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तो मैं उसे मनाने में लग जाता हूँ -सतीश जोशी,वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर


तो मैं उसे मनाने में लग जाता हूँ

-सतीश जोशी,वरिष्ठ पत्रकार, इन्दौर

एक तो बिना कोई वजह, बिना बड़े कारण मैं किसी से नाराज नहीं होता। और यदि मुझे किसी से कोई शिकायत होती है तो मैं उससे सीधे बात करने में या उसे बता देने में विश्वास करता हूँ। मैं सीधे बात कर लेता हूँ या बता देता हूँ। 

तब मुझे इस बात की भी चिंता नहीं होती कि वे मेरी बात का बुरा मानेंगे या नहीं मानेंगे... पर यदि कोई बुरा मान जाए और मुझसे नाराज हो जाए तो मैं उसे मनाने में लग जाता हूँ। जब तक वह मुझे फिर से मुस्कुरा कर नहीं मिलता है तब तक मेरी बेचैनी बनी रहती है।

इसलिए मैं किसी को नाराज करने में विश्वास नहीं होता करता हूँ और यदि मुझसे कोई गलती हो जाए तो मैं क्षमा भी जल्दी मांग लेता हूँ। यह मेरा मूल चरित्र है और यह मेरे पिताजी का दिया हुआ है। जिन्होंने हमेशा मुझसे कहा है कि किसी को नाराज मत करो। किसी से शिकायत मत रखो।किसी की शिकायत भी मत करो।

जहाँ तक संभव हो हर किसी से प्रेम का व्यवहार बनाए रखो। इससे जब कोई मुझसे  नाराज होता है तो मैं बेचैन हो जाता हूँ।
मुझसे कोई भी नाराज हो मुझे इससे फर्क पड़ता है। चाहे वो कोई छोटा बच्चा हो या कोई अंजान हो।

मेरी सबसे बड़ी कमजोरी ही यह है कि मैं दूसरों को बड़ी जल्दी अपना समझ लेता हूँ। ...और सारी औपचारिकताएं भूल जाता हूँ।आप शायद यकीन नहीं मानेंगे, मैं दुश्मन को भी नाराज नहीं देखना चाहता। पता नहीं कब इस संसार से जाना पड़े।

तो क्यों नाराज करना किसी को। वक्त का क्या पता। जहाँ अपने नाराज हो जाएं वहां दुश्मन भी काम आ जाए, कौन जानता है।इसलिए मुझे लगता है कि मेरा कोई दुश्मन नही हो सकता है। मुझसे कोई ज्यादा देर तक नाराज भी नहीं रह सकता।

और मुझे झट से पता भी चल जाता है कौन मुझसे नाराज है। तो मैं बड़ी जल्दी उसकी नाराजगी दूर कर देता हूँ। पर हाँ, एक बन्दा है ऐसा जिससे मैं नाराज तो नहीं पर नाराज होने की एक्टिंग करता हूँ। और वह है मेरा खास दोस्त..। आप समझ गए होंगे...।

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