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भारत-बांग्लादेश में परस्पर असहिष्णुता: कारण, परिणाम और समाधान-रामचन्द्र धर्मदासानी (पूर्व प्राचार्य केंद्रीय विद्यालय)


भारत-बांग्लादेश में परस्पर असहिष्णुता: कारण, परिणाम और समाधान

भारत और बांग्लादेश के संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक दृष्टि से गहरे जुड़े हुए हैं। 1971 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर वर्तमान समय तक, दोनों देशों ने न केवल राजनीतिक, बल्कि सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में भी निकटता बनाए रखी है। बावजूद इसके, हाल के वर्षों में परस्पर असहिष्णुता की घटनाएं और अल्पसंख्यकों के प्रति नकारात्मक रवैया दोनों देशों में बढ़ा है। इस आलेख में हम इसके प्रमुख कारणों, प्रभावों और संभावित समाधानों पर चर्चा करेंगे।

परस्पर असहिष्णुता के प्रमुख कारण

1. बांग्लादेश में सांप्रदायिक हिंसा और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा:

बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं समय-समय पर सामने आती रही हैं। दुर्गा पूजा उत्सव के दौरान मंदिरों पर हमले और धार्मिक भेदभाव ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या बांग्लादेश सरकार अपने अल्पसंख्यकों को पर्याप्त संरक्षण देने में सक्षम है।

सरकार की नीतियों और प्रयासों के बावजूद, कट्टरपंथी तत्व अल्पसंख्यकों पर हमले करते रहे हैं।

इस स्थिति में बांग्लादेश की राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का कमजोर रवैया और राजनीतिक दबाव इन घटनाओं को रोकने में असमर्थ दिखता है।


2. भारतीय सत्ता पक्ष का नफरत भरा प्रचार:

भारत में सांप्रदायिक राजनीति और अल्पसंख्यकों के खिलाफ असमानता का व्यवहार, चाहे वह कानूनों के जरिए हो या मीडिया के माध्यम से प्रचारित नैरेटिव्स के जरिए, एक चिंता का विषय है।

राजनीतिक दल अल्पसंख्यकों को "अन्य" के रूप में प्रस्तुत करके बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को भड़काने की कोशिश करते हैं।

बांग्लादेश में हो रही हिंसा का इस्तेमाल भारत में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए किया जाता है, जिससे सामाजिक ध्रुवीकरण बढ़ता है।


3. ऐतिहासिक तनाव और गलत धारणाएं:

1971 के युद्ध और उसके बाद भारत द्वारा बांग्लादेश को दिए गए समर्थन के बावजूद, दोनों देशों में एक अजीब तरह की ऐतिहासिक कड़वाहट बनी रही है।

बांग्लादेश में अक्सर यह धारणा रहती है कि भारत उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है, जबकि भारत में शरणार्थियों के आने को लेकर असंतोष रहता है।


4. सीमा पर विवाद और घुसपैठ का मुद्दा:

भारत-बांग्लादेश सीमा पर घुसपैठ और सीमा सुरक्षा बल (BSF) द्वारा बल प्रयोग के मामलों ने दोनों देशों के बीच असहमति बढ़ाई है।

यह मामला केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक स्तर पर भी दोनों देशों के नागरिकों के बीच दूरी पैदा करता है।


असर और परिणाम

1. सामाजिक ध्रुवीकरण:
दोनों देशों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ असमानता और असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। यह केवल सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर रहा है, बल्कि सांप्रदायिक तनाव को भी बढ़ावा दे रहा है।


2. राजनीतिक अस्थिरता:
सांप्रदायिक हिंसा और नफरत भरे प्रचार का इस्तेमाल राजनीतिक दलों द्वारा अपने लाभ के लिए किया जाता है, जिससे स्थायी समाधान खोजना कठिन हो जाता है।


3. आर्थिक और सांस्कृतिक नुकसान:
भारत और बांग्लादेश के बीच सांस्कृतिक और व्यापारिक आदान-प्रदान को इस असहिष्णुता से नुकसान हो रहा है। व्यापार बाधित होता है और सांस्कृतिक कूटनीति कमजोर होती है।

 

समाधान और सुझाव

1. सांप्रदायिक हिंसा पर सख्ती:
बांग्लादेश सरकार को अपने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। हिंसा में लिप्त तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता आवश्यक है।


2. संवेदनशील मीडिया और नफरत भरे प्रचार पर नियंत्रण:
भारत में सत्ताधारी दल और मीडिया को अपने प्रचार में जिम्मेदारी का परिचय देना होगा। सांप्रदायिक बयानबाजी और नफरत भरे नैरेटिव्स पर अंकुश लगाना जरूरी है।


3. सीमापार सहयोग:
भारत और बांग्लादेश को सीमा पर सुरक्षा और प्रवासी मुद्दों पर संयुक्त रूप से काम करना चाहिए। इसके लिए सीमा सुरक्षा बलों के बीच संवाद और आपसी विश्वास बढ़ाने की जरूरत है।


4. सांस्कृतिक कूटनीति:
दोनों देशों को अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए। धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आदान-प्रदान से आपसी समझ और सहिष्णुता बढ़ सकती है।


5. नागरिक समाज की भूमिका:
दोनों देशों के नागरिक समाज, गैर-सरकारी संगठन और बुद्धिजीवी वर्ग को ऐसी परिस्थितियां बनाने की कोशिश करनी चाहिए, जो परस्पर समझ और सौहार्द को बढ़ावा दें।

 

निष्कर्ष

भारत और बांग्लादेश के संबंध केवल सरकारों तक सीमित नहीं हैं; यह लाखों लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक साझेदारी पर आधारित हैं। असहिष्णुता और अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभाव जैसी समस्याएं केवल संवाद, सहिष्णुता और आपसी सहयोग से हल हो सकती हैं।
यह जिम्मेदारी दोनों देशों की सरकारों, नागरिकों और विशेष रूप से मीडिया की है कि वे इस परस्पर संबंध को सशक्त करें और इसे किसी भी तरह की नफरत और हिंसा से बचाएं। दोनों देशों के बीच असहिष्णुता को समाप्त करने का यही एकमात्र रास्ता है।

रामचन्द्र धर्मदासानी पूर्व प्राचार्य केंद्रीय विद्यालय

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