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राजस्व और प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों का अपने मूल कर्तव्यों के निर्वहन के साथ ही एक और काम भी होता है- आनंद शर्मा वरिष्ठ पूर्व आईएएस


रविवारीय गपशप 
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                   राजस्व और प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों का अपने मूल कर्तव्यों के निर्वहन के साथ ही एक और काम भी होता है और वह है कार्यपालिक दण्डाधिकारी के रूप में व्यवस्था संभालना । इन कार्यपालिक मजिस्ट्रेट का इस्तेमाल कई स्थानों पर होता है , प्राकृतिक आपदाओं में , मानव जनित दुर्घटनाओं में , समय समय पर निकलने वाले धार्मिक और सामाजिक जुलूसों में , धरने आंदोलनों में और व्ही.आई.पी. मूवमेंट में । मेरी डिप्टी कलेक्टर की नौकरी के पहले हफ़्ते में ही एक सुबह मुझे जिला कलेक्टर के आदेश से लोकायुक्त की छापामार टीम के दल का सदस्य बना दिया गया और सुबह सुबह ही राजनांदगांव और महाराष्ट्र के भंडारा जिले की सीमा में स्थित पाटेकोहरा आर.टी.ओ. बेरियर में छापेमार कार्यवाही के लिए रवाना कर दिया गया । मुझे मजिस्ट्रेट की हैसियत से की गई कार्यवाही में बतौर कार्यपालिक मजिस्ट्रेट साक्षी की भूमिका निभानी थी । तब मेरे लिए ये किसी एडवेंचर्स से कम नहीं था कि जिन समाचारों को हम अखबारों में पढ़ते थे वे वास्तव में कैसे घटित होते हैं । इसके बाद नौकरी में एस.डी.एम. और ए.डी.एम के रूप में तो कार्यपालिक दण्डाधिकारी को तय की गई भूमिकायें तो सीधी निभाई ही , पर जब मुख्य धारा से अलग भी कोई पोस्टिंग मिली तो चुनाव या व्ही.आई.पी. मूवमेंट में मजिस्ट्रेट ड्यूटी के रूप में कोई न कोई जिम्मेदारी मिल ही जाती थी । 
                   ग्वालियर में जब मैं ग्वालियर विकास प्राधिकरण के सी.ई.ओ. के रूप में पदस्थ था , तब हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी का ग्वालियर आगमन हुआ । बड़ा व्ही. आई.पी. मूवमेंट था तो मेरी ड्यूटी भी लगी , और वो भी मुरार सर्किट हाउस में लगी , जहाँ अटल जी को रुकना था । मैं अपने सौभाग्य में फूला न समाया, आख़िर अटल जी जैसे विराट व्यक्तित्व को नज़दीक से देखने का मौक़ा जो मिलने वाला था । तमाम तरह की मॉक ड्रिल के बाद वो दिन भी आ गया , जब प्रधानमंत्री जी आने वाले थे । मैं अपनी ड्यूटी में मजिस्ट्रेट की पोशाक में तैनात हो गया और उनके रुकने , मिलने आने-जाने के सभी आयामों को अपने साथ के इंचार्ज पुलिस अफ़सर के साथ चेक करने लगा । अचानक सर्किट हाउस के प्रबंधक , पी.डब्ल्यू.डी. के एस.डी.ओ. आए और कहने लगे कि माननीय प्रधानमंत्री जी के भोजन के मेन्यू में सूप के लिए “क्लियर वेज” सूप लिखा है , लेकिन हमारे यहाँ मुरार सर्किट हाउस में इसकी सही रेसिपी जानने वाला रसोइया तो है नहीं , बताइए क्या करें ? कार्यपालिक मजिस्ट्रेट के नाते सर्किट हाउस व्यवस्था का मैं ही प्रभारी था और और इस समस्या का हल मुझे ही निकालना है ये तय था । तब उच्च गुणवत्ता वाली होटल ग्वालियर में कम ही थीं । सिटी सेंटर में सेंट्रल पार्क नाम की एक नई होटल खुली थी , जिसकी साख अच्छी थी । मैंने उस होटल के जनरल मैनेजर को फ़ोन लगाया जो मेरा परिचित था और अपनी समस्या बताई । जी.एम. ने कहा सूप बनाने वाला तो हमारे यहाँ है पर आपको सूप बनवा कर कैसे भिजवाएँ ? मैंने कहा सूप नहीं सूप बनाने वाला लगेगा , पी.एम. का खाना तो बनाने और चखने सबका प्रोटोकॉल होता है इसलिए सूप तो यहीं सर्किट हाउस में ही बनेगा आप तो सैफ को भेजने की व्यवस्था करो । उसने कहा ये तो और मुश्किल है पी.एम. के प्रोटोकॉल में व्ही.आई.पी. सर्किट हाउस के तो सारे रास्ते बंद होंगे , आप चाहो तो ख़ुद आकर ले जाओ । मैंने घड़ी देखी , समय अभी था तो सर्किट हाउस के इंचार्ज पुलिस अधिकारी से एक हवलदार लिया , ताकि रास्ते में रुकने की गुंजाइश ना रहे और विकास प्राधिकरण की अपनी मारुति वेन में मुरार से सेंट्रल पार्क होटल की ओर चल दिया । थोड़ी ही देर में मैं सेंट्रल पार्क होटल पहुंच गया , और बाहर प्रतीक्षा कर रहे सैफ को सूप बनाने की सामग्री सहित मारुति वैन में बिठा कर मुरार सर्किट हाउस वापस आ गया ।

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