समृद्ध होते सांस्कृतिक वैभव का अधबीच - विनोद नागर (लेखक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार)
जयति जय मध्य प्रदेश
समृद्ध होते सांस्कृतिक वैभव का अधबीच
- विनोद नागर (लेखक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार)
भारत का हृदय स्थल निरूपित किया जाने वाला मध्य प्रदेश अपने में गौरवशाली इतिहास के अनेक चमचमाते पन्ने समेटे हुए है। प्राचीन काल से ही यहां सांस्कृतिक वैभव की समृद्ध परंपरा रही है। तकरीबन सात दशक की विकास यात्रा में राज्य ने धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में विकास के नित नये प्रतिमान स्थापित किये हैं।
पिछले एक साल में डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य के सांस्कृतिक वैभव के संरक्षण की दिशा में अनेक नवाचारी कदम उठाये गये हैं। चाहे वह गुरुजनों के सम्मान में प्रदेश के स्कूल-कॉलेजों में गुरु पूर्णिमा समारोहपूर्वक मनाने का निर्णय हो या विश्वविद्यालयों में कुलपति के पदनाम को बदलकर कुलगुरु करने का फैसला हो।
बीते एक साल में मकर संक्रांति से लेकर अभी गीता जयंती तक सभी प्रमुख त्योहार सरकार ने समाज के साथ मिलकर मनाये हैं। हाल में सामूहिक गीता पाठ का विश्व कीर्तिमान बनाकर मध्य प्रदेश ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इधर भारतीय ज्ञान परम्परा को आगे बढ़ाते हुए राज्य के शैक्षिक पाठ्यक्रमों में रामायण और गीता को वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल करने की सार्थक पहल भी की गई है। प्रदेश के समस्त नगरीय निकायों में गीता भवन के निर्माण का निर्णय भी जन भावनाओं के अनुरूप माना जा है।
करीब 1,450 किमी लंबे श्री राम वनगमन पथ के निर्माण के अलावा श्री कृष्ण लीला से जुड़े सभी तीर्थस्थलों को समाहित कर श्री कृष्ण पाथेय के निर्माण के लिए राज्य सरकार ने एक न्यास के गठन को स्वीकृति दी है। श्री कृष्ण पाथेय न्यास के अंतर्गत उज्जैन के सांदीपनि आश्रमऔर नारायणा गांव को इन्दौर जिले में महू के पास जानापाव और धार जिले के अमझेरा को आपस में जोड़ने की नई पहल स्वागत योग्य है।
विक्रमादित्य और महाकवि कालिदास की नगरी उज्जैन में महाकाल लोक के निर्माण के बाद से उमड़ा धार्मिक पर्यटन का सैलाब एक दिन के लिए भी थमा नहीं है। ऐसा लगता है मानों उज्जयिनी के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास को नये पंख लग गये हों। उज्जैन की वेधशाला में इसी वर्ष स्थापित विश्व की पहली वैदिक घड़ी ने पूरी दुनिया को भारतीय काल गणना की प्राचीन परम्परा से अवगत कराया है। विक्रमोत्सव की बहुआयामी गतिविधियों के साथ प्राचीन भारत के कालजयी महानायकों पर केन्द्रित देश के प्रथम संग्रहालय 'वीर भारत न्यास' का शिलान्यास भी हो चुका है। जल्दी ही राष्ट्रीय खगोलीय केन्द्र के बतौर 'डोंगला' भी देश के मानचित्र पर उभरेगा।
नवाचार की इस रेलमपेल में मध्य प्रदेश के पुराने खोए वैभव को लौटाने की आस जगना भी स्वाभाविक है। अस्सी के दशक में भोपाल में स्थापित कलाओं के घर 'भारत भवन' में अब वह रौनक नज़र नहीं आती, जो कभी बा.व. कारंथ, जगदीश स्वामीनाथन और निर्मल वर्मा जैसे नामचीन सृजनधर्मियों की कर्मस्थली बनकर भोजपाल को देश में कलाओं की राजधानी का दर्ज़ा दिलाता रहा। लेकिन अब नाट्य प्रस्तुतियों के बगैर 'अंतरंग' और 'बहिरंग' सालों से वीरान पड़े हैं। जबकि राजा भोज की नगरी में शौकिया रंगकर्मियों के थिएटर ग्रुप अपनी नाट्य प्रस्तुतियों के लिए महंगे ऑडिटोरियम का बोझ उठाते-उठाते थक गये हैं। 'अनहद' में संगीत की स्वर लहरियां सूनी पड़ी हैं। 'वागर्थ' में साहित्यकारों के समागम/ विमर्श की चहल-पहल अब एक खास सालाना 'लिटरेचर फेस्टिवल' तक सिमटकर रह गई है।
भारत भवन का 'छवि प्रभाग' भी विश्व सिनेमा पर गंभीर विमर्श के परिसंवाद आयोजित करने के बजाय पुरानी घिसी पिटी फिल्मों के प्रदर्शन की खानापूर्ति तक स्वयं को सीमित किए हुए है। बा.व. कारंथ के गुजरने के बाईस साल बाद भारत भवन को इस वर्ष उनकी याद आई और एक स्मृति अवदान की रस्म पूरी हुई।
