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LIVE REPORTING कहां गए वो लोग...? -निरुक्त भार्गव वरिष्ठ पत्रकार


LIVE REPORTING

कहां गए वो लोग...?

(निरुक्त भार्गव)

देश में जब समूचे इतिहास को बदलने की कवायद जोर-शोर से की जा रही हो और स्वतंत्रता संग्राम की ‘हीरो’ रहीं शख्सियतों को बकायदा विलेन साबित करने की होड़ मची हुई हो, कन्हैयालाल वैद्य जैसे महान स्वातंत्र्य-वीरों का स्मरण सहज रूप से होने लगता है. उनके सरीखे पत्रकारों ने किस शिद्दत के साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में उच्च मापदंड स्थापित किए होंगे, वो चर्चाएं भी उभर-ही आती हैं. इस तरह के लोग देश के सर्वोच्च सदन यानी संसद तक भी शोभायमान किए गए, जहां के उनसे जुड़े अज़ीम किस्से भी खूब ध्यान खींचते हैं.....

 16 दिसम्बर 2024 को उन्हीं कन्हैयालाल वैद्य की 50वीं पुण्यतिथि थी और ये एक सुखद संयोग था कि उनकी स्मृति में उज्जैन के क्षीरसागर कॉलोनी स्थित राजेंद्र जैन सभागृह में लगातार 50वां समारोह आयोजित था. कड़ाके की सर्दी के बावजूद पूरे मध्य प्रदेश से उनको जानने और मानने वाले लोग एकत्र थे. तीन घंटे तक लगातार जिस प्रकार के प्रभावी उद्गार मंच से प्रवाहित हुए और जिस तरह सादगी और आत्मीयतापूर्ण ढंग से चीज़ों को संजोया गया—कहने के लिए पर्याप्त था कि शायद इसी जज़्बे के बरक्स उस दौर के हिन्दुस्तानियों ने आज़ादी पाई और फिर भारतवर्ष को गढ़ा.

 स्वतंत्रता आन्दोलन, पत्रकारिता के इर्द-गिर्द इतिहास के पन्नों को पलटते हुए मौजूदा परिदृश्य और भावी स्वरूप को लेकर जिस प्रकार के विचार प्रकट किए गए, वो नई पीढ़ी के लिए पाथेय हो सकते हैं! 99 बरस की आयु में भी चिर-युवा प्रतीत होते स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रेमनारायण नागर, जिन्होंने ताउम्र सरकारी पेंशन लेने से इंकार कर दिया, वो दहाड़ते नज़र आए: “आज देश में जो हालत बन रहे हैं उसकी कल्पना महात्मा गांधी ने उसी समय कर ली थी.  आजादी मिलते ही गांधीजी ने कहा था, आजादी तो आ रही है लेकिन इससे खतरा भी आएगा.” खुद्दार पत्रकारिता के लिए मशहूर नागरजी  ये कहना भी नहीं चूके, “अब पत्रकारिता समाप्त हो गई है. आज पत्रकारिता और राजनीति एक हो गई है जबकि पूर्व में पत्रकारिता और राजनीति अलग-अलग होती थी. संपादक की गरिमा भी गिर रही है.”

 मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और छत्तीसगढ़ में अपनी पैनी लिखावट के कारण चर्चित पत्रकार कीर्ति राणा ने तो जमकर मोर्चा संभाला. उन्होंने अच्छे-अच्छों की कलाई उधेड़ना शुरू कर दिया. “कन्हैयालाल वैद्य, मामा बालेश्वर दयाल, प्रेमनारायण नागर अगर मिशन की पत्रकारिता करते थे, तो हम कमीशन की पत्रकारिता करते हैं...नवोदित पीढ़ी को पाठ पढ़ाए जा रहे हैं कि देश में असल स्वतंत्रता तो 2014 से आई है. बड़ा बुरा वक़्त है कि पत्रकारों और संपादकों को बिज़नेस टारगेट्स दिए जा रहे हैं और मोबाइल के जरिये बिना पुष्टि किए सूचनाएं फैलाने वाले कथित मीडियाकर्मी समाज में प्रतिष्ठित किए जा रहे हैं.”.....

 नगर के स्थापित पत्रकार सुनील जैन ने अपनी बात कहते हुए साफ़गोई का प्रदर्शन किया. उनका मत था कि पत्रकारिता हर दौर में महत्वपूर्ण रही है और आज उसको इसीलिए हाथों-हाथ लिया जा रहा है क्योंकि सूचना और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में अपार विस्तार हुआ है. उन्होंने कहा, “आज के दौर में सोशल मीडिया की खबर पर प्रश्नचिन्ह लगाए जाते हैं, लेकिन अखबार की खबर आज भी विश्वसनीय बनी हुई है. अखबार की विश्वसनीयता पूर्व में भी थी आज भी है और आने वाले समय में भी रहेगी.  पत्रकारिता के मामले में वर्तमान में अमेरिका, जापान एवं अन्य देश की तकनीकी भारत से बहुत आगे है, लेकिन वहां पर आज भी
 अखबार प्रकाशित हो रहे हैं.”

 जिन्होंने सेवा के माध्यम से अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई, ऐसे उज्जैन के पूर्व सांसद सत्यनारायण पवार एक बड़े अरसे के बाद दमदारी से अपनी बात कहते दिखे! वे बोले, “वर्तमान सरकार आजादी दिलाने वालों का अपमान कर रही है. देशवासियों को पुराना इतिहास भुलाकर नया इतिहास बताया जा रहा है.  नेहरू व गांधी परिवार का आजादी में  योगदान रहा, लेकिन उनको गलत बताया जा रहा है.” 

 बताते चलूं कि कार्यक्रम में हर पीढ़ी, हर फ़िरके, हर जमात के लोग उपस्थित थे. उनको इस बात से संतोष था कि राज्य सरकार ने कन्हैयालाल वैद्य के अवदान को चिरस्थायी बनाये रखने के लिए उज्जैन संभागीय स्तर पर एक लाख रुपए का ‘श्रेष्ठ आंचलिक पत्रकार पुरस्कार’ स्थापित किया हुआ है. समूचे सदन की भावनाएं थीं कि मालवा के सपूत और सूबे के मुख्यमंत्री मोहन यादव पुरजोर कोशिश करें कि केंद्र सरकार वैद्य जी की स्मृति में एक राष्ट्रीय अवार्ड आरम्भ करे. सभी ने इस प्रस्ताव पर भी सहमति जतलाई कि वैद्य की याद में पिछले 50 वर्षों से आयोजित सभी कार्यक्रमों पर आधारित एक ग्रन्थ प्रकाशित किया जाए!

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