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सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की हालात सुधारने के जतन


डाॅ. चन्दर सोनाने
         हाल ही में लखनऊ उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसला दिया है। फैसले में सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए सभी नेताओं, सरकारी अफसरों और जजों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूल में पढ़ाने का उल्लेख हैं। इसी क्रम में मध्यप्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास तथा सामाजिक न्याय मंत्री श्री गोपाल भार्गव ने लखनऊ उच्च न्यायालय के आदेश की सराहना करते हुए सरकारी अस्पतालों की भी हालात सुधारने के लिए सरकारी अस्पतालों में ही अनिवार्य रूप से सभी नेताओं, अफसरों और जजों के बच्चों को इलाज कराने की वकालत की हैं।
               यह सर्व ज्ञात सत्य हैं कि सरकारी स्कूलों में न तो समय पर शिक्षक पहुंचते हैं, और न ही वहाँ गुणवत्ता पूणर््ा पढ़ाई होती हैं। स्कूलों के हालात खराब है, इसके अनेक कारण हैं।  उच्च न्यायालय के आदेश का पालन यदि किया जाता हैं तो निश्चित रूप से स्कूलों की हर दृष्टि से स्थिति सुधरेंगी। सभी जनप्रतिनिधियों, सरकारी अफसरों और जजों की सजग निगाहें सरकारी स्कूलों पर रहेंगी और वे सभी सरकारी स्कूलों की कमियों को दूर करने का हर संभव प्रयास भी करेंगे। अभी न तो पर्याप्त भवन स्कूलों के लिए उपलब्ध हैं। और जहाँ भवन उपलब्ध ह,ैं वहाँ कमरों की कमी हैं। अभी भी अनेक ऐसे प्राथमिक विद्यालय हैं, जहाँ मात्र एक शिक्षक कक्षा 1 से 5 तक के सभी विषयों का अध्यापन अकेले ही करते हैं । माध्यमिक विद्याालयों में भी शिक्षकों की कमी हैं। विशेषकर ग्रामीण अंचलो में तो हालात और भी खराब हैं। वहाँ पर नियमित रूप से कक्षाएँ भी नही लग पाती हैं। शिक्षकों की गैरहाजरी एक प्रमुख मुद्दा हैं ही।
               सरकारी स्कूलों की खराब हालत को सुधारने में निश्चित रूप से उच्च न्यायालय का फैसला क्रांतिकारी सिद्ध होगा। यह अच्छी बात हैं कि अभी तक उच्च न्यायालय के
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आदेश का कहीं से विरोध नही हुआ हैं। उत्तरप्रदेश के शिक्षा तंत्र के सूत्रांे के अनुसार राज्य सरकार उच्च न्यायालय के आदेश का गंभीरतापूर्वक अध्ययन कर रही हैं। उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव के अनुसार उच्च न्यायालय के आदेश के अध्ययन के बाद राज्य सरकार आवश्यक कार्यवाही करेगी।  यह शुभ संकेत हैं । उच्च न्यायालय के आदेश का पालन मात्र उत्तरप्रदेश में ही नही किया जाकर देशभर में इस आदेश के पालन करने की जरूरत हैं।
               सरकारी स्कूलों की भंाति ही सरकारी अस्पतालों के हालात भी खराब है। यहाँ जनसंख्या के अनुपात में अस्पतालों की कमी हैं, वहीं जहाँ अस्पताल हैं भी तो वहाँ डाक्टरों की विशेषकर विशेषज्ञों की कमी हैं। शहरों की तुलना में ग्रामीण अंचलों की स्थिति और खराब हैं। यहाँ चिकित्सकों की अत्यधिक कमी हैं। इस कारण विशेषकर ग्रामीण अंचलो में नीम- हकीम टाईप के चिकित्सा करने वाले लोगो की तादात दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषकर महिला चिकित्सकों और बाल चिकित्सकों की अत्यधिक कमी हैं । ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकों की पद स्थापना तो की जाती हैं, किन्तु वे अपनी राजनीतिक पहुँच के कारण एवं ऐन केन प्रकारेण अपना ट्रांसफर अथवा अटेचमेंट शहरी क्षेत्रों के अस्पतालों में करवा लेते हैं।  सरकारी अस्पतालों में संसाधनांे की भी अत्यंत कमी रहती हैं।  विशेषकर ग्रामीण अंचलों में तो हालत और भी खराब हैं।
               ऐसी स्थिति में सरकारी स्कूलों की तरह ही सरकारी अस्पतालों में भी नेता, सरकारी अफसरों और जजों के बेटे-बेटियों को अनिवार्य रूप से चिकित्सा कराने की वकालत करने वाले प्रदेश के मंत्री श्री गोपाल भार्गव के विचार अत्यंत महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी हैं। यदि जिला मुख्यालयों पर कलेक्टर और एसपी, सभी सरकारी अफसरो के बेटे-बेटियाँ, नेताओ और जजों के बच्चें भी सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे और सरकारी अस्पताल में ही ईलाज कराएंगे तो निश्चित रूप से उनकीे हालात सुधरेंगी। इसी प्रकार संभागीय मुख्यालय पर कमिश्नर और आईजी के बच्चे तथा नेताओं और जजों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे और सरकारी अस्पतालों में ईलाज कराएंगे तों उनकी स्थिति में बदलाव निश्चित रूप से आएगा । कल्पना कीजिए कि राज्यों की राजधानियों में मुख्यमंत्री, सभी मंत्री , सभी जजों और वरिष्ठ  आईएएस एवं आईपीएस अधिकारियों के बच्चें सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे और सरकारी अस्पताल में ईलाज कराएंगे  तो वहाँ की हालत निश्चित रूप से सुधरेगी। जरूरत हैं सिर्फ इतना कि उच्च न्यायालय लखनऊ के आदेश और मध्यप्रदेश के मंत्री श्री गोपाल भार्गव की मंशा के अनुसार कार्य किया जाए तो निश्चित रूप से सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की हालत सुधारने के जतन क्रांतिकारी सिद्ध होंगे।

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