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आपका एक क्षण देकर तो देखिए. -सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर


आलेख

आपका एक क्षण देकर तो देखिए..

-सतीश जोशी, वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर

यदि आप बहुत शांति से सोचें तो किसी को भी जिंदगी में उसे आगे बढ़ाने के लिए आपका एक क्षण यानी एक पल उसके लिए वरदान साबित हो सकता है। मन, कर्म, वचन से हम यदि किसी ऐसे व्यक्ति को जिसको कि प्रोत्साहन की जरूरत है, एक क्षण समर्पित कर दीजिये, बस..। 

उसकी पीठ पर हाथ रखने की आवश्यकता है। उसके सिर पर हाथ रखते हुए यदि हम सद्भाव का एक शब्द, एक पल देकर उसे प्रोत्साहित कर दें तो आप मान कर चलिए कि आपका वह एक पल उसकी स्वर्णिम जिंदगी के लिए बहुत बड़ी दौलत बन जाता है। आप कल्पना कीजिए कि इस क्रिया में आपको लगता क्या है..? कितनी देर लगती है...?

आपका एक पल किसी को अपनी तरफ से दे दें तो, किसी की जिंदगी बदल सकती हैं। किसी की जिंदगी संवर सकती हैं। निराशा से आशा की तरफ उसको ला सकते हैं। उस व्यक्ति को नवजीवन दे सकते हैं। 

कभी आप करके देखना कि प्रोत्साहन का एक शब्द कहने में केवल एक क्षण लगता है। किसी के बहते आँसुओं को पोंछने में बस एक पल लगता है। किसी जरुरतमंद की मदद के लिए पहुंचने में केवल एक क्षण लगता है। सामने वाले को समझने की कोशिश करने में भी केवल एक क्षण लगता है। किसी को मित्र बनाने और उसे अपना मित्र बनाए रखने में भी केवल एक क्षण लगता है।

टूटे हुए दिल को जोड़ने में भी बस एक पल लगता है। किसी का दिन रोशन करने में भी केवल एक पल लगता है। इसलिए इस पल को अपनी जिन्दगी का लक्ष्य बनाकर अपने कर्मयोग में कैद कर लीजिए, इससे पहले कि यह आपके हाथ से फिसल जाए।

जिस प्रकार दूसरों को अपना समय, धन या सलाह देकर उनका कुछ न कुछ भला हम कर सकते हैं उसी प्रकार प्रोत्साहन देकर भी अनेकों की भलाई कर सकना संभव हो सकता है।
मनुष्य का मन सदा दुविधा में डूबा रहता है। आशा-निराशा के झूले में झूलता हुआ वह आगे-पीछे होता रहता है। सद्गुणों और दुर्गुणों के ज्वार भाटे भी आते रहते हैं। ऐसे समय उसे आपका सिर्फ एक क्षण ही तो चाहिए।

जब दूसरे लोग अपनी प्रशंसा करते हैं तो मन प्रफुल्लित होता है, गर्व अनुभव होता है और लगता है कि हम वस्तुतः प्रशंसनीय कार्य कर रहे हैं। पर जब औरों के मुँह से अपनी निन्दा, असफलता और तुच्छता की बात सुनते हैं तो दुःख होता है, मन टूटता है, निराशा आती है। तब उसको आपका एक पल ही तो चाहिए।

प्रशंसा करने वाला मित्र और अधिक प्रिय लगता है। पर जो लोग निन्दा करते हैं, वे शत्रु दीखते हैं, बुरे लगते हैं, क्योंकि उनने अपना बुरा पहलू सामने प्रस्तुत करके मन में निराशा और खिन्नता उत्पन्न कर दी। आत्म निरीक्षण की दृष्टि से अपने दोष, दुर्गुणों को ढूँढ़ना उचित है। किन्हीं घनिष्ठ मित्र को एकान्त में उनकी अनुपयुक्त गतिविधियों को सुधारने के लिए परामर्श देना उचित है। इसमें एक क्षण ही तो लगता है।

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