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अब गोली चले या गोला कोई फर्क नहीं पड़ता - सुरेन्द्र अग्रवाल (वरिष्ठ पत्रकार)


अब गोली चले या गोला कोई फर्क नहीं पड़ता
     - सुरेन्द्र अग्रवाल 
  छतरपुर नगर और ज़िलेभर में एकदम से आपराधिक वारदातें बढ़ रही हैं। खासकर गोलीबारी की बढ़ती घटनाओं से आम जनमानस में चिंताजनक स्थिति उत्पन्न होती जा रही है लेकिन अब संवेदनाएं मर चुकी हैं। किसी भी अप्रिय घटना पर कोई हलचल नहीं होती। एक दो दिन ज़िक्र किया जाता है और फिर वही खामोशी छा जाती है।
     शिक्षा का मंदिर जिसे कालांतर में गुरुकुल कहा जाता था। वहां के प्रधान गुरु जी का उनके ही शिष्य ने कत्ल कर दिया। आरोपी पिछले कुछ दिनों से मौके की तलाश में रहता था। स्कूल के कुछ शिक्षकों को भी इस बात का आभास था। परंतु गुटबाजी के कारण यह अनहोनी हो गई। इसके पहले एक सिरफिरे आशिक ने अपने कमरे में एक ऐसी युवती को मौत की नींद सुला दिया जो सबकुछ उस युवक को अर्पण कर चुकी थी। रेलवे स्टेशन के निकट पन्ना रोड पर आशिक़ी के चक्कर में रिश्ते के भाई एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये थे।इस गोलीबारी में गोली दागने वाले युवक की मां ही जख्मी हो गई।उसका कसूर केवल इतना था कि वह अपने बेटे को रोक रही थी।
          ये वारदातें रुकने वाली नहीं है। क्योंकि हमारे समाज का वातावरण ही ऐसा बन गया है। परिवार और माता-पिता से मिलने वाले संस्कार खत्म हो गये हैं। क्योंकि भागदौड़ भरी जिंदगी में माता पिता के पास इतना समय नहीं है कि वह अपनी औलाद को संस्कारित कर सकें।उनकी औलाद (लड़का, लड़की) स्कूल, कालेज और कोचिंग के नाम पर कहां गुलछर्रे उड़ा रहे हैं, उसकी कोई जानकारी नहीं रहती। हां उन्होंने मोबाइल मांगा,दे दिया, बाइक मांगी दे दी।
     किसी भी प्रकार की आपराधिक वारदात के बाद एसपी सहित पूरी खाकी वर्दी एक्शन मूड में आ जाती है? ऐसा क्यों? यद्यपि आपराधिक वारदातों के लिए केवल पुलिस को जिम्मेदार ठहराना सरासर नाइंसाफी है। क्योंकि अधिकांश आपराधिक वारदातें जमीनों पर कब्जे, बंटवारे, बदले की आग, प्रेम प्रसंग में असफलता, नशा खोरी, शराब और रेत का अवैध कारोबार है। जो अपराधियों के लिए खाद पानी का इंतजाम करती है। पुलिस थानों में क्या चल रहा है। इसकी बानगी देखिए। बिना चढोत्री अथवा सिफारिश के रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। किसी भी बेकसूर व्यक्ति को पैसे दिए बिना नहीं छोड़ा जाता।
शराब, रेत, पशुओं की तस्करी करने वाले लोगों को पता रहता है कि किस थाने में कितना धन जमा करना होगा। रही-सही कसर राजनीति के पुरोधा पूरी कर देते हैं।
       समाज को झकझोर देने वाली वारदातों को रोकने के लिए पुलिस को अपनी कार्यशैली में सुधार करना होगा। उसे सामाजिक दायित्व भी निभाना पड़ेगा। साथ ही समाज और प्रत्येक माता-पिता को भी अपने दायित्व को पूरा करना होगा।आप यह कहकर अथवा सोचकर चुपचाप नहीं बैठ सकते हैं कि कौन हमारे साथ ऐसा हुआ है। हमारी औलाद ने नहीं किया।हमारी औलाद ऐसी नहीं है।
किसी भी वारदात से ग़ाफ़िल मत रहिए। कल के दिन आपके साथ भी ऐसा हो सकता है। बांग्लादेश में क्या चल रहा है क्या आप इससे अंजान हैं। एक राजनीतिक दल तो इसी उधेड़बुन में लगा है कि भारत में भी ऐसा हो जाए। अपने लिए ही नहीं, समाज और देश को भी अपना परिवार समझते हुए लगातार जागरूक रहिए। संतान को भौतिक संसाधनों के साथ संस्कारित जरुर कीजिये।
        शनिवार को अवैध हथियारों को बरामद करने की मुहिम चलाई गई थी। देशी कट्टों का उपयोग करने वाले और उसके खरीदने वाले वाले तो जैसे तैसे सामने आ रहे हैं लेकिन असली सौदागर आज़ भी भूमिगत हैं।जब तक यह नेटवर्क ध्वस्त नहीं किया जाएगा। कट्टों की गूंज जारी रहेगी।
ऐसे चलती है मुहिम 
       एक किस्सा मशहूर है कि एक बार एसपी साहब की कीमती घड़ी चोरी चली गई। ज़िले के सभी थानों में मैसेज भेजा गया। मात्र एक घंटे बाद सभी थानों से सूचना दी गई कि सर आपकी घड़ी मिल गई है। संबंधित ज़िले में 40 थाने थे। सोचिए चोरी गई एक घड़ी के बदले 40 घड़ियां बरामद हो गई थी। ऐसा ही खेल अवैध हथियारों का है। क्योंकि साहब की नजर में सब को अपनी काबिलियत प्रदर्शित करना है।

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