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सस्ते मकान बनाने की तकनीक इजात करने की जरूरत


   डाॅ. चन्दर सोनाने
              स्वतंत्रता दिवस पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चैहान ने घोषणा की हैं कि, मध्यप्रदेश में सभी गरीबों को अपना मकान उपलब्ध कराया जाएगा। इसके लिए उन्होंने समय सीमा 2022 तय की । इसी के अन्तर्गत 25 सितंबर 2015 से ‘‘गरीब कल्याण वर्ष ‘‘ भी मनाया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि गरीबों को मकान दिए जाने के लिए कानून भी बनाया जाएगा। इस कानून में यह प्रावधान रहेगा कि बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था के किसी गरीब को हटाया नही जाएगा।
             प्रदेश के मुख्यमंत्री की यह पहल निश्चित ही गरीब आवासहीन लोगांे के लिए वरदान सिद्ध होगी। किन्तु कोई भी गरीब सिर्फ सरकार के भरोसे ही नही रहे, वह स्वयं अपना मकान भी बनाए, इसके लिए विशेषज्ञों को मकान बनानें की सस्ती विधि ज्ञात करनी होगी। वर्तमान में ईंट, सीमेंट, रेत से मकान बनाएं जा रहे हैं। कुछ साल पहले हुडको ने गरीबों के लिए सस्ते मकान बनाने की दिशा में सार्थक पहल आरंभ का थी, किन्तु वह उसे और आगे नही बढ़ा पाया। आज जरूरत इस बात की है कि इस क्षेत्र के विशेषज्ञ आपस में बैठकर चिंतन मनन करें और किसी अन्य साधनों से सस्तें मकान बनाने का अविष्कार करें। इसके लिए हुडको और राज्य सरकारों को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। वर्तमान में परंपरागत साधनों से बनाया जाने वाला मकान महंगा पडता हैं। सस्ते मकान बनाने के चक्कर में ऐसे मकान के कमरे का आकार धीरे- धीरे कम होता जा रहा हैं। किसी भी गरीब व्यक्ति के परिवार के लिए 2 कमरे की नितांत आवश्यकता होती  हैं, जिसमें वह रहने, सोने, खाने, पीने के इंतजाम कर सके। साथ ही शौचालय एवं स्नानागार भी होना आवश्यक हैं।
            हमारे ही देश का मैसूर एक शहर है, जहाँ कोई झुग्गी बस्ती नहीं हैं। यह चमत्कार मैसूर के एक दशक की परिकल्पना, योजना और मेहनत का परिणाम हैं। कभी वहाँ भी झुग्गी-झोपडियाँ हुआ करती थी, किन्तु मैसूर की स्थानीय निकाय ने अल्पकालीन एवं
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दीर्घकालीन योजना बनाकर पूरे मैसूर को झुग्गी झोपडियों से मुक्त कर दिया। यह चमत्कार अन्य नगरों में भी हो सकता हैं, जहाँ झुग्गी झोपडियां भरी पडी हैं। जरूरत है तो मैसूर की तरह दृढ़ इच्छाशक्ति, मेहनत और दृढ़ संकल्प की।
             गृह निर्माण मंडल और नगर विकास प्राधिकरणों का गठन ही इसलिए हुआ था कि छोटे बडे सभी शहरों में गरीबों और आवासहीन लोगो को आवास उपलब्ध कराया जा सके। किन्तु आज गृह निर्माण मंडल 50 लाख रू.से 1 करोड रू. की लागत के मकान बनाने में अधिक रूचि ले रहें है। नगरों में बनाए गए विकास प्राधिकरण का भी मूलभूत उद्देश्य उस नगर के गरीबों या आवासहीनों को सस्ती दर पर आवास उपलब्ध करवाना था। किन्तु यहाँ भी बडे-बडे प्रोजेक्ट हाथ में लिए जा रहे हैं। केन्द्र शासन की ‘‘जवाहरलाल नेहरू नेशनल अरबन
रिनिवल मिशन‘‘ के अन्तर्गत जरूर अच्छी पहल शुरू हुई है। इसमें सिर्फ गरीबों विशेषकर                              झुग्गी बस्ती में रहने वाले गरीबों को सस्ते मकान बनाने की योजना आरंभ की गई। किन्तु, इस योजना में भी धीमी गति का ग्रहण लग गया हैं। यदि भवन बन भी जाते हैं तो इनके आबंटन में महीनों लग जाते हैं। इस योजना में सुनिश्चित कार्य योजना बनाने की आवश्यकता है और समयबद्ध क्रियान्वयन किए जाने की जरूरत  हैं। सेवा भावना से बनाए जाने वाले इन भवनों को समय सीमा में पूर्ण करने की अत्यंत आवश्यकता है। ऐसे आवास या भवन बनाने का काम शुरू करने के साथ ही हितग्राही का चयन भी पूर्व में ही  करने की जरूरत हैं।
            प्राइवेट काॅलोनाइजरों को काॅलोनी बनाने के समय पूर्व में गरीबों के लिए निश्चित स्थान सुरक्षित रखने के नियम थे। किन्तु अपवाद को छोडकर किसी भी प्रायवेट काॅलोनाइजरों द्वारा इस नियम का पालन नही किया गया। अब इस नियम में भी बदलाव कर दिया हैं, जो काॅलोनाइजरों के हक में हैं। अब काॅलोनियों में निश्चित स्थान सुरक्षित रखने का प्रावधान नही हैं। कालोनाइजरों से इसके बदले एक निश्चित राशि लेने का प्रावधान किया गया हैं । इस राशि का उपयोग गरीबों के लिए मकान बनाने में किया जाना हैं। इस मद में प्राप्त राशि का कितना और क्या सही उपयोग हो सकेगा ? इसके बारें में संदेह हैं। इस मद से प्राप्त राशि से झुग्गी बस्तियों में रहने वालेां के लिए बनाए जा रहे मकानों की तर्ज पर ही मकान बनाए जाने की आवश्यकता हैं।
            गरीबों का उनका अपना मकान हो, इस योजना को साकार करने के लिए समर्पण एवं सेवा भावना की जरूरत हैं। इस योजना में सेवा भावना से कार्य करने वालेां  को ही लगाने की आवश्यकता हैं, जो गरीबों और आवासहीनों  का दर्द समझ सकें।

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