top header advertisement
Home - उज्जैन << संस्कृति विभाग द्वारा ग्वालियर में आयोजित तानसेन संगीत समारोह का 100वाँ उत्सव में त्रिवेणी संग्रहालय के वाद्यों की प्रदर्शनी

संस्कृति विभाग द्वारा ग्वालियर में आयोजित तानसेन संगीत समारोह का 100वाँ उत्सव में त्रिवेणी संग्रहालय के वाद्यों की प्रदर्शनी


समस्त भारतीय कलाओं को सम्मान प्रदान करने के लिए संकल्पित मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा तानसेन संगीत समारोह के 100वें उत्सव को स्मरणीय बनाने के उद्देश्य से देश के लगभग २० राज्यों के पारंपरिक, शास्त्रीय एवं लोक वाद्यों की प्रदर्शनी ग्वालियर के हजीरा क्षेत्र में स्थित तानसेन समाधि परिसर में लगाई गई है ।  
१५ से १९ दिसम्बर तक आयोजित होने वाले तानसेन समारोह में ५५० से अधिक वाद्यों की प्रदर्शनी लगाई गई है यह सभी वाद्य उज्जैन के त्रिवेणी संग्रहालय द्वारा संकलित एवं प्रदर्शित किए गए हैं , 
समारोह के शुभारंभ अवसर पर मध्यप्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव  द्वारा मुख्य समारोह का शुभारंभ किया गया, मुख्यमंत्री जी ने अपने सारस्वत उद्बोधन में कहा की इस प्रकार के आयोजनों से संगीत कला साधकों और युवा पीढ़ी का मनोबल बढ़ेगा और यह आयोजन सम्राट तानसेन को सच्ची आदरांजलि है। उन्होंने कहा कि भारतीय सनातन संस्कृति में संगीत का विशेष महत्व है। महर्षि पतंजलि ने मानव शरीर में पाँच प्राण — प्राण, अपान, उदान, व्यान और समान और पाँच उप-प्राण - नाग, कूर्म, देवदत्त, कृकला और धनंजय बताए है। संगीत इन सभी प्राणों में चेतना का जागरण करती है। भारतीय संगीत की साधना शरीर के रोम रोम को पुलकित कर देती हैं। प्रकृति के साथ संगीत का संबंध नैसर्गिक होकर हमारी संस्कृति की पहचान है। हमारे भगवान भी किसी न किसी वाद्य यंत्र को धारण करते है। सबसे पहला वाद्ययंत्र डमरू जिसे भगवान शिव जी धारण करते है। उसी तरह भगवान श्री कृष्ण के साथ बांसुरी जुड़ी है। बांसुरी को श्री कृष्ण ने हमेशा अपने पास रखा और एक तरह से बांसुरी ही भगवान श्री कृष्ण की पहचान बन गईं। संगीत सम्राट तानसेन ने शास्त्रीय संगीत की साधना करते हुए अपने जीवन को सार्थक किया, उनकी नगरी ग्वालियर में ऐसे समारोह से कला साधकों का मनोबल बढ़ेगा और संगीत की परम्परा को आगे बढ़ाने की प्रेरणा भी मिलेगी।

Leave a reply