फिल्मों से याद आया कि हाल के वर्षों में मध्य प्रदेश की पहचान फिल्मों और वेब सीरीज के शूटिंग हब के रूप में तेज़ी से बढ़ी है। इसका सारा दारोमदार सरकार ने एमपी टूरिज्म बोर्ड के फिल्म फैसिलिटी सेंटर को सौंप रखा है, जिसकी वेब साइट पर आधी-अधूरी जानकारी प्रदर्शित है। एमपी में फिल्माई गई फिल्मों की सूची में गुलज़ार निर्देशित 'किनारा' और उसके सर्वाधिक लोकप्रिय गीत "नाम गुम जाएगा.." के मांडू में फिल्मांकन का कहीं कोई जिक्र नहीं है। जबकि 'किनारा' एक मात्र ऐसी फिल्म है, जिसमें मांडू का जिक्र मांडू के रूप में ही फिल्म में बारंबार आता है, न कि किसी दूसरे शहर या स्थान के रूप में।
अस्सी के दशक में जब मध्य प्रदेश में कभी कभार किसी फिल्म की शूटिंग हुआ करती थी, तब राज्य सरकार ने मध्य प्रदेश फिल्म विकास निगम का गठन किया था। इस निगम ने राज्य के अनेक शहरों में सिनेमाघरों के निर्माण में सहायता देने के अलावा सिने प्रेमी दर्शकों की फिल्म सोसायटीज गठित कर सदस्यों को दुनिया भर की श्रेष्ठ फिल्में देखने का अवसर प्रदान किया था। निगम ने वर्षों तक श्रीराम तिवारी के संपादन में 'पटकथा' नामक बेहतरीन फिल्म पत्रिका भी निकाली और रवींद्र भवन में मणि कौल की फिल्मों के हाउस फुल शो भी आयोजित किए। आज जब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव वर्षों पूर्व बंद हो चुके मध्य प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम को दुबारा चालू कराने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं, तो उन्हें मध्य प्रदेश में फिल्म विकास को बढ़ावा देने के अनुकूल अवसर को भांपकर मध्य प्रदेश फिल्म विकास निगम को भी पुनर्जीवित करने पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए।
कभी मध्य प्रदेश से निकलने वाली 'पूर्वग्रह' 'कलावार्ता' 'समाज सेवा' 'चौमासा' जैसी सरकारी पत्रिकाओं की देशभर के साहित्यिक हल्कों में गजब की धाक थी, जो अब काल कवलित हो चुकी हैं। मात्र 'मध्य प्रदेश संदेश' और 'साक्षात्कार' जैसी पत्रिकाओं का अनियमित अस्तित्व भर बचा है। आज मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी सहित अन्य सभी भाषाई अकादमियां बजट की कमी का रोना रो रही हैं, जबकि आंकड़े बताते हैं कि संस्कृति विभाग के बजट में साल दर साल दिन दूनी, रात चौगुनी वृद्धि हुई है। तब यह सवाल उठना वाजिब है कि आखिर इस विरोधाभास की जड़ कहां है?
मध्य प्रदेश में साहित्य, कला और संस्कृति के वर्तमान परिदृश्य के संदर्भ में चार दशक पुराने एक कला रसिक मित्र ने चुटकी लेते हुए कहा- "यह क्या कम है कि अभी भारत भवन में कम से कम रोज़ साफ-सफाई तो होती है.. झाड़ू-पोंछा तो लगता है, वर्ना भोपाल में चालीस-पचास साल पहले भाषा, साहित्य और संस्कृति के संरक्षण के पुनीत उद्देश्यों से स्थापित अनेक संस्थानों के समक्ष आज रख-रखाव के भारी खर्च का संकट मुंह बाए खड़ा है।" कमोबेश यही हालात इन्दौर में अभिनव कला समाज और मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति जैसी गौरवशाली संस्थाओं को भी झेलने पड़े हैं। धार का विक्रम ज्ञान मंदिर हो या उज्जैन का विक्रम कीर्ति मंदिर समुचित राजकीय संरक्षण के अभाव में प्रदेश के विभिन्न भागों में अनगिनत सांस्कृतिक केन्द्र उपेक्षा के शिकार हैं।
ऐसे में इन्दौर के सिख मोहल्ला में लता मंगेशकर की जन्मस्थली या खंडवा में किशोर कुमार के पैतृक निवास गौरी कुंज को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में राजकीय संरक्षण न मिल पाने की कसक की क्या बिसात है! भला हो राऊ के निकट पिगडंबर स्थित सुमन चौरसिया सरीखे जुनूनी लोगों का जिन्होंने बिना किसी सरकारी सहायता के अपने सीमित साधनों के बल पर लताजी के साढ़े सात हजार गानों के दुर्लभ ग्रामोफोन रिकॉर्ड का नायाब संग्रहालय स्थापित कर रखा है।
पद्मश्री से सम्मानित नृत्य गुरु डॉ. पुरु दाधीच ने इसी महीने भोपाल के रवींद्र भवन में आयोजित मध्य प्रदेश रत्न अलंकरण समारोह में सुस्पष्ट सांस्कृतिक नीति के अभाव की ओर ध्यान दिलाया था। निश्चित ही सुसंगत सांस्कृतिक नीति के जरिए इस विसंगति को दूर किया जा सकता है। (लेखक मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार, फिल्म समीक्षक और स्तंभकार हैं।)
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