आत्मनिरीक्षण: क्या कांग्रेस में सचमुच कोई आमूल बदलाव होगा? अजय बोकिल वरिष्ठ पत्रकार
आत्मनिरीक्षण: क्या कांग्रेस में सचमुच कोई आमूल बदलाव होगा?
अजय बोकिल वरिष्ठ पत्रकार
पहले हरियाणा व अब महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों परिणामो से हैरान और उद्वेलित कांग्रेस पार्टी अगर सचमुच गंभीर आत्मनिरीक्षण और संगठनात्मक ढांचे में आमूल सुधार करने जा रही है तो इससे अच्छी कोई बात पार्टी और देश के लिए हो नहीं सकती। महाराष्ट्र व हरियाणा में इस बार सत्ता में लौटने का सपना देख रही कांग्रेस की दयनीय पराजय के बाद दिल्ली में हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कुछ खरी-खरी बातें कहीं। लेकिन ये तमाम बातें व्यावहारिक अंजाम तक भी पहुंचेंगी, यह खरगे भी नहीं जानते। खरगे ने अपने संबोधन में पार्टी कार्यकर्ताअोंसे कहा कि हमे चुनाव परिणामों से निराश नहीं होना चाहिए। लेकिन पार्टी को मजबूत करने के लिए ऊपर से नीचे तक बदलाव की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपनी चुनावी रणनीति में सुधार करना होगा, माहौल पक्ष में होने का मतलब जीत की गारंटी नहीं है। इस पर बैठक में मौजूद पार्टी के सर्वेसर्वा राहुल गांधी ने खरगे से कहा कि वो इस मामले में सख्त एक्शन लें। यहीं सबसे बड़ा पेंच है कि क्या खरगे सचमुच कोई कठोर एक्शन लेने की स्थिति में हैं? क्या उनके पास व्यवहार में ऐसे अधिकार हैं? वो अगर एक्शन लेंगे भी तो किनके खिलाफ लेंगे? दूसरे, बैठक में पार्टी को कसने के जो नेक सुझाव खरगे ने दिए, उन पर पहले ही अमल करने से उन्हें किसने रोका हुआ था? यह आत्मज्ञान उन्हें अभी क्यों हुआ? पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर तो वो दो साल से हैं।
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी की मूल समस्या ही ये है कि उसका सिर से पैर तक संगठनात्मक ढांचा चरमराया हुआ है। खासकर 2014 के बाद तो उसकी स्थिति और भी बदतर होती गई है। हर चुनावी हार के बाद यह बात उठती है कि पार्टी संगठन में सुधार जरूरी है। लेकिन हकीकत में सुधार के लिए कुछ नहीं होता है। होता भी है तो दिखावे के लिए। उसमें भी किसी राज्य, कुछ लोकसभा सीटों या स्थानीय निकायों के चुनावों में िमली क्षणिक सफलताएं पार्टी की आंतरिक कलह और अंतर्विरोधों को फिर कालीन के नीचे सरका देती हैं। इस बार भी सीडब्ल्यूसी की बैठक में आत्मालोचन की कोशिशें हुईं। कुछ सच्चाई बयान भी की गई। लेकिन इसके परिणामस्वरूप जमीनी स्तर पर कुछ ठोस होगा, इसकी संभावना नहीं के बराबर है। क्योंकि समय पर निर्णय न होना, अवसर चूक जाने के बाद फैसले होना, फैसलों में भी जमीनी हकीकत और जरूरत को ध्यान में रखने की जगह व्यक्तियो के पूर्वाग्रहों का हावी होना, अंतर्कलह पर काबू न होना, गुटीय संतुलन में वक्त जाया होना, शीर्ष नेताअोंका चंद चेहरों से घिरा होना, परिणामों के बाद की संभावित स्थिति के मद्देनजर अपना वर्चस्व कायम रखने की जोड़ तोड़ जारी रहना, हर बात में हाई कमान के भरोसे रहना, जमीन पर काम करने की जगह आला कमान का कृपापात्र बनने की होड़ कायम रहना, जमीनी कार्यकर्ता की केवल चुनाव के समय पूछ परख होना, चुनाव जीतने , काल, परिस्थिति और स्थानीय जरूरत के हिसाब रणनीति बनाने और तदनुसार मुद्दे उठा सकने में विफल रहना, स्पष्ट वैचारिक सोच न होना, संगठन को सतत निरंतर राजनीतिक काम में व्यस्त न रख पाना, सचबयानी करने वाले चंद चेहरों को खारिज करना, कभी क्षेत्रीय दलों की तरह व्यवहार करना तो कभी खुद को राष्ट्रीय पार्टी की तरह पेश करना आदि ऐसी पुरानी और गंभीर बीमारियां हैं, जिनका इलाज पार्टी आज तक नहीं खोज पाई है।
बहरहाल सीडबल्यूसी की बैठक में खरगे ने कुछ अहम मुद्दे उठाए। खरगे ने कहा कि राज्यों के विस चुनावों में उम्मीद से कम प्रदर्शन हमारे लिए चुनौती है। पार्टी नेताओं में एकता की कमी, एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी चुनावों में हमें नुकसान पहुंचा रही है, इस पर सख्त अनुशासन की जरूरत है। पार्टी को मजबूत करने के लिए जमीनी स्तर से लेकर एआईसीसी तक बदलाव लाने होंगे। खरगे ने यह भी कहा कि चुनाव का माहौल हमारे पक्ष में होने से जीत की गारंटी नहीं मिलती। समयबद्ध रणनीति बनाने और पार्टी को मजबूत करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। विधानसभा चुनावों के लिए एक साल पहले से तैयारी करनी होगी, मतदाता सूचियों की जांच करनी होगी। खरगे ने यह भी कहा कि कांग्रेस के लिए सत्ता में आना महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे देश भर में लोगों के एजेंडे को लागू करने में मदद मिलेगी। लोकसभा चुनाव के अच्छे नतीजों के बाद विधानसभा चुनाव नतीजों ने हमें झकझोर दिया है, हमें कड़े कदम उठाने होंगे।
जहां तक कांग्रेस पार्टी में सुधार की बात है तो यह मुद्दा कई बार उठता रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के कारणों का पता लगाने के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता ए.के. एंटोनी की अगुवाई में कमेटी बनी थी। कमेटी ने अपने रिपोर्ट में हार के कई कारण गिनाए। वह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई। लेकिन बताया जाता है कि रिपोर्ट में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बारे में एक शब्द नहीं कहा या ऐसा कर सकने का साहस उसमें नहीं था। जबकि पार्टी उन्हीं के नेतृत्व में हारी थी। उसी साल हुए कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस की हार के बाद 2016 में पार्टी के तत्कालीन महासचिव दिग्विजयसिंह ने पार्टी में ‘मेजर सर्जरी’ की जरूरत बताई थी। उसके बाद भी कुछ नहीं हुआ। पार्टी का ढर्रा जैसा चल रहा था, चलता रहा। लेकिन 2024 में पार्टी ने लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया तो क्रेडिट राहुल गांधी को दी गई, जबकि वो पार्टी अध्यक्ष नहीं हैं। ऐसे में खड़गे कितनी दमदारी से एक्शन ले पाएंगे, यह समझा जा सकता है।
बैठक में दूसरा अहम मुद्दा ईवीएम का रहा। हर हार के बाद कांग्रेस का विश्वास इस मशीन से उठने लगता है तो जीतने पर वह ईवीएम के नतीजों को वास्तविक जनादेश बताने लगती है। खरगे ने भी कहा कि ईवीएम ने पूरी चुनाव प्रक्रिया को संदिग्ध बना दिया है, चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना चाहिए। लेकिन ईवीएम को लेकर यह प्रश्नचिन्ह केवल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजों को लेकर ही है। इसमें पिछले दिनो हुए हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना अथवा कर्नाटक राज्य के विस चुनाव शामिल नहीं हैं और न ही लोकसभा में महाराष्ट्र व यूपी आदि राज्यों के नतीजों पर सवालिया निशान है। यह भी खास बात है कि ईवीएम की बजाए बैलेट पेपर से चुनाव कराने की पैरवी कर रही कांग्रेस उसके द्वारा शासित राज्यों में स्थानीय निकायों और पंचायतों के चुनाव भी बैलेट पेपर से नहीं कराती। मसलन हिमाचल में कांग्रेस की सुक्खू सरकार वजूद में आने के बाद शिमला नगर निगम के चुनाव ईवीएम से हुए। उसमें कांग्रेस जीती तो किसी को ईवीएम में कोई खोट नजर नहीं आई। अगर पार्टी का ईवीएम से भरोसा पूरी तरह उठ चुका है तो उसके द्वारा शासित राज्यों के राज्य चुनाव आयोगो को बैलेट पेपर से चुनाव कराने में क्या अड़चन है? अब पार्टी महाराष्ट्र में ईवीएम के खिलाफ हस्ताक्षर जन आंदोलन करने जा रही है। इसमें इंडिया गठबंधन के सहयोगियों को भी साथ लिया जाएगा। आंदोलन केवल महाराष्ट्र में इसलिए है, क्योंकि पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र, केरल, कर्नाटक, जम्मू काश्मीर आदि राज्यों की सरकारों को ईवीएम से कोई दिक्कत नहीं है। इस आंदोलन को जनता का कितना समर्थन मिलेगा, यह देखने की बात है। क्योंकि राजनीतिक दल अपने चश्मों से हिसाब से कुछ भी देखें, आम मतदाता को पता होता है कि उसने गुपचुप किसको वोट दिया है और क्यों दिया है। वैसे ईवीएम को लेकर कांग्रेस में भी एकमत नहीं है। पी. चिदम्बरम जैसे वरिष्ठ नेता मानते हैं कि ईवीएम में गड़बड़ी करना संभव नहीं है। यह बात इसलिए भी सही लगती है कि चुनाव अब केवल चुनाव सभाअोंमें लुभावनी या लच्छेदार बातों से नहीं जीते जाते, बूथ मैनेजमेंट और अपने वोट हर हाल में डलवा सकने वाली पार्टी की कारगर मशीनरी के जरिए जीते जाते हैं। अगर माहौल पार्टी के पक्ष में हो तो भी यदि उसी अनुपात में वोट नहीं िगरे तो इस खाम खयाली का कोई मतलब नहीं है।
कार्यकारी प्रधान संपादक
‘राइट क्लिक’
( ‘सुबह सवेरे’ में दि. 2 दिसंबर 2024 को प्रकाशित)
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