । राजस्थान हाईकोर्ट के 10 अगस्त के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई। राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने फैसले में जैन समाज के प्राचीनकाल से चले आ रहे संथारा प्रथा को अपराध माना था। किसी भी न्यायालय को धर्म के संबंध में फैसला देते समय अत्यंत ही सोच विचार करने की जरूरत होनी चाहिए । और यथा संभव प्रयास ये होना चाहिए कि धर्म के मामले में हस्तक्षेप नहीं होने पाये।
राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा संथारा के अंतर्गत मृत्यु के लिए स्वेच्छा से अन्न-जल त्यागने को अपराध माना गया था। साथ ही संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन भी मानते हुए ऐसा करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए थे। राजस्थान हाईकोर्ट के इस आदेश के विरूद्ध संपूर्ण जैन समाज एक हो गया। उन्हांेने देश भर में आंदोलन किये एवं हाईकोर्ट के आदेश को गलत माना। जैन समाज के अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन परिषद, भारत जैन मंडल तथा जैन समाज के अन्य शीर्ष संगठनों ने राजस्थान के इस आदेश के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
सुप्रसिद्ध जैन मुनि तरूण सागर जी ने राजस्थान हाईकोर्ट के इस आदेश के विरूद्ध फरीदाबाद में 24 घ्ंाटे का संथारा व्रत लेकर अपनी तिखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। सकल जैन समाज के मुनियों ने भी इसका विरोध करते हुए आदेश वापस लेने का अनुरोध किया। भारत के 13 राज्यों, अमेरिका , आस्ट्रेलिया और कनाडा में जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा शांतिपूर्वक रैलियाँ निकाली गई। दुनिया भर के 75 लाख जैन धर्मावलंबियों ने मौन जूलुस में हिस्सा लिया। संथारा को आत्महत्या करार देने के राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के विरोध में समग्र जैन समाज सड़कांे पर उतर आया। उन्होंने संतांे की मौजूदगी में सामूहिक नवकार महामंत्र का जाप करते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की ।
सामान्यतः शांत रहने वाले जैन समाज में अचानक भूचाल आ गया। संथारा पर सभी एकजूट हो गए। संथारा पर रोक तुगलकी फरमान निरूपित किया गया। जैन समाज ने उनकी मान्यताओं पर कुंठाराघात बताते हुए इसे देश के संविघान का अपमान भी निरूपित किया।
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न जैन समाज की आठ एस एल पी पर अंतरिम आदेश 31 अगस्त को जारी किया। जैन मुनि तरूण सागर जी ने इसे सत्य और अहिंसा की जीत बताया। जैन समाज के अनुयायियों का यह मानना हैं कि हाई कोर्ट ने जैन समाज की प्राचीनकाल से चली आ रही इस परंपरा और धार्मिक मान्यता को समझे बगैर फैसला दिया हैं। उन्होंने संथारा को जैन धर्म का अंग बताया हैं। जैन ग्रंथों में भी संथारा का उल्लेख होने का तर्क उन्होंने दिया हैं।
किसी भी समाज की परंपरा और धार्मिक मान्यता जो हजारो सालों से चली आ रही हैं को वास्तव में मूल रूप से समझे बिना इस पर फैसला देना समाज विशेष की आस्था और विश्वास को चोट पहुँचाने के समान हैं। न्यायालय को भी अपनी सीमा और मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। सीमा से हटकर लिए गए फैसले इतिहास की नजर से उचित नही माने जा सकते। इसलिए यह कहा जा रहा हैं कि न्यायालय को धर्म के मामले में सोच समझकर फैसला लेना चाहिए। ऐसे मामले अत्यन्त ही नाजुक होते हैं । आशा हैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उद्वेदित जैन समाज शांत होगा और सुप्रीम कोर्ट का अंतिम आदेश आशा जगाने वाला होगा।
आखिरकार वही हुआ, जिसकी संभावना व्यक्त की जा रही थी । राजस्थान हाईकोर्ट के 10 अगस्त के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई। राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने फैसले में जैन समाज के प्राचीनकाल से चले आ रहे संथारा प्रथा को अपराध माना था। किसी भी न्यायालय को धर्म के संबंध में फैसला देते समय अत्यंत ही सोच विचार करने की जरूरत होनी चाहिए । और यथा संभव प्रयास ये होना चाहिए कि धर्म के मामले में हस्तक्षेप नहीं होने पाये।
राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा संथारा के अंतर्गत मृत्यु के लिए स्वेच्छा से अन्न-जल त्यागने को अपराध माना गया था। साथ ही संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन भी मानते हुए ऐसा करने वालों के खिलाफ कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए थे। राजस्थान हाईकोर्ट के इस आदेश के विरूद्ध संपूर्ण जैन समाज एक हो गया। उन्हांेने देश भर में आंदोलन किये एवं हाईकोर्ट के आदेश को गलत माना। जैन समाज के अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन परिषद, भारत जैन मंडल तथा जैन समाज के अन्य शीर्ष संगठनों ने राजस्थान के इस आदेश के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
सुप्रसिद्ध जैन मुनि तरूण सागर जी ने राजस्थान हाईकोर्ट के इस आदेश के विरूद्ध फरीदाबाद में 24 घ्ंाटे का संथारा व्रत लेकर अपनी तिखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। सकल जैन समाज के मुनियों ने भी इसका विरोध करते हुए आदेश वापस लेने का अनुरोध किया। भारत के 13 राज्यों, अमेरिका , आस्ट्रेलिया और कनाडा में जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा शांतिपूर्वक रैलियाँ निकाली गई। दुनिया भर के 75 लाख जैन धर्मावलंबियों ने मौन जूलुस में हिस्सा लिया। संथारा को आत्महत्या करार देने के राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के विरोध में समग्र जैन समाज सड़कांे पर उतर आया। उन्होंने संतांे की मौजूदगी में सामूहिक नवकार महामंत्र का जाप करते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की ।
सामान्यतः शांत रहने वाले जैन समाज में अचानक भूचाल आ गया। संथारा पर सभी एकजूट हो गए। संथारा पर रोक तुगलकी फरमान निरूपित किया गया। जैन समाज ने उनकी मान्यताओं पर कुंठाराघात बताते हुए इसे देश के संविघान का अपमान भी निरूपित किया।
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न जैन समाज की आठ एस एल पी पर अंतरिम आदेश 31 अगस्त को जारी किया। जैन मुनि तरूण सागर जी ने इसे सत्य और अहिंसा की जीत बताया। जैन समाज के अनुयायियों का यह मानना हैं कि हाई कोर्ट ने जैन समाज की प्राचीनकाल से चली आ रही इस परंपरा और धार्मिक मान्यता को समझे बगैर फैसला दिया हैं। उन्होंने संथारा को जैन धर्म का अंग बताया हैं। जैन ग्रंथों में भी संथारा का उल्लेख होने का तर्क उन्होंने दिया हैं।
किसी भी समाज की परंपरा और धार्मिक मान्यता जो हजारो सालों से चली आ रही हैं को वास्तव में मूल रूप से समझे बिना इस पर फैसला देना समाज विशेष की आस्था और विश्वास को चोट पहुँचाने के समान हैं। न्यायालय को भी अपनी सीमा और मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। सीमा से हटकर लिए गए फैसले इतिहास की नजर से उचित नही माने जा सकते। इसलिए यह कहा जा रहा हैं कि न्यायालय को धर्म के मामले में सोच समझकर फैसला लेना चाहिए। ऐसे मामले अत्यन्त ही नाजुक होते हैं । आशा हैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उद्वेदित जैन समाज शांत होगा और सुप्रीम कोर्ट का अंतिम आदेश आशा जगाने वाला होगा